हेट स्पीच पर अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करवाने की याचिका ख़ारिज

माकपा नेता बृंदा करात और केएम तिवारी ने भड़काऊ भाषण देने के लिए भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर और प्रवेश सिंह वर्मा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के लिए दिल्ली की एक अदालत में याचिका दी थी. इसके लिए केंद्र सरकार से मंज़ूरी न मिलने के बाद कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया.

भाजपा नेता प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर. (फोटो: फेसबुक/पीटीआई)

माकपा नेता बृंदा करात और केएम तिवारी ने भड़काऊ भाषण देने के लिए भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर और प्रवेश सिंह वर्मा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के लिए दिल्ली की एक अदालत में याचिका दी थी. इसके लिए केंद्र सरकार से मंज़ूरी न मिलने के बाद कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया.

भाजपा नेता प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर. (फोटो: फेसबुक/पीटीआई)
भाजपा नेता प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर. (फोटो: फेसबुक/पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत  ने बीते बुधवार को माकपा नेता बृंदा करात और केएम तिवारी की उस याचिका को खारिज कर दी जिसमें भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के खिलाफ हेट स्पीच के आरोप में एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी.

बार एंड बेंच के मुताबिक, अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट विशाल पाहुजा ने सक्षम प्राधिकारी यानी केंद्र सरकार से मंजूरी न मिलने के कारण दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत एफआईआर की मांग वाले आवेदन को खारिज कर दिया.

इस साल फरवरी महीने में करात और तिवारी ने एक शिकायत दर्ज कर मांग की थी कि संसद मार्ग थाने को निर्देश दिया जाए कि वे ठाकुर और वर्मा के खिलाफ केस दर्ज करें.

याचिकाकर्ताओं ने हेट स्पीच का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धारा 153ए/153बी/295ए/298/504/506 के तहत केस दर्ज करने की मांग की थी.

शिकायकतर्ताओं ने कहा कि दिल्ली के रिठाला में एक रैली में अमिताभ ठाकुर ने विवादित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों की ओर इशारा करते हुए कहा था ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को.’

इसमें आगे कहा गया है कि वर्मा ने 28 जनवरी को समाचार एजेंसी एएनआई को एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें उन्होंने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के खिलाफ झूठे, भड़काऊ और सांप्रदायिक बयान दिए गए थे.

हालांकि, दिल्ली पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में अदालत के सामने दावा किया कि प्रथमदृष्टया ठाकुर और वर्मा द्वारा कोई संज्ञेय अपराध नहीं पाया गया और यह नहीं माना जा सकता है कि उनके बयानों में हिंसा भड़की थी.

इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

शिकायतकर्ताओं के इस दावे को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कि सीआरपीसी की धारा 196 के तहत केंद्र सरकार से मंजूरी केवल संज्ञान लेने से पहले आवश्यक होती है, एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने के लिए नहीं, अदालत ने अपने फैसले में कहा:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि अनुमति प्राप्त करने का प्रावधान अनिवार्य है, न कि निर्देशात्मक. यदि मामले में पूर्व मंजूरी नहीं मिली है, तो मजिस्ट्रेट धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत किसी लोक सेवक के खिलाफ जांच का आदेश नहीं दे सकता है.

चूंकि इस मामले में केंद्र सरकार ने ठाकुर और वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने की मंजूरी नहीं दी, इसलिए कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने की मांग को खारिज कर दिया.

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