46 फ़ीसदी कुपोषित बच्चों वाले उत्तर प्रदेश में सरकार मंदिरों में गाय के दूध का प्रसाद बांटेगी

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल तक के बच्चों की मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में टॉप पर है. बिहार के बाद सबसे ज़्यादा ठिगने बच्चे उत्तर प्रदेश में ही हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: रॉयटर्स)

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल तक के बच्चों की मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में टॉप पर है. बिहार के बाद सबसे ज़्यादा ठिगने बच्चे उत्तर प्रदेश में ही हैं.

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फोटो: रॉयटर्स

उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में बताया है कि प्रदेश में डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के अनुरूप प्रति हजार लोगों पर एक भी डॉक्टर नहीं है. प्रति हजार लोगों पर बमुश्किल 0.63 सरकारी और निजी डॉक्टर हैं. इसके अलावा राज्य में प्रति एक हजार लोगों के लिए केवल अस्पताल में 1.5 बेड है.

जिस समय सरकार यह बता रही है कि उसके पास लोगों को इलाज मुहैया कराने लायक संसाधन भी नहीं है, उसी समय राज्य के डेयरी विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार राज्य के धार्मिक स्थलों पर अगली नवरात्रि से गाय के दूध से बनी मिठाइयों का प्रसाद उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है.

चौधरी ने समाचार एजेंसी भाषा से कहा, ‘गाय के दूध को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदेश सरकार गाय के दूध से बनी मिठाइयां मथुरा, अयोध्या, विंध्याचल और काशी जैसे धार्मिक स्थलों पर प्रसाद के रूप में उपलब्ध कराने की योजना बना रही है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो श्रद्धालुओं को गाय के दूध से बनी मिठाइयों का प्रसाद उपलब्ध होगा.

सरकार की प्रसाद बांटने की इस प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए इन आंकड़ों पर भी ग़ौर किया जाना चाहिए कि हाल ही मेें आई राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल तक के बच्चों की मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में टॉप पर है. बिहार के बाद सबसे ज़्यादा ठिगने बच्चे उत्तर प्रदेश में ही हैं.

उत्तर प्रदेश में पांच साल तक के 46.3 फीसदी बच्चे ठिगनेपन का शिकार हैं. कुपोषण का एक दूसरा प्रकार उम्र के हिसाब से वजन न बढ़ना है, इसमें भी उत्तर प्रदेश के 39.5 प्रतिशत बच्चे सामने आए हैं, जबकि भारत में अभी 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं. यानी उत्तर प्रदेश में स्थिति राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है.

स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की ओर कराए जाने वाले इस स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार यूपी में 0 से 5 साल तक की आयु वर्ग के 46.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. बिहार में 48.3 प्रतिशत, जबकि यूपी में 39.5 प्रतिशत बच्चे अपनी आयु के हिसाब से कम वजन के हैं.

2015-16 में आई इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के ग्रामीण और शहरी इलाकों को मिलाकर 6 से 23 महीने के 5.3 फीसदी बच्चों को ही संतुलित आहार मिलता है. प्रदेश में पांच साल तक के 46.3 फीसदी बच्चे ऐसे है जिनकी लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से कम है. वहीं पांच साल तक 17.9 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है.

पिछले वर्ष आई स्टेट न्यूट्रीशन मिशन-2014 की रिपोर्ट का कहना था कि ‘उत्तर प्रदेश में हर रोज 650 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो रही है. 50 फीसदी माताएं खून की कमी से जूझ रही हैं. सरकारी आंकड़ों से इतर बात करें तो साल में तीन लाख से भी ज्यादा बच्चों की मौत हर साल कुपोषण से होती है. प्रदेश में 12 लाख 60 हजार बच्चे अति कुपोषित हैं.’

डेयरी विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहना है कि उनका विभाग नवरात्रि से बाजार में गाय के दूध से बने विभिन्न उत्पाद पेश करने की योजना बना रहा है. उन्होंने बताया कि इस समय गाय का दूध 22 रुपये लीटर मिलता है जबकि भैंस का दूध 35 रुपये लीटर है. प्रदेश सरकार गाय का दूध 42 रुपये लीटर बेचे जाने की दिशा में काम कर रही है. तभी गायों की सही देखभाल होगी और उन्हें कोई आवारा नहीं छोड़ेगा.

उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में गाय का दूध 60 रुपये लीटर बिकता है जबकि मथुरा में यह 45 रुपये लीटर है. गाय के दूध से बना घी 1100 रुपये प्रति किलोग्राम है. चौधरी ने कहा, विरोधी दल सोचते हैं कि हम केवल हिंदूवादी छवि के कारण गाय की बात करते हैं लेकिन ऐसा नहीं है. सच्चाई यह है कि गाय का दूध प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और कोलेस्ट्रोल, कैंसर एवं किडनी की बीमारियों में लाभकारी होता है.

देश के सामान्य किसान, पशुपालक और ग्रामीण जनता जो वास्तव में पशुपालन में लगी है, उसके लिए बेहतर स्थितियां उत्पन्न करने की बजाय सरकार अगर खुद ही मंदिर में प्रसाद बांटेगी तो इससे गाय या किसान की स्थिति में क्या फर्क पड़ेगा, यह रहस्य ही है.

पारंपरिक रूप से गांवों में छोटे बच्चों को मांएं गाय का दूध पिलाती हैं क्योंकि भैंस का दूध भारी और गरिष्ठ होता है. गोरक्षा और गाय की राजनीति में लगी सरकारों को यह अंदाज़ा तक नहीं है कि गाय या भैंस के लाभ हानि जनसामान्य को स्वाभाविक रूप से पता है और इसी आधार पर अपनी प्राथमिकता तय करता है.

क्या सरकार इस तथ्य पर भी ध्यान दे सकने की हालत में है कि आम ग्रामीण गाय और भैंस दोनों पालते हैं और दोनों का दूध इस्तेमाल करते हैं?

उत्तर प्रदेश बीमारू राज्यों में अग्रणी राज्य है. यह प्रदेश विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति हजार लोगों पर एक डॉक्टर के मानदंड को पूरा नहीं करता है. प्रदेश में प्रति हजार लोगों पर बमुश्किल 0.63 सरकारी और निजी डॉक्टर हैं.

स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने विधानसभा में कहा, डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के अनुरूप इस समय प्रति 1000 लोगों पर एक डाक्टर भी नहीं है. सिंह ने बजट पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए कहा कि इसके अलावा राज्य में प्रति एक हजार लोगों के लिए केवल अस्पताल में 1.5 बेड है.

उन्होंने कहा कि डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए सरकार ने तत्काल उपाय किए हैं. डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति आयु 60 साल से बढ़ाकर 62 साल की गई है, जिससे लगभग 1000 डॉक्टर उपलब्ध होंगे.

उन्होंने बताया कि 1000 अन्य डॉक्टरों की त्वरित नियुक्ति के लिए वॉक इन इंटरव्यू कराने के प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. लेकिन क्या दो हजार डॉक्टरों की संख्या बढ़ जाने से 20 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले राज्य को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने लगेंगी?

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सबसे अधिक कुपोषण वाले राज्य की अपने 46 प्रतिशत कुपोषित बच्चों के बारे में क्या योजना है? मंदिर में गाय के दूध का बना प्रसाद बांटने से इन बच्चों को किस तरह का स्वास्थ्य लाभ मिलेगा? प्रदेश के संसाधन को सरकार इन बच्चों पर खर्च करने की जगह प्रसाद बांटने पर क्यों बर्बाद करना चाहती है?

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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