ज़िला जज के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न मामले की जांच रोकी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ये ट्रेंड बन गया है

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मध्य प्रदेश के एक ज़िला जज के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों को ख़ारिज करने की मांग की गई है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 14 अगस्त को इसी याचिका को ख़ारिज करते हुए अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया था.

(फोटो: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मध्य प्रदेश के एक ज़िला जज के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों को ख़ारिज करने की मांग की गई है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 14 अगस्त को इसी याचिका को ख़ारिज करते हुए अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया था.

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(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जिला जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया और इस मामले में चल रही अनुशासनात्मक कार्यवाही पर रोक लगा दी.

साल 2018 में एक महिला न्यायिक अधिकारी द्वारा मध्य प्रदेश के एक जिला जज पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे. इस न्यायाधीश का नाम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति के लिए विचार के दायरे में था. 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमनियन ने मामले में नोटिस जारी करते हुए कहा कि जजों के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाना एक ‘ट्रेंड’ यानी कि चलन बन गया है.

जिला जज की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील आर. बालासुब्रमण्यम ने कहा कि जिस जज के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं, उनका 32 सालों का कार्यकाल बेदाग रहा है. वकील ने दावा किया कि जैसे ही उनको हाईकोर्ट में नियुक्ति किए जाने का विचार किया जाने लगा, वैसे ही ये आरोप लगा दिए गए.

उन्होंने कहा, ‘ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. साल 2018 में अचानक से उनके खिलाफ शिकायत दायर कर दी गई, वे इस साल रिटायर होने वाले हैं और इसके चलते उन्हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है.’

इस पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, ‘अब यह हमारे सिस्टम का एक नियमित चलन बन गया है. जैसे ही कुछ होने वाला रहता है वैसे ही तरह-तरह की बातें होने लगती हैं. लोग यह याद रखते हैं कि वो कितना बुरा व्यक्ति था. क्या किया जाए? यह अब एक ट्रेंड बन गया है. अब यह एक प्रैक्टिस बन गया है.’

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मध्य प्रदेश जिला जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करने की मांग की गई है, जिसे मार्च 2018 में एक महिला न्यायिक अधिकारी द्वारा जेंडर सेंसेटाइजेशन कमेटी के समक्ष शिकायत दर्ज कर दायर किया गया था.

एनडीटीवी के मुताबिक वकील आर. बालासुब्रमण्यम ने अदालत को बताया कि उन्हें नोटिस दिए बिना हाईकोर्ट के आदेश पर एक जिला न्यायाधीश द्वारा जांच की गई, जिसमें उन्हें दोषी पाया गया लेकिन जब रिपोर्ट जेंडर सेंसेटाइजेशन कमेटी को भेजी गई, तो शिकायतकर्ता महिला बार-बार याद दिलाने के बावजूद सबूत पेश करने नहीं आईं.

वकील ने कहा कि कमेटी ने यह नहीं कहा कि जज दोषी हैं लेकिन कहा कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच कुछ वॉट्स ऐप मैसेज की वजह से विवाद हुआ और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 14 अगस्त को जिला न्यायाधीश की याचिका खारिज करते हुए लैंगिक संवेदनशीलता आंतरिक शिकायत समिति को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक जांच जारी रखने का आदेश दिया था.

जिला न्यायाधीश ने अपनी याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय ने आंतरिक शिकायत समिति की 30 अप्रैल, 2019 की अंतिम रिपोर्ट में तथ्यों और कानून के हिसाब से कोई अवैधता नहीं पाई. इस समिति को जिला न्यायाधीश के खिलाफ कार्यवाही के लिए कोई साक्ष्य नहीं मिला था और 23 अप्रैल के प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से इस निष्कर्ष को दर्ज किया गया था.

याचिका के अनुसार, ‘इस मामले में ‘कोई साक्ष्य’ या ‘सामग्री’ नहीं मिलने के स्पष्ट निर्देश के बावजूद आंतरिक शिकायत समिति ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के साथ ही शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न कानून के तहत कार्रवाई की सिफारिश की.’

इससे पहले शीर्ष अदालत ने आंतरिक शिकायत समिति द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस निरस्त करने के लिए जिला न्यायाधीश की याचिका खारिज कर दी थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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