देश में एचआईवी और एड्स क़ानून आने के दो साल बाद भी क्रियान्वयन की ढीली रफ़्तार

एचआईवी/एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 2017 क़ानून का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के प्रसार को नियंत्रित और इससे ग्रस्त लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को कम करना था. लेकिन क़ानून आने के दो साल बाद भी इसकी नीतियों के क्रियान्वयन को लेकर अभी मसौदा तैयार किया जा रहा है.

(फोटोः रॉयटर्स)

एचआईवी/एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 2017 क़ानून का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के प्रसार को नियंत्रित और इससे ग्रस्त लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को कम करना था. लेकिन क़ानून आने के दो साल बाद भी इसकी नीतियों के क्रियान्वयन को लेकर अभी मसौदा तैयार किया जा रहा है.

(फोटोः रॉयटर्स)
(फोटोः रॉयटर्स)

नई दिल्लीः देश में एचआईवी/एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम 2017 लागू हुए दो साल बीतने के बाद भी इसके क्रियान्वयन की रफ्तार बहुत धीमी रही है.

इस संबंध में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) को भेजे आरटीआई आवेदन से यह जानकारी पता चली है.

इस कानून का उद्देश्य एचआईवी/एड्स के प्रसार को नियंत्रित और एचआईवी/एड्स से ग्रस्त लोगों के साथ भेदभाव को कम करना था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने 2014 में इस विधेयक को संसद में पेश किया था और इसे 2017 में संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई थी और उसी साल एक हफ्ते बाद राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगा दी थी.

इस एक्ट की धारा 12 में  केंद्र सरकार द्वारा ‘मॉडल एचआईवी और एड्स पॉलिसी’ की अधिसूचना जारी करने जारी करने का प्रावधान है.

इस पॉलिसी के तहत काम करने के लिए सुरक्षित माहौल, मरीज की सहमति से टेस्ट, इलाज एवं रिसर्च और शिकायत निवारण तंत्र संबंधी पहलुओं को शामिल करना है.

हालांकि, नाको ने आरटीआई के जवाब में कहा है कि इस पॉलिसी का फिलहाल अभी मसौदा ही तैयार हो रहा है.

इस अधिनियम की धारा 23 के तहत लोकपालों की नियुक्ति का प्रावधान है, जो इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में किसी भी व्यक्ति की शिकायत का निपटान कर सके. वहीं, एक्ट की धारा 28 के तहत लोकपाल को प्रत्येक छह महीने में राज्य सरकार को इन निम्न विवरणों का ब्योरा देना है.

1) प्राप्त शिकायतों की संख्या और उनकी प्रकृति

2) इस पर की गई कार्यवाही

3) इस तरह की शिकायतों के संबंध में पारित आदेश

इस अधिनियम की धारा 28 में रिपोर्ट की एक कॉपी को केंद्र सरकार को भी सौंपा जाना है.

केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त इस तरह की रिपोर्टों को साझा करने के आग्रह पर जवाब देते हुए नाको ने कहा कि राज्य सरकार लोकपालों की नियुक्ति की प्रक्रिया में है.

चूंकि, नाको ने एक भी रिपोर्ट साझा नहीं की है तो दो संभावनाएं पैदा होती हैं.

पहली, राज्य सरकारों ने अधिनियम को लागू करने के लिए अभी तक नियम तैयार नहीं किए. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि नाको ने उन राज्य सरकारों के बारे में भी जानकारी साझा नहीं की, जिन्होंने क्रियान्वयन के लिए नियमों को अधिसूचित किया है.

दूसरी संभावना यह है कि राज्यों ने नियम बनाए हैं, लेकिन अभी तक लोकपालों की नियुक्ति नहीं की है.

अधिनियम की धारा 30 के तहत शादी से पहले एचआईवी से संबंधित जानकारी का पूरा ब्योरा उपलब्ध कराया जाता है.

नाको का कहना है कि इन दिशानिर्देशों की अधिसूचना को लेकर काम जारी है.

धारा 15 में केंद्र और राज्य सरकारें एचआईवी और एड्स संक्रमित लोगों को कल्याणकारी योजनाओं तक बेहतर पहुंच बनाने की सुविधा देने का प्रावधान है.

नाको ने अपने जवाब में कहा कि उन्होंने बेहतर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए 18 मंत्रालयों और विभागों के साथ एमओयू करार किया है. इन एमओयू का विवरण यहां उपलब्ध है.

हालांकि नाको की वेबसाइट पर स्पष्ट किया गया है कि इन 18 एमओयू में से 14 पर 2013 से 2015 के बीच हस्ताक्षर हुए थे. दो पर 2017 में, जबकि दो पर 2019 में हस्ताक्षर हुए थे, इसलिए अधिकतर एमओयू पर अधिनियम के लागू होने से पहले ही हस्ताक्षर हो गए थे.

हालांकि, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ मिलकर की गईं गतिविधियों की जानकारी इस वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है.

नाको का कहना है कि उसने सभी राज्यों की एड्स नियंत्रण समितियों को विभागों के साथ मिलकर काम करने एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की व्यवस्था करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं.

सभी राज्यों में एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए तैयार की गई योजनाओं की जानकारियां यहां हैं.

हालांकि यह अच्छा है कि सभी राज्यों की पूर्ण जानकारियां एक ही स्थान पर है लेकिन सिर्फ योजनाएं तैयार करना ही पर्याप्त नहीं है. इसका उद्देश्य इन योजनाओं तक जरूरतमंदों की बेहतर पहुंच बनाना है. इसमें केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस संदर्भ में आकलन बहुत ही मददगार होगा.

कानून के क्रियान्वयन की स्थिति को देखते हुए जरूरत है कि भारत कानून इसकी संबद्ध नीतियों और दिशानिर्देशों को अधिसूचित करे और राज्य सरकार जल्द से जल्द इसके क्रियान्वयन को लेकर नियमों का मसौदा तैयार करें. इस तरह देश एचआईवी संक्रमितों के साथ-साथ स्वास्थ्य प्रदाताओं और एचआईवी/एड्स एवं मरीजों के कल्याण के काम में शामिल अन्य लोगों के अधिकारों को सुरक्षित रख सकेगा.

(लेखक टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस से ग्रेजुएट हैं.)

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.