अमरावती ज़मीन घोटाला मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाई

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का यह आदेश भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो द्वारा एक पूर्व क़ानून अधिकारी और अन्य आरोपियों पर दर्ज एफआईआर के संदर्भ में है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ब्यूरो उनके ख़िलाफ़ ग़लत इरादे से काम कर रहा है और पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने के साथ मीडिया ट्रायल में बदला जा रहा है.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का यह आदेश भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो द्वारा एक पूर्व क़ानून अधिकारी और अन्य आरोपियों पर दर्ज एफआईआर के संदर्भ में है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ब्यूरो उनके ख़िलाफ़ ग़लत इरादे से काम कर रहा है और पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने के साथ मीडिया ट्रायल में बदला जा रहा है.

(फोटो साभार: फेसबुक)
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नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती में जमीन खरीद के संबंध में भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) द्वारा गुंटुर थाने में राज्य के पूर्व कानून अधिकारी और अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर के सिलसिले में द वायर  द्वारा 15 सितंबर को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी.

हालांकि इस रिपोर्ट के प्रकाशन के करीब घंटे भर बाद ही आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इस एफआईआर और इसकी विषय-वस्तु की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी गई.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस बारे में दायर याचिका में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा है कि

‘इस एफआईआर के दर्ज होने के फौरन बाद सोशल मीडिया और अखबारों में याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान जज की दो बेटियों को लक्षित किया जाने लगा, जो दुर्भावना के इरादे से मीडिया ट्रायल के जरिये प्राधिकरण को अपमानित करना है. इसके मद्देनजर यह विनती की गई है कि एफआईआर दर्ज होने के आधार पर रिट याचिका दायर करने के बाद जांच और इसके प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के प्रकाशन की अनुमति नहीं दी जाए.’

हालांकि द वायर  मानता है कि इस तरह का आदेश फ्री स्पीच के अधिकारों पर पाबंदी लगाना है, जिसकी इजाज़त संविधान नहीं देता, लेकिन माननीय हाईकोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए उस रिपोर्ट को अस्थायी रूप से हटा लिया गया है.

अदालत के आदेश का ब्यौरा नीचे पढ़ सकते हैं.

Andhra High Court Amaravati Land Scam Injunction Order by The Wire on Scribd

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी ने आदेश में कहा, ‘अंतरिम राहत के माध्यम से यह निर्देशित किया जाता है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ इस रिट याचिका को दायर करने के बाद कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. किसी भी तरह की पूछताछ और जांच पर भी रोक रहेगी.’

आदेश में आगे कहा गया है, ‘यह निर्देशित किया जाता है कि इस संबंध में कोई भी समाचार इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.’

जस्टिस माहेश्वरी ने आगे कहा, ‘आंध्र प्रदेश सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा राज्य के गृह विभाग के सचिव और डीजीपी को यह सुनिश्चित करने को कहा जाए कि अदालत के अगले आदेश तक इस विषय  में प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई खबर प्रकाशित न हो.’

इसके साथ ही आदेश में यह भी कहा गया, ‘इस संबंध में सोशल मीडिया पोस्ट भी प्रकाशित नहीं होगा. इस बारे में संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म/संगठनों को सूचना देने के लिए आंध्र प्रदेश के डीजीपी और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय आवश्यक कदम उठाएंगे.’

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीते मंगलवार को एफआईआर दर्ज होने के बाद पूर्व कानून अधिकारी का प्रतिनिधित्व करते हुए वरीष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और श्याम दीवान ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार उन्हें निशाना बना रही है और मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाने सहित हाईकोर्ट से राहत की मांग की. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ कर रही थी.

याचिका में आरोप लगाया गया था कि आंध्र प्रदेश भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो उनके खिलाफ गलत इरादे से काम कर रही है और पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने के साथ मीडिया ट्रायल में बदला जा रहा है.

आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश होते हुए वकील सी. मोहन रेड्डी ने कहा था कि प्रतिबंधात्मक आदेश की अपील का कोई मतलब नहीं था क्योंकि खबर पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक में चल चुकी थी.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने नोटिस जारी कर बचाव पक्ष से चार सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है.

(नोट: इस ख़बर को अपडेट किया गया है.)

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