देश में कोरोना के ‘क़ाबू’ में होने का दावा ग़लत, मामले और मौतें लगातार बढ़ रहे हैं: शीर्ष वायरोलॉजिस्ट

देश के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील का कहना है कि भारत में सात दिनों में कोरोना वायरस संक्रमण के औसतन 93,000 मामले प्रतिदिन बढ़ रहे हैं. अमेरिका यह दर 39,000 मामले प्रतिदिन की है. भारत आगामी तीन से चार हफ्ते में अमेरिका से आगे निकल जाएगा.

करण थापर और डॉ. शाहिद जमील

देश के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील का कहना है कि भारत में सात दिनों में कोरोना वायरस संक्रमण के औसतन 93,000 मामले प्रतिदिन बढ़ रहे हैं. अमेरिका यह दर 39,000 मामले प्रतिदिन की है. भारत आगामी तीन से चार हफ्ते में अमेरिका से आगे निकल जाएगा.

करण थापर और डॉ. शाहिद जमील
करण थापर और डॉ. शाहिद जमील

नई दिल्लीः देश के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील का कहना है कि भारत में कोरोना को लेकर स्थिति चिंताजनक है.

उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव के उस बयान की भी आलोचना की, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश में कोरोना के मामले नियंत्रण में हैं.

डॉ. शाहिद जमील का कहना है कि ऐसे दो चिंताजनक पहलू हैं. पहला, जिस दर से कोरोना बढ़ रहा है और दूसरा जिन स्थानों पर यह बढ़ रहा है. आज कोरोना के दो-तिहाई मामले ग्रामीण भारत और गांवों में हैं.

उनका मानना है कि 65 करोड़ से अधिक ऐसे मामले हैं, जिनकी पहचान अभी तक नहीं हो सकी है.

द वायर  के लिए करण थापर को दिए गए 42 मिनट के इस साक्षात्कार में जमील ने बीते दो महीने में कोरोना के मामलों और कोरोना से मौतों दोनों में ही बढ़ोतरी की ओर ध्यान दिलाया.

उन्होंने कहा कि 16 सितंबर को कोरोना से हुई मौतों के लिए सात दिनों का औसत 1,160 था. दो महीने पहले कोरोना मामलों के लिए सात दिनों का औसत 27,000 और मौतों के लिए औसत 540 था.

उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि दो महीने में ही कोरोना के मामलों में 230 फीसदी का इजाफा हुआ है जबकि कोरोना से हुई मौतों में 115 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

जमील ने अनुमान जताया कि दस दिनों के भीतर भारत में कोरोना के मामले पचास लाख से बढ़कर साठ लाख हो जाएंगे.

यह पूछने पर कि क्या इसका यह मतलब है कि भारत में कोरोना प्रसार तेज हो रहा है?

इस पर डॉ. जमील कहते हैं, ‘बिल्कुल, वास्तव में यह चिंताजनक है और कोरोना के मामलों में कोरोना से मौतों दोनों में तेज वृद्धि हुई है.’

यह पूछने पर कि क्या मई और जून में आईसीएमआर के सेरोलॉजिकल सर्वे से कुछ अनुमान लगाया जा सकता है?

दरअसल उस सर्वे से पता चला था कि कोरोना के हर एक कंफर्म मामले पर 82 से 130 के बीच संक्रमित मामले हो सकते हैं. जब आज देश में पचास लाख मामले हैं तो 41 करोड़ से 65 करोड़ तक ऐसे मामले हो सकते हैं, जो दर्ज ही नहीं हुए हो.

इस पर जमील ने कहा, ‘हां यकीनन ऐसा हो सकता है.’

हालांकि, जमील ने यह भी कहा कि जुलाई के मध्य से कोरोना के विस्तार की वजह से वास्तविक आंकड़ा और अधिक हो सकता है.

उन्होंने कहा कि तार्किक रूप से कहूं तो आज 70 से 80 करोड़ (दर्ज या बिना दर्ज हुए) के बीच मामले हो सकते हैं.

जमील ने वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स के निदेशक रामानन लक्ष्मीनारायण के 18 मार्च के साक्षात्कार का उल्लेख किया, जिसमें लक्ष्मीनारायण ने अनुमान जताया था कि भारत की सबसे खराब स्थिति में भी देश की 60 फीसदी आबादी संक्रमित हो सकती है यानी लगभग 70 से 80 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि हालांकि इस अनुमान को लेकर भाजपा के प्रवक्ताओं और कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने लक्ष्मीनारायण की गलत तरीके से और मूर्खतापूर्ण आलोचना की थी लेकिन आज इस अनुमान की पुष्टि हो गई.

वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया अलायंस के सीईओ और 2000में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विजेता जमील ने भारत की मौजूदा स्थिति की अमेरिका से तुलना की.

उन्होंने कहा कि भारत में सात दिनों में कोरोना के औसतन 93,000 मामले प्रतिदिन बढ़ रहे हैं. अमेरिका यह दर 39,000 मामले प्रतिदिन की है. भारत आगामी तीन से चार हफ्ते में अमेरिका को पार कर जाएगा.

डॉ. जमील ने 15 सितंबर के आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव के उस बयान की भी आलोचना की, जिसमें उन्होंने कहा था, भारत में कोरोना अभी पीक (चरम) पर नहीं पहुंचा है.

जमील ने कहा, ‘कोई इस तरह की प्रतिक्रिया कैसे दे सकता है? वे (बलराम भार्गव) एक महत्वपूर्ण शख्स हैं और उन्हें शब्दों का सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए. महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को सावधानी से शब्दों का चयन करना चाहिए.’

स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण द्वारा बीते मंगलवार को सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के बारे में जमील ने कहा कि प्रतिशत से वास्तविक तस्वीर का पता नहीं चलता. इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये फीसदी कम है लेकिन चूंकि वास्तविक आंकड़े बहुत बड़े हैं इसलिए ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीज, आईसीयू में भर्ती होने वाले और वेंटिलेटर की जरूरत वाले मरीजों की संख्या बहुत अधिक होगी.

बता दें कि स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा था कि देश में सिर्फ 3.6 फीसदी कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत है. सिर्फ 2.1 फीसदी मरीजों को आईसीयू और सिर्फ 0.3 फीसदी मरीजों को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत है.

देश की कम मृत्यु दर से भारत सरकार को मिली राहत के बारे में पूछने पर जमील ने कहा कि हमारे सभी पड़ोसी देशों में मृत्यु दर कम है.

उन्होंने कहा, ‘हम लगातार पश्चिमी देशों की ओर देख रहे हैं और यूरोपीय देशों और अमेरिका की तुलना में अपने यहां कोरोना मामलों का आकलन कर रहे हैं लेकिन अगर हम पूर्वी देशों की तरफ देखें तो हमें पता चलेगा कि ऐसे कई देश हैं, जहां स्थिति हमसे बेहतर हैं. यह भी स्पष्ट है कि सिर्फ भारत में ही कम मृत्यु दर नहीं हैं. इससे भारत को कोई विशेष श्रेणी नहीं मिल जाती.’

हालांकि, जमील का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि भारत में कोरोना मौतों को लेकर अनुमान बहुत अधिक और चिंताजनक है.

उन्होंने कहा कि इसका पहला कारण है कि दुनियाभर में महामारी को लेकर मौतों के आंकड़े कम दर्ज हो रहे हैं. दूसरा, कोरोना से अब तक अधिकतर मौतें शहरी भारत और अस्पतालों में हुई हैं. हालांकि, इसकी भी कम संभावना नहीं है कि ग्रामीण भारत में कोरोना के पैर पसारने पर वहां मौतों का आंकड़ा बढ़ सकता है क्योंकि वहां अस्पताल कम हैं और डॉक्टरों की भी खासी कमी है.

भारत के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट का कहना है कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि शरीर में कोरोना एंटीबॉडी चार या पांच महीने में बनने बंद हो जाते हैं.

उन्होंने कहा कि हालांकि टी-सेल इम्युनिटी और मेमोरी रिस्पॉन्स इम्युनिटी लगातार हमारी रक्षा करेंगे. उन्होंने कहा कि हालांकि यह दूसरी बार संक्रमण से शायद हमें नहीं बचा पाएंगे लेकिन यह बीमारियों से यकीनन रक्षा करेंगे.

उन्होंने कहा कि संक्रमण मायने नहीं रखता. बीमारी मायने रखती है और टी-सेल इम्युनिटी और मेमोरी रिस्पॉन्स इम्युनिटी बीमारी के दोबारा आने पर हमारी रक्षा करेंगे.

उन्होंने डॉ. एंथनी फॉकी के इस दावे पर कि कोरोना की वैक्सीन 100 फीसदी प्रभावकारी नहीं होगी, जमील ने कहा कि दुनिया में कोई भी वैक्सीन 100 फीसदी प्रभावकारी नहीं होती.

रूस की कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक के बारे में जमील ने कहा कि उन्होंने लांसेट में इसके बारे में रिपोर्ट पढ़ी थी, साथ में इसकी आलोचना के बारे में भी पढ़ा था.

उन्होंने कहा कि उनका विश्वास है कि स्पुतनिक में दम नहीं है. दूसरे चरण के ट्रायल में सिर्फ 40 वालंटियर्स का ही परीक्षण हुआ है. इसे लेकर स्पष्टीकरण देने की जरूरत है… क्योंकि यह विश्वसनीयता का विषय है.

जमील ने हाल ही में द न्यू इंग्लैंड जर्नल मेडिसिन में छपे एक लेख का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि मास्क लगाना संक्रमण से बचने का कारगर तरीका हो सकता है, जिससे वायरस का प्रकोप घटाया जा सकता और सुनिश्चित किया जा सकता है कि संक्रमण एसिम्पटोमैटिक (बिना लक्षणों वाला) हो.

जमील ने कहा कि उन्हें लगता है कि मास्क पहनना सामान्य हो जाएगा लेकिन उन्हें संशय है कि इससे वायरस की गंभीरता पर कोई फर्क पड़ेगा.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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