कंगना रनौत को फेमिनिज़्म के बारे में अभी बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है

कंगना रनौत का एक साथी महिला कलाकार के काम को नकारते हुए उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास और घर गिराए जाने की तुलना बलात्कार से करना दिखाता है कि फेमिनिज़्म को लेकर उनकी समझ बहुत खोखली है.

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कंगना रनौत. (फोटो साभार: फेसबुक/@TeamKanganaRanautOfficial)

कंगना रनौत का एक साथी महिला कलाकार के काम को नकारते हुए उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास और घर गिराए जाने की तुलना बलात्कार से करना दिखाता है कि फेमिनिज़्म को लेकर उनकी समझ बहुत खोखली है.

कंगना रनौत. (फोटो साभार: फेसबुक/@TeamKanganaRanautOfficial)
कंगना रनौत. (फोटो साभार: फेसबुक/@TeamKanganaRanautOfficial)

डियर कंगना,

एक बार फिर आपने एक ऐसा ट्वीट किया जिसे पढ़ने के बाद मन में कई सवालों के साथ गुस्सा भर गया है. आपने इस ट्वीट में जो कहा क्या उसमें आप ये कहना चाहती हैं कि एक महिला की जगह उसकी योनि से ज्यादा कुछ नहीं!

क्या आपके अनुसार बॉलीवुड में जाने के लिए स्त्रियों का रास्ता उनकी योनियों से होकर गुजरता है! बल्कि आपके शब्दों से ऐसा लग रहा है कि आप न केवल बॉलीवुड की बल्कि तमाम क्षेत्रों के लिए भी ऐसा ही सोच रही हैं.

साथ ही हर उस महिला की काबिलियत पर सवाल खड़ा किया है जो अपने सपनों को जीने के लिए, अपनी पहचान बनाने के लिए घर से बाहर निकलती हैं.

आपके इस बयान के बाद हर वो महिला जो मुंबई आकर अपने सपनों को पंख लगाना चाहती हैं, उन्हें कहीं न कहीं अब झिझक होगी और उनका परिवार भी आपके बयान का हवाला देकर उन्हें रोकेगा.

आप वही शब्द दे रही हैं जो एक मर्द सोचता है किसी महिला की सफलता पर, वो शब्द, जो उसकी लिपस्टिक के आगे उसकी कामयाबी को  फीका कर देते हैं. और आप बात करती हैं कि आपने फेमिनिज़्म सिखाया!

लेकिन क्या आप खुद फेमिनिज़्म का मतलब जानती हैं? आप तो खुद अपने शब्दों में एक मर्दवादी सोच को बढ़ावा दे रही हैं. आप तो खुद उस खेमे में खड़ी हो गईं, जो महिला को महिला नहीं बल्कि उसे उपभोग की वस्तु समझता है.

ऐसा करके आप केवल मनुस्मृति की सोच को आगे बढ़ा रही हैं. आप कहती हैं कि बॉलीवुड को फेमिनिज़्म आपने सिखाया है जबकि आपने तो खुद बॉलीवुड में 2006 में प्रवेश किया और महिलाओं पर फिल्में दशकों से बनती आ रही हैं.

इनमें अभिनेत्रियों ने अपने किरदार की बदौलत महिलाओं की आवाज़ बुलंद की. आपके बॉलीवुड में शामिल होने से पहले जो फिल्में बनी थीं, उनमें नर्गिस की मदर इंडिया (1957), सुचित्रा सेन की आंधी (1975), शबाना आज़मी की अर्थ (1982), स्मिता पाटिल की भूमिका (1977), मिर्च मसाला (1987), रेखा की खून भरी मांग (1988), मीनाक्षी शेषाद्रि की दामिनी (1993), तब्बू की अस्तित्व (2000) और चांदनी बार (2001)… आदि तमाम बेहतरीन फिल्में हैं.

ये लिस्ट बहुत लंबी है लेकिन यहां कुछ ही फिल्में इसलिए बताना चाह रही हूं ताकि आपके ध्यान में रहे और आपकी गलतफ़हमी कुछ हद तक खत्म हो.

ये सभी फिल्में आपके बॉलीवुड में आने से पहले की हैं, जैसा कि आपकी बातों से ज़ाहिर होता है कि इन्हें शायद फेमिनिज़्म का मतलब नहीं पता, फिर भी उन्होंने अपनी-अपनी फिल्मों में अपना चरित्र न केवल बखूबी निभाया बल्कि उसे जिया भी और कभी भी इन फिल्मों के बाद फेमिनिज़्म पर ‘ज्ञान’ भी नहीं दिया.

आपके मुताबिक बॉलीवुड को फेमिनिज़्म आपने सिखाया है, जबकि आप एक चैनल को दिए इंटरव्यू में एक दूसरी महिला को कहती हैं कि उर्मिला मातोंडकर को सॉफ्ट पोर्न स्टार हैं और उन्हें उनकी एक्टिंग की वजह से नहीं जाना जाता.

एक तरफ आप अपने आप को फेमिनिस्ट बताती हैं तो दूसरी तरफ दूसरी महिला को नीचा दिखाने की कोशिश करती हैं, ये कैसा फेमिनिज़्म है आपका?

क्या आपका फेमिनिज़्म महिलाओं को छोड़कर एक पार्टी विशेष के लिए ही है और विपक्ष की महिलाओं पर आरोप-प्रत्यारोप करते-करते आपको महिला होने का धर्म भी याद नहीं रहता.

उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस में हैं इसलिए शायद आपने उनकी गरिमा का ध्यान नहीं रखा. ऐसे ही जया बच्चन भी समाजवादी पार्टी में हैं, चार बार सांसद भी रह चुकी हैं और फिल्मों में वे तब से हैं जब आपका जन्म भी नहीं हुआ था.

महिला के नाते नहीं, तो आप उनकी उम्र को ही ध्यान में रख सकती थीं क्योंकि महिलावादी होना आपको कहीं भी ये नहीं सिखाता कि आप दूसरी महिला को नीचा दिखाएं, ख़ासकर किसी उम्रदराज महिला को.

अभिनेत्री होने के नाते आपको पता होना चाहिए कि जया बच्चन ने मिली, हजार चौरासी की मां, अभिमान, गुड्डी, महानगर, उपहार आदि जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया है.

फिर आपनेआपका घर तोड़े जाने पर ट्वीट किया कि घर टूटने के बाद आप बिल्कुल वैसा महसूस कर रही हैं जैसा आपका बलात्कार हुआ हो.

कंगना जी, क्या आप कभी किसी रेप विक्टिम से मिली हैं? क्या आपने उससे पूछा है कि क्या होता है रेप का मतलब?

आप जिस माहौल में रहती हैं आपको तो ये भी नहीं पता होगा कि जब एक मर्द अपनी लपलपाती नज़रों से एक महिला को देखता है तो कैसा लगता है. शायद आपको नहीं पता होगा कि जब सड़क पर निकलने पर पुरुषों द्वारा कैसे एक महिला को पूरा स्कैन किया जाता है, तो उस महिला को कैसा लगता है!

2012 में निर्भया के लिए लोग यूं ही सड़कों पर लाठियां खाने नहीं उतर गए थे, कठुआ में एक बच्ची के साथ हुए घिनौने अपराध के खिलाफ़ लोगों में यूं ही गुस्सा नहीं भर गया था.

अगर आपको रेप का असल मतलब भी पता होता, तो आप घर टूटने पर इस शब्द तक का प्रयोग करने से भी बचतीं, फिर महसूस करना तो दूर की बात. बल्कि मैं तो चाहती हूं कि कभी भी किसी महिला को इसे महसूस ही न करना पड़े.

अगर आप सच में जानती तो आप फेमिनिज़्म का ज्ञान देने के बदले उन तमाम महिलाओं के साथ खड़ी होती जो इस एहसास से भी डरती हैं, जिनके साथ ऐसा हुआ होता है, वे तो आसानी से उस दर्द को बयान भी नहीं कर पाती हैं.

मुझे शिकायत है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता चिन्मयानंद और पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर, जिन पर रेप का आरोप लगा, उनके खिलाफ़ आंदोलन में आप कहीं शामिल नहीं दिखीं.

कुलदीप सेंगर ने न केवल उस महिला के साथ घिनौना अपराध किया बल्कि उस महिला को अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ लड़ने पर अपने परिवार के कई सदस्यों को भी खोना पड़ा.

2018 की एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर घंटे तकरीबन चार रेप होते हैं. लेकिन ये आंकड़ा केवल वह है, जिनके केस दर्ज होते हैं.

आज भी हमारे देश में कई कारणों से रेप के कई केस दर्ज नहीं किए जाते, तो कई जगह अपनी और अपने परिवार की तथाकथित इज्ज़त के इन्हें दर्ज नहीं करवाया जाता.

पिछली बार आपने जाति के खिलाफ़ बोला, तब समझ आता है कि अधिकतर सवर्णों की आरक्षण और जाति को लेकर यही सोच है.

लेकिन अब आपने एक महिला होकर दूसरी महिला के लिए न केवल गलत बोला, बल्कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का मजाक भी बनाया. और इसके साथ आप खुद को महिलावादी भी घोषित कर रही हैं.

अगर महिलावादी होना यही सिखाता है, तो लोग मर्दवादी होना चुनना पसंद करेंगे. इसलिए आपसे विनम्र निवेदन है कि आप महिलावाद के बारे में थोड़ा और जानें.

ज्ञान बढ़ाने के लिए माता सावित्रीबाई फुले और फ़ातिमा शेख़ को भी पढ़िएगा, जिन्होंने सच में धरातल पर रहते हुए महिलाओं के लिए काम किया और जिनकी वजह से मैं ही नहीं बल्कि आपको भी पढ़ने और बोलने का मौका मिला. शुक्रिया और आभार

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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