क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम और इसके संशोधन, जिसका किसान विरोध कर रहे हैं

केंद्र सरकार का दावा है कि इस क़ानून से कृषि क्षेत्र में निजी और प्रत्यक्ष निवेश में बढ़ोतरी होगी तथा कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे. वहीं विरोध कर रहे किसानों और विपक्ष का कहना है कि इससे सिर्फ़ जमाखोरों को लाभ होगा.

(फोटो: रॉयटर्स)

केंद्र सरकार का दावा है कि इस क़ानून से कृषि क्षेत्र में निजी और प्रत्यक्ष निवेश में बढ़ोतरी होगी तथा कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे. वहीं विरोध कर रहे किसानों और विपक्ष का कहना है कि इससे सिर्फ़ जमाखोरों को लाभ होगा.

A vendor sells vegetables at a retail market in Kolkata, India, December 12, 2018. Photo Reuters Rupak De Chowdhuri
(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: बीते मंगलवार को राज्यसभा ने कृषि सुधार के नाम पर लाए गए आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) अधिनियम विधेयक, 2020 को मंजूरी दे दी, जिसके जरिये अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू जैसी वस्‍तुओं को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया गया है.

दूसरे शब्दों में कहें, तो अब निजी खरीददारों द्वारा इन वस्तुओं के भंडारण या जमा करने पर सरकार का नियंत्रण नहीं होगा.

हालांकि संशोधन के तहत यह भी व्‍यवस्‍था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि‍ उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है.

यह कानून साल 1955 में ऐसे समय में बना था जब भारत खाद्य पदार्थों की भयंकर कमी से जूझ रहा था. इसलिए इस कानून का उद्देश्य इन वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकना था ताकि उचित मूल्य पर सभी को खाने का सामान मुहैया कराया जा सके.

सरकार का कहना है कि चूंकि अब भारत इन वस्तुओं का पर्याप्त उत्पादन करता है, ऐसे में इन पर नियंत्रण की जरूरत नहीं है.

इसके साथ ही सरकार का यह भी दावा है कि उत्‍पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्‍यापक स्‍तर पर उत्‍पादन करना संभव हो जाएगा, साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी/प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सकेगा. इससे कोल्‍ड स्‍टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (सप्‍लाई चेन) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी.

हालांकि इस कानून के अलावा कृषि क्षेत्र में लाए गए दो और कानूनों को लेकर देश भर के विभिन्न हिस्सों में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इन विधेयकों के खिलाफ 25 सितंबर को भारत बंद घोषित किया गया था.

आरोप है कि इस विधेयक से किसान और उपभोक्ता को काफी नुकसान होगा और जमाखोरी के चलते सिर्फ निजी खरीददारों, ट्रेडर्स, कंपनियों आदि को फायदा होगा.

क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत, केंद्र राज्य सरकारों के माध्यम से कुल आठ श्रेणियों के वस्तुओं पर नियंत्रण रखती है.

इसमें (1) ड्रग्स, (2) उर्वरक, (3) खाद्य तिलहन एवं तेल समेत खाने की चीजें, (4) कपास से बना धागा, (5) पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, (6) कच्चा जूट और जूट वस्त्र, (7) खाद्य-फसलों के बीज और फल तथा सब्जियां, पशुओं के चारे के बीज, कपास के बीज तथा जूट के बीज और (8) फेस मास्क तथा हैंड सैनिटाइजर शामिल हैं.

केंद्र इस कानून में दी गईं शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राज्य सरकारों को ‘नियंत्रण आदेश’ जारी करने के लिए कहता है, जिसके तहत वस्तुओं को स्टॉक यानी जमा करने की एक सीमा तय की जाती है और सामान के आवागमन पर नजर रखी जाती है.

इसके जरिये लाइसेंस लेना अनिवार्य बनाया जा सकता है और वस्तुओं के उत्पादन पर लेवी (एक प्रकार का कर) भी लगाया जा सकता है. जब कभी राज्यों ने इन शक्तियों का इस्तेमाल किया है, ऐसे हजारों पुलिस केस दर्ज किए गए, जिसमें ‘नियंत्रण आदेश’ के उल्लंघन के आरोप थे.

अब सरकार ने इसमें संशोधन करके अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू को धारा 3 (1) के दायरे से बाहर कर दिया गया है, जिसके तहत केंद्र को आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण पर नियंत्रण करने का अधिकार मिला हुआ है.

अब सिर्फ अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में ही सरकार द्वारा इन वस्तुओं पर नियंत्रण किया जा सकेगा. इस कानून के तहत केंद्र को यह भी अधिकार मिला हुआ है कि वो जरूरत के हिसाब से आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में जोड़ या घटा कर सकती है.

यह पहली बार नहीं है जब केंद्र ने इस एक्ट के जरिये नियंत्रण के दायरे के कुछ वस्तुओं को बाहर किया है. उदाहरण के लिए साल 2002 में वाजपेयी सरकार ने गेहूं, धान, चावल, मोटे अनाज और खाद्य तेलों पर लाइसेंस और स्टॉक सीमा को समाप्त कर दिया था.

किस आधार पर तय होगी स्टॉक लिमिट

सरकार द्वारा स्टॉक लिमिट या वस्तुओं को जमा करने की सीमा तय करने का फैसला कृषि उत्पाद के मूल्य वृद्धि पर निर्भर करेगी.

शीघ्र नष्‍ट होने वाली कृषि उपज के मामले में 12 महीने पहले या पिछले पांच वर्षों के औसत खुदरा मूल्य की तुलना में यदि उत्पाद के वर्तमान मूल्य में 100 फीसदी वृद्धि होती है, तो इसके स्टॉक की सीमा तय की जाएगी.

इसी तरह शीघ्र नष्ट न होने वाले कृषि खाद्य पदार्थों के मामले में पिछले 12 महीने पहले या पिछले पांच वर्षों के औसत खुदरा मूल्य की तुलना में यदि उत्पाद के वर्तमान मूल्य में 50 फीसदी वृद्धि होती है, तो इसके स्टॉक की सीमा तय की जाएगी.

हालांकि मूल्‍य श्रृंखला (वैल्‍यू चेन) के किसी भी प्रतिभागी की स्‍थापित क्षमता और किसी भी निर्यातक की निर्यात मांग इस तरह की स्‍टॉक सीमा लगाए जाने से मुक्‍त रहेगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कृषि क्षेत्र में निवेश हतोत्‍साहित न हो.

यहां ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात ये है कि सरकार को इस तरह के फैसले लेने के लिए ‘एगमार्कनेट मूल्यों’ पर निर्भर रहना पड़ेगा.

एगमार्कनेट केंद्रीय कृषि मंत्रालय का एक पोर्टल है जो कि मंडियों में कृषि उत्पादों के आवक तथा मूल्यों की जानकारी देता है.

सरकार ने एक और कानून- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 भी पारित है, जिसका इसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है.

लेकिन यदि इस कानून के लागू होने से एपीएमसी व्यवस्था खत्म होती है, तो जैसा किसान और विशेषज्ञ चिंता जता रहा है, ऐसे में एगमार्कनेट द्वारा कृषि उत्पादों के मूल्यों के आकलन को बहुत बड़ा झटका लगेगा और देश के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं के असली मूल्य का पता लगाना असंभव हो जाएगा.

ऐसा होने पर सरकार द्वारा स्टॉक लिमिट तय करने का फैसला लेना भी मुश्किल हो जाएगा. इसलिए कृषि उत्पादों के मूल्यों के आकलन के लिए सरकार को या तो नई व्यवस्था बनानी होगी या फिस ये सुनिश्चित करना होगा कि उपर्युक्त विधेयक एपीएमसी व्यवस्था को बर्बाद न करे.

क्या ये संशोधन जरूरी था

इस कानून का उद्देश्य कृषि में इन्फ्रास्ट्रक्टर जैसे कोल्ड स्टोरेज, सप्‍लाई चेन के आधुनिकीकरण आदि को बढ़ावा देना है.

केंद्र का कहना है कि वैसे तो भारत में ज्‍यादातर कृषि जिंसों या वस्‍तुओं के उत्‍पादन में अधिशेष (सरप्‍लस) की स्थिति है, लेकिन इसके बावजूद कोल्‍ड स्‍टोरेज, प्रसंस्‍करण और निर्यात में निवेश के अभाव में किसान अपनी उपज के उचित मूल्‍य पाने में असमर्थ रहे हैं क्‍योंकि आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम की लटकती तलवार के कारण उनका बिजनेस हतोत्‍साहित होता है.

ऐसे में जब भी शीघ्र नष्‍ट हो जाने वाली कृषि उपज की बंपर पैदावार होती है, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. यदि पर्याप्‍त प्रसंस्‍करण सुविधाएं उपलब्‍ध हों, तो बड़े पैमाने पर इस तरह की बर्बादी को रोका जा सकता है.

इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में भारत के कृषि अर्थव्यवस्था में विकृति के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें विशेष रूप से ये भी बताया गया है कि आवश्यक वस्तु अधिनियन के तहत कृषि उत्पादों के स्टॉक की सीमा (स्टॉक लिमिट) तय करने से न तो मूल्यों में गिरावट आई है और न ही कीमतो में अस्थिरता में कमी आई है.

जाहिर है कि सरकार ने सर्वेक्षण की इन बातों को ध्यान में रखा और ये संशोधन विधेयक लेकर आई.

हालांकि पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन कहते हैं कि इस विधेयक में कई खामियां हैं, जैसे स्टॉक लिमिट को लेकर निर्यात आदेश क्या होगा, जिनकों लेकर स्पष्टीकरण दिया जाना बाकी है.

उन्होंने कहा, ‘साल 2000-2004 के दौरान कई बेईमान गेहूं निर्यातकों ने ओपन मार्केट सेल स्कीम (निर्यात) के तहत गेहूं का निर्यात जारी रखने के लिए इसी तरह की खामियों का इस्तेमाल किया था, जिसके कारण आखिरकार 1 अप्रैल, 2006 को बफर स्टॉक अपनी सीमा के मुकाबले घटकर आधा हो गया था. सरकार को 2006-08 में लगभग 5.5 मिलियन टन गेहूं का आयात करना पड़ा था.’

हुसैन ने आगे कहा कि हमारे खाद्य स्टॉक के प्रबंधन में एक बड़ी कमी यह है कि सरकार को निजी क्षेत्र के पास उपलब्ध स्टॉक की जानकारी नहीं होती है.

उन्होंने कहा ‘गेहूं और चावल के केंद्रीय पूल के स्टॉक के मामले में, न केवल लोगों को स्टॉक की मात्रा के बारे में पता है बल्कि सरकार को एफसीआई के कम्प्यूटरीकृत स्टॉक प्रबंधन प्रणाली के माध्यम किस जगह पर कितना स्टॉक पड़ा है, वो भी पता होता है. प्राइवेट सेक्टर में रखे के स्टॉक के बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं है.’

चूंकि सरकार अब एपीएमसी के बाहर कृषि उपज के खरीददारी की व्यवस्था तैयार करने जा रही है, ऐसे में सरकार के पास ये जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए कि प्राइवेट ट्रेडर्स एवं कंपनियों के पास कितना स्टॉक पड़ा है, तभी स्टॉक लिमिट लगाने को लेकर सही समय पर फैसला लिया जा सकेगा.

विपक्ष का कहना है कि मूल्य वृद्धि के आधार पर स्टॉक लिमिट लगाने की शर्त यथार्थ से परे है और इसकी बिल्कुल संभावना है कि शायद ही कभी आसानी से इन प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाएगा. उनका कहना है कि इसके चलते अंतत: जमाखोरों को ही लाभ होगा, किसान एवं उपभोक्ता इसके शिकार होंगे.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25