राजस्थान: शिक्षक भर्ती पर आदिवासी ज़िलों में हुई हिंसा क्यों गहलोत सरकार की विफलता है

पिछले हफ़्ते राजस्थान में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित शिक्षक पदों पर अनुसूचित जनजाति वर्ग की भर्ती के लिए हुआ आंदोलन हिंसा में बदल गया था. हिंसा उदयपुर सहित प्रदेश के चार ज़िलों डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में फैल गई थी. इस दौरान दो लोगों की मौत भी हुई. क्षेत्र में अभी शांति है, लेकिन तनाव बरक़रार है.

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उदयपुर जिले के खेरवाड़ा में हिंसा के दौरान तैनात पुलिस बल. (फोटो: विशाल अग्रवाल)

पिछले हफ़्ते राजस्थान में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित शिक्षक पदों पर अनुसूचित जनजाति वर्ग की भर्ती के लिए हुआ आंदोलन हिंसा में बदल गया था. हिंसा उदयपुर सहित प्रदेश के चार ज़िलों डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में फैल गई थी. इस दौरान दो लोगों की मौत भी हुई. क्षेत्र में अभी शांति है, लेकिन तनाव बरक़रार है.

उदयपुर जिले के खेरवाड़ा में हिंसा के दौरान तैनात पुलिस बल. (फोटो: विशाल अग्रवाल)
उदयपुर जिले के खेरवाड़ा में हिंसा के दौरान तैनात पुलिस बल. (फोटो: विशाल अग्रवाल)

जयपुर: दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी जिले डूंगरपुर और उदयपुर में बीते 24 से 26 सितंबर तक हुई हिंसा के निशान अब तक सड़कों पर फैले पड़े हैं. पूरे आदिवासी अंचल में भय व्याप्त है.

डूंगरपुर से शुरू हुए शिक्षक पदों पर जनजाति वर्ग से भर्ती के आंदोलन ने उदयपुर सहित इलाके के चार जिलों डूंगरपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ को संवेदनशील बना दिया. आंदोलन कर रहे अनुसूचित जनजाति के लोगों ने उदयपुर-अहदाबाद हाइवे पर कब्जा कर लिया. होटल और पेट्रोल पंप लूटे और आगजनी की. 65 घंटे बाद हाइवे खोला गया.

शुरुआत में आंदोलन को बेहद हल्के में लेने वाले प्रशासन ने बाद में सख्ती दिखाई. पुलिस फायरिंग में अब तक दो लोगों की मौत हुई है और छह हजार से ज्यादा लोगों पर आगजनी, दंगे भड़काने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे 20 केस दर्ज किए गए हैं.

डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर में प्रशासन ने इंटरनेट बंद कर दिया था. कोरोना सैंपल में रुकावट के कारण 28 सितंबर को उदयपुर शहर में इंटरनेट सेवा बहाल की गई है. अब बाकी जिलों में भी इंटरनेट सेवा शुरू हो गई है.

स्थिति को काबू में करने के लिए राजस्थान सरकार ने अपने आला अधिकारियों की पूरी फौज इन आदिवासी जिलों में उतार दी है. रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती भी की गई है.

पुलिस, जनप्रतिनिधि और आम नागरिकों के दबाव के बाद शांति बहाल हुई है, लेकिन तनाव बरकरार है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी से शांति की अपील की है और मांगों पर उचित कार्यवाही का भरोसा दिया है.

क्या है पूरा मामला और क्यों फैली हिंसा?

12 अप्रैल 2018 को तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती में टीएसपी (ट्राइबल सब प्लान) के लिए लेवल-1 में सामान्य शिक्षा के 5,431 पदों पर भर्ती निकाली थी. टीएसपी एरिया में अनुसूचित जनजाति (एसटी) को 45 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) को 5 प्रतिशत और बाकी सीट सामान्य (अनारक्षित) वर्ग के लिए हैं.

इस तरह अनारक्षित श्रेणी के लिए 2,721 पद थे. लिखित परीक्षा में 60 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले सामान्य वर्ग के 965 अभ्यर्थियों का इसमें चयन हुआ. इन्हीं पदों पर 60 प्रतिशत से ज्यादा अंक लाने वाले एसटी के 589 युवा भी चयनित हुए.

इस तरह सामान्य या अनारक्षित वर्ग के 1,554 पद भरे गए और 1,167 पद खाली रह गए. अब एसटी वर्ग के युवा इन अनारक्षित पदों को एसटी से भरने की मांग कर रहे हैं.

अनारक्षित पद 60 प्रतिशत पर भरे गए हैं, जबकि एसटी वर्ग की मेरिट 36 प्रतिशत गई थी. आसान भाषा में समझें तो जो सीट 60 प्रतिशत अंक लाए उम्मीदवारों से भरी गई हैं, अब ये युवा उन्हीं सीटों को 36 प्रतिशत से भरने की मांग साल 2018 से कर रहे हैं.

डूंगरपुर-उदयपुर जिले की सीमा पर कांकर डूंगरी गांव की पहाड़ी पर बीते 18 दिनों से इसी मांग को लेकर एसटी वर्ग के युवा धरना-प्रदर्शन और आंदोलन कर रहे थे.

इनकी मांग पर बनी कमेटी की 24 सितंबर को मीटिंग प्रस्तावित थी, लेकिन ये रद्द हो गई. मीटिंग कैंसिल होने का संदेश जैसे ही आंदोलनकारियों के पास पहुंचा तो ये हिंसक हो गए और पहाड़ी से उतर कर हाइवे पर जमा हो गए.

24 सितंबर को डूंगरपुर के कांकरी डूंगरी में आंदोलनकारियों ने पुलिस पर हमला कर दिया. एसपी की कार सहित डीएसपी, थानेदार और 11 पुलिसकर्मी घायल हुए.

दूसरे दिन 25 सितंबर को उपद्रवियों ने हाइवे का 10 किमी से ज्यादा का क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया और पेट्रोल पंप, होटल, मकान-दुकान में लूट की. पेट्रोल पंप से चुराए गए डीजल से 25 से ज्यादा वाहन जला दिए गए.

तीसरे दिन आंदोलन डूंगरपुर से निकल कर उदयपुर जिले के खेरवाड़ा में पहुंच गया. 26 सितंबर को आंदोलन कर रहे लोगों ने पूरे खेरवाड़ा कस्बे को घेर लिया. उदयपुर-अहमदाबाद हाइवे पर 20 किमी तक पत्थर बिछा दिए.

इस दौरान पुलिस की फायरिंग में 19 साल के तरुण अहारी की मौत हो गई. रविवार को खेरवाड़ा में शांति होते ही ऋषभदेव में आंदोलनकारी सड़क पर आ गए और खूब उत्पात किया.

सब एक दूसरे का ठहरा रहे जिम्मेदार

शिक्षक भर्ती की इस मांग को क्षेत्र में प्रभाव रखने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का खुला समर्थन है. कांग्रेस और बीजेपी नेताओं में से किसी ने प्रत्यक्ष तो किसी ने अप्रत्यक्ष रूप से इस धरने का समर्थन किया हुआ था. लेकिन तीन तक चली हिंसा की जिम्मेदारी का जब सवाल आया तो सभी पार्टियां मुकर गईं.

शनिवार 26 सितंबर को हिंसा के लिए बीटीपी ने सरकार और सरकार ने प्रशासन को जिम्मेदार बताया. विपक्षी दल भाजपा ने दोनों पार्टियों को हिंसा का जिम्मेदार कहा.

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी लीडर गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि बीटीपी और कांग्रेस सरकार की मिलीभगत से हिंसा हुई है. बीटीपी के लोगों ने हिंसा की और सरकारी मशीनरी देखती रही.

चौरासी विधानसभा से बीटीपी विधायक राजकुमार रोत धरने में प्रबंधन की कमी की बात मानते हैं.

वे कहते हैं, ‘24 सितंबर को इसी मामले को लेकर उदयपुर संभाग के विधायक और अन्य जन प्रतिनिधियों के साथ आंदोलनकारियों की मीटिंग होने वाली थी, लेकिन मीटिंग रद्द हो गई. इससे आसपास के जिलों से आए युवा भी नाराज हो गए और पुलिस के साथ उनकी झड़प हो गई.’

उन्होंने कहा, ‘इस दौरान पुलिस ने ग्रामीणों के साथ मारपीट की. इससे ग्रामीण नाराज हुए और भीड़ जमा हो गई. चूंकि धरने का कोई नेता या प्रतिनिधि नहीं था, इसीलिए सड़क पर मांग अराजकता में बदल गई.’

हिंसा में पार्टी के शामिल होने के सवाल पर विधायक रोत कहते हैं, ‘ये कैसे संभव है कि हिंसा का राजनीतिक फायदा हमें मिलेगा? बल्कि इसका हमें नुकसान ही होगा. हिंसा की वजह सरकार और स्थानीय कांग्रेसी नेता हैं, जो 2018 से इन अभ्यर्थियों को सिर्फ आश्वासन दे रहे हैं.’

आगजनी और उपद्रव में बाहरी लोगों का हाथ होने से बीटीपी इनकार कर रही है. रोत कहते हैं, ‘24 सिंतबर को ग्रामीणों और महिलाओं के साथ पुलिस की कार्रवाई से गुस्सा भड़का है. अगर बाहरी लोग शामिल हैं तो सरकार किसी भी तरह की जांच कराने के लिए स्वतंत्र है.’

प्रदेश के जनजाति विकास मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया ने कहा, ‘क्षेत्र में अब पूरी तरह से शांति है. स्थानीय लोगों और आंदोलन के प्रतिनिधि मंडल से बात हुई है. भर्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने पर सहमति बनी है. सरकार इसे जल्द दाखिल करेगी. जहां तक हिंसा में बाहरी लोगों के शामिल होने का सवाल है, उसकी जांच हो रही है. जो भी दोषी होगा उस पर कानूनी के तहत कार्रवाई होगी.’

क्या ये मांग जायज है?

अनारक्षित पदों को आरक्षित उम्मीदवारों से भरने की मांग अपने आप में अजीब है. जिन पदों पर भर्ती के लिए आंदोलनकारी कह रहे हैं, वे पद भी उसी टीएसपी एरिया के अनारक्षित लोगों से भरे गए हैं. इसमें एसटी वर्ग के 60 फीसदी अंक लाने वाले अभ्यर्थी भी चयनित हुए हैं.

उदयपुर में वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन कहते हैं, ‘जो कांग्रेस केंद्र की भाजपा सरकार पर समाज को बांटने के आरोप लगा रही है, उसके नेताओं ने आदिवासी क्षेत्र में यही किया है. प्रेस कॉन्फ्रेंस या मीडिया के जरिये युवाओं के इस बारे में पहले क्यों नहीं बताया? कांग्रेसी आदिवासी समाज के बीच में जाते ही नहीं हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह बीजेपी जो कश्मीर में 370 का विरोध करती थी, यहां समाज को बांटने वालों का विरोध नहीं कर रही. बीजेपी और कांग्रेस आदिवासियों के मुद्दों पर गोलमोल बात करते हैं, क्योंकि उसका प्रभाव पूरे प्रदेश में पड़ता है. जबकि बीटीपी का एजेंडा ही आदिवासी हैं. आदिवासियों की कोई भी गतिविधि बीटीपी को फायदा पहुंचाती है. ये हिंसा भी बीटीपी को युवाओं में अपनी मौजूदगी बढ़ाएगी कि पार्टी उनके मुद्दों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है.’

सरकार की विफलता 

सामान्य सीटों पर भर्ती की मांग को लेकर क्षेत्र में 2018 से ही धरना प्रदर्शन चल रहे हैं. डूंगरपुर कलेक्ट्रेट के बाहर धरना भी दिया गया जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रतिनिधि मंडल की मुलाकात के बाद खत्म हुआ. मांगों को लेकर सरकार और स्थानीय नेताओं का सकारात्मक रवैया नहीं रहा.

इसके बाद कांकरी डूंगरी में धरना शुरू हुआ. इसमें आंदोलनकारियों से हुई बातचीत में एक कमेटी के गठन का निर्णय हुआ. इस कमेटी को तीन माह में अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन नौ महीने बाद भी कमेटी की रिपोर्ट पेश नहीं हो पाई है.

अभी हुई हिंसा में सरकार की इंटेलिजेंस बिलकुल फेल रही. प्रशासन और धरने पर लगातार जा रहे नेता ये अंदाजा नहीं लगा पाए कि लगातार बढ़ रही भीड़ और अन्य जिलों के युवाओं का समर्थन माहौल को बिगाड़ रहा है.

त्रिभुवन बताते हैं, ‘सत्तारूढ़ पार्टी यह भांप ही नहीं पाई कि आंदोलन इतना बड़ा हो जाएगा और इसमें दो युवाओं की मौत हो जाएगी. कुल मिलाकर प्रशासनिक और राजनीतिक तौर पर सरकार की यह बहुत बड़ी चूक है.’

आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा

देश के बाकी आदिवासी क्षेत्रों की तरह राजस्थान के आदिवासी जिले भी काफी पिछड़े हुए हैं. शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए नसीब नहीं हैं.

2011 जनगणना के अनुसार डूंगरपुर की साक्षरता दर महज 59.46 प्रतिशत है. इसमें पुरुषों की 72.88 प्रतिशत है, लेकिन महिलाएं साक्षरता के मामले में काफी पीछे हैं. सिर्फ 46.16 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर हैं.

क्षेत्र में 70 फीसदी आबादी एसटी की है. 3.76 प्रतिशत एससी हैं और बाकी अन्य वर्ग के समुदाय यहां हैं.

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की कार्यकर्ता मधुलिका बताती हैं, ‘इस आंदोलन की हिंसा ने आदिवासी क्षेत्र का नुकसान किया है. बेहतर होता कि इस आंदोलन के माध्यम से पूरे क्षेत्र की बिगड़ी हुई शिक्षा और चिकित्सा सेवा पर बात होती. खासकर महिला साक्षरता के लिए कोई मांग उठती. आदिवासियों की अपनी बहुत समस्या हैं, लेकिन इस आंदोलन की हिंसा तले अब कुछ समय तक सब दब चुका है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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