अदालत के आदेशों का अनुपालन पहली बार में नहीं कर रहे यूपी सरकार के अधिकारी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लगता है कि अधिकारी पहली बार में आदेश का अनुपालन नहीं करने के आदी हो रहे हैं. यह बहुत खेदपूर्ण स्थिति है.

इलाहाबाद हाइकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लगता है कि अधिकारी पहली बार में आदेश का अनुपालन नहीं करने के आदी हो रहे हैं. यह बहुत खेदपूर्ण स्थिति है.

इलाहाबाद हाइकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
इलाहाबाद हाइकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चिंता व्यक्त की है कि प्रदेश सरकार के अधिकारी अदालत द्वारा पारित आदेशों का पहली बार में अनुपालन नहीं कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित पक्ष इन आदेशों का अनुपालन कराने को अवमानना की याचिका दायर करने को बाध्य है.

अदालत के आदेश का जान-बूझकर अवज्ञा करने के लिए प्रदेश के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा, ‘लगता है कि अधिकारी पहली बार में आदेश का अनुपालन नहीं करने के आदी हो रहे हैं. यह बहुत खेदपूर्ण स्थिति है.’

उषा सिंह द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विवेक बिड़ला ने पिछले गुरुवार (एक अक्टूबर) को पारित अपने आदेश में कहा था, ‘यह अदालत हर दिन देख रही है कि निर्देश के बावजूद संबद्ध अधिकारी पहली बार में आदेश का अनुपालन नहीं कर रहे हैं और पीड़ित पक्ष अवमानना याचिका दायर करने को बाध्य हैं. अदालत के आदेश का अनुपालन करने के लिए और मोहलत लेने के बाद भी आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है.’

यह अवमानना याचिका दूसरे पक्षों- बाल विकास सेवा के निदेशक शत्रुघ्न सिंह एवं अन्य को दंडित करने के लिए दायर की गई थी, जिन्होंने एक नवंबर, 2019 के फैसले और आदेश का अनुपालन नहीं किया और दो मार्च, 2020 को अवमानना याचिका पर पारित फैसले का अनुपालन नहीं किया.

याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि इस अदालत द्वारा एक नवंबर, 2019 को पारित आदेश की प्रति दूसरे पक्ष को उपलब्ध कराई गई. जब इस संबंध में कुछ नहीं हुआ तो याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की, जिस पर 2 मार्च, 2020 को पारित आदेश में अदालत के पूर्व के आदेश का अनुपालन के लिए और मोहलत दी गई.

आरोप लगाया गया कि अवमानना के आदेश की प्रति सौंपे जाने और मियाद खत्म होने के बाद भी दूसरे पक्ष द्वारा कोई निर्णय नहीं किया गया.

इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अदालत ने कहा, ‘प्रथमदृष्टया जान-बूझकर आदेश का अनुपालन नहीं करने के लिए यह दूसरे पक्ष को दंडित करने का मामला बनता है. अपेक्षा की जाती है कि दूसरा पक्ष आदेश का अनुपालन करने का हर प्रयास करेगा और इस संबंध में अपने अधीनस्थ अधिकारियों को आवश्यक आदेश जारी करेगा. अन्यथा अदालत इस मामले को गंभीरता से लेगा.’

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