तबलीग़ी जमात केस: अदालत ने कहा, बोलने की आज़ादी के अधिकार का सर्वाधिक दुरुपयोग हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कोरोना महामारी की शुरुआत के समय तबलीग़ी जमात के आयोजन को लेकर मीडिया का एक वर्ग मुस्लिमों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा था. मीडिया का बचाव करते हुए केंद्र की ओर से कहा गया है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलना चाहते हैं.

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(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कोरोना महामारी की शुरुआत के समय तबलीग़ी जमात के आयोजन को लेकर मीडिया का एक वर्ग मुस्लिमों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा था. मीडिया का बचाव करते हुए केंद्र की ओर से कहा गया है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलना चाहते हैं.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि हाल के समय में बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का ‘सबसे ज्यादा’ दुरुपयोग हुआ है.

इस टिप्पणी के साथ ही न्यायालय इस साल के शुरू के तबलीगी जमात के मामले में मीडिया की कवरेज को लेकर दायर हलफनामे को ‘जवाब देने से बचने वाला’ और ‘निर्लज्ज’ बताते हुए केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जमीयत-उलमा-ए-हिंद और अन्य की उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह तल्ख टिप्पणी की.

इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि कोविड-19 महामारी की शुरुआत के समय तबलीगी जमात के आयोजन को लेकर मीडिया का एक वर्ग सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा था.

पीठ ने कहा, ‘बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हाल के समय में सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है.’

पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब जमात की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना चाहते हैं.

इस पर पीठ ने कहा, ‘वे अपने हलफनामे में कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं, जैसे आप अपने हिसाब से कोई भी दलील पेश करने के लिए स्वतंत्र हैं.’

हालांकि, पीठ इस बात से नाराज थी कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव के बजाय अतिरिक्त सचिव ने यह हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें तबलीगी जमात के मुद्दे पर ‘अनावश्यक’ और ‘बेतुकी’ बातें कही गई हैं.

पीठ ने सख्त लहजे में कहा, ‘आप इस न्यायालय के साथ इस तरह का सलूक नहीं कर सकते, जैसा कि इस मामले में आप कर रहे हैं.’

शीर्ष अदालत ने सूचना एवं प्रसारण सचिव को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें इस तरह के मामलों में मीडिया की अभिप्रेरित (भावनाएं भड़काने वाली) रिपोर्टिंग को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण हो.

पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.

इस याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि उसने केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (नियमन) कानून, 1995 का अवलोकन किया है. इसकी धारा 20 जनहित में केबल टेलीविजन नेटवर्क का संचालन निषेध करने के अधिकार के बारे में है.

पीठ ने कहा, ‘हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं, इस अधिकार का इस्तेमाल टीवी कार्यक्रम के मामले में होता है, लेकिन प्रसारण के सिग्नल के मामले में नहीं. यह कानून मदद नहीं करता. सरकार ने जो हलफनामा दाखिल किया है, उसमें कहा है कि परामर्श जारी किए गए हैं.’

दवे ने केबल टेलीविजन कानून के तहत अधिकार का जिक्र किया और कहा कि कई बार सरकार ने सही तरीके से इस अधिकार का इस्तेमाल किया है.

पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अतिरिक्त सचिव ने हलफनामा दाखिल किया है, लेकिन इसमें आरोपों पर टिप्पणी नहीं की गई है.

पीठ ने कहा, ‘इसमें मूर्खतापूर्ण तर्क दिया गया है. यह जवाब देने से बचने जैसा हलफनामा है.’

केंद्र ने अगस्त में शीर्ष अदालत से कहा था कि निजामुद्दीन मरकज (नई दिल्ली) के मसले पर मुस्लिम संस्था द्वारा मीडिया की रिपोर्टिंग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश प्राप्त करने का यह प्रयास जानकारी प्राप्त करने के नागरिकों के अधिकार और समाज को जानकारी से अवगत कराने के पत्रकारों के अधिकार को एक तरह से खत्म कर देगा.

सरकार ने कहा था कि किसी चैनल या एजेंसी द्वारा किसी आपत्तिजनक खबर के प्रकाशन या प्रसारण के बारे में स्पष्ट जानकारी के बगैर संविधान और इसमें लागू होने वाले कानून केबल टेलीविजन नेटवर्क्स नियमों के तहत किसी भी तरह का एकतरफा निंदा आदेश पारित करने का किसी को अधिकार नहीं देते हैं.

जमीअत की याचिका के जवाब में केंद्र ने कहा था कि यह निजामुद्दीन मरकज मामले के संबंध में समूचे मीडिया पर बंदिश लगाने का आदेश हासिल करने का प्रयास है, जो राष्ट्र के संबंधित वर्गों की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के नागरिक की स्वतंत्रता और समाज को जानकारी देने के पत्रकारों के अधिकार को नष्ट कर देगा.

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने शीर्ष अदालत में दायर इस याचिका में निजामुद्दीन मरकज में धार्मिक आयोजन के बारे में ‘झूठी खबरें’ का संप्रेषण रोकने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है. याचिका में इस तरह की खबरें संप्रेषित करने के दोषी व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.

मध्य दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में मार्च में तबलीगी जमात के आयोजन पर आरोप लगाया गया था कि उसने कोविड-19 का संक्रमण देश के विभिन्न हिस्सों तक फैलाया है.

बीते अप्रैल माह में दाखिल याचिका में केंद्र सरकार को निजामुद्दीन मरकज मामले को लेकर फर्जी खबर फैलाने पर रोक लगाने और सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए मीडिया के एक धड़े पर कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई है.

इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि बहुत सारी फर्जी रिपोर्ट और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे हैं, जिसमें मुसलमानों की गलत छवि प्रसारित की जा रही है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि इस तरह की मीडिया रिपोर्टिंग से सांप्रदायिक तनाव और घृणा फैल गई है, जिसकी वजह से समाज को बांटने वाली प्रवृत्तियों को बल मिला है और इससे सांप्रदायिक सद्भाव प्रभावित हो रहा है.

याचिका में कहा गया है कि इस तरह के प्रस्तुतीकरण से मुसलमान के जीवन और स्वतंत्रता पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है और इस तरह से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले जीवन के अधिकार का उल्लंघन हुआ है.

अप्रैल में सुनवाई के दौरान जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा था कि अगर निज़ामुद्दीन मरकज़ ने लॉकडाउन के नियमों की अवहेलना की हो तो उसकी निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए. साथ में यह भी देखना चाहिए कहां-कहां ऐसी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियां हुईं, जिसमें लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन हुआ.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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