एनएचआरसी की एडवाइज़री में सेक्स वर्कर्स ‘वीमेन ऐट वर्क’ के तौर पर सूचीबद्ध

एनएचआरसी की एडवाइज़री में कहा गया है कि सेक्स वर्कर्स को अनौपचारिक कामगार के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन जैसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने के लिए उन्हें अस्थायी दस्तावेज जारी किया जाना चाहिए. कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण इनकी दयनीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह क़दम उठाया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटोः रॉयटर्स)

एनएचआरसी की एडवाइज़री में कहा गया है कि सेक्स वर्कर्स को अनौपचारिक कामगार के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन जैसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने के लिए उन्हें अस्थायी दस्तावेज जारी किया जाना चाहिए. कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण इनकी दयनीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह क़दम उठाया गया है.

(फोटोः रॉयटर्स)
(फोटोः रॉयटर्स)

पुणेः कोरोना वायरस को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी एडवाइजरी में सेक्स वर्कर्स को ‘वीमेन एट वर्क’ श्रेणी के तहत सूचीबद्ध किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएचआरसी की संयुक्त सचिव अनीता सिन्हा ने कहा कि एनएचआरसी ने कोरोना वायरस के संदर्भ में महिला अधिकारों को लेकर सात अक्टूबर को एडवाइजरी जारी की थी, जो विशेषज्ञों द्वारा किए गए प्रभाव आकलन पर आधारित थी.

सर्कुलर में कहा गया, ‘आयोग समाज के कमजोर और हाशिये पर मौजूद लोगों के अधिकारों को लेकर चिंतित रहा है, जिन पर कोरोना और उसके बाद हुए लॉकडाउन का प्रभाव पड़ा है.’

इस समिति में नागरिक समाज संगठनों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और मंत्रालयों एवं विभागों के प्रतिनिधि शामिल हैं. उनकी सलाह के आधार पर एनएचआरसी ने एडवाइजरी जारी की है.

महाराष्ट्र के संगठन ‘संग्राम’ की मीना सेशू और ‘सहेली’ संगठन की तेजस्वी सेवेकारी, कई कार्यकर्ता और सेक्स वर्कर्स संगठन ने ‘वीमेन एट वर्क’ के तौर पर सेक्स वर्कर्स को सूचीबद्ध करने किए जाने का स्वागत किया है.

सेशू ने कहा, ‘एनएचआरसी ने कोविड को लेकर जारी की गई एडवाइजरी में सेक्स वर्कर्स के सुझावों को शामिल किया है, जो एक स्वागय योग्य कदम है.’

भारत में महिला, ट्रांस और पुरुष सेक्स वर्कर्स के संगठन नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (एनएनएसडब्ल्यू) के मुताबिक, सेक्स वर्क एक गरिमापूर्ण काम है. एनएनएसडब्ल्यू 1.5 लाख से अधिक महिला, ट्रांस और पुरुष सेक्स वर्कर्स का एक नेटवर्क है, जो आठ राज्यों में 72 संगठनों के साथ इससे जुड़े हुए हैं.

एनएसएनडब्ल्यू के मुताबिक, ‘सेक्स वर्कर्स (महिला, पुरुष और ट्रांस) की एक बड़ी आबादी घर से काम करती है और मोबाइल फोन, स्वतंत्र रूप से या एजेंट के जरिये ग्राहकों का इंतजाम करते हैं. बड़ी संख्या में महिलाएं गृहणियां हैं और उनका परिवार उनके इस काम को नहीं जानता. कोरोना के दौरान इन सेक्स वर्कर्स की जिंदगी पूरी तरह थम गई थी. वे अपने परिवारों को अपनी आजीविका जाने का कारण बताने में असमर्थ थी और वेश्यालयों में सेक्स वर्कर्स को दी जाने वाली राहत सामग्री तक वे पहुंच नहीं बना पा रही थीं.’

एनएचआरसी की एडवाइजरी में कहा गया है कि सेक्स वर्कर्स को अनौपचारिक कामगार के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन जैसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने के लिए उन्हें अस्थायी दस्तावेज जारी किया जाना चाहिए.

एडवाइजरी में दिए गए अन्य सुझावों में जेंडर के आधार पर हिंसा को लेकर टास्क फोर्स का गठन करना, नि:शुल्क गर्भनिरोधक प्रदान करने से लेकर महिला कामगारों द्वारा लिए गए ऋण के भुगतान पर अस्थायी रोक लगाना शामिल है.

बता दें कि एनएचआरसी की एडवाइजरी ऐसे समय पर आई है जबकि हाल में ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कि वेश्यावृत्ति को एक आपराधिक कृत्य मानता हो या किसी को इस वजह से सजा देता हो कि वह वेश्यावृत्ति में संलिप्त है.

सितंबर महीने में उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा चिह्नित यौनकर्मियों को पहचान का सबूत पेश करने के लिए बाध्य किए बगैर ही सूखा राशन (दाल, आटा, चावल, चीनी और मिल्क पाउडर इत्यादि) उपलब्ध कराएं.

इससे पहले शीर्ष अदालत ने यौनकर्मियों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुए कहा था कि जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही केंद्र और राज्य से यौनकर्मियों को मासिक राशन और नकद मुहैया कराने पर विचार करने के लिए कहा था.

याचिका दाखिल करने वाले गैर सरकारी संगठन दरबार महिला समन्वय समिति का कहना है कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना में 1.2 लाख यौनकर्मियों के बीच किए गए सर्वे से पता चला कि महामारी की वजह से इनमें से 96 फीसदी अपनी आमदनी का जरिया खो चुकी हैं. राशन कार्ड न होने की वजह से इन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा था.

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