नगा कभी भारत का हिस्सा नहीं बनेंगे, न ही भारतीय संविधान स्वीकार करेंगे: एनएससीएन आईएम प्रमुख

विशेष: द वायर के साथ बातचीत में एनएससीएन-आईएम के प्रमुख टी. मुइवाह ने दोहराया कि भारत सरकार के साथ चल रही शांति वार्ता में उनका संगठन अलग झंडे और संविधान की मांग पर कोई समझौता नहीं करेगा.

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एनएससीएन-आईएम प्रमुख टी. मुइवाह और करण थापर. (फोटो: द वायर)

विशेष: द वायर के साथ बातचीत में एनएससीएन-आईएम के प्रमुख टी. मुइवाह ने दोहराया कि भारत सरकार के साथ चल रही शांति वार्ता में उनका संगठन अलग झंडे और संविधान की मांग पर कोई समझौता नहीं करेगा.

एनएससीएन-आईएम प्रमुख टी. मुइवाह और करण थापर. (फोटो: द वायर)
एनएससीएन-आईएम प्रमुख टी. मुइवाह और करण थापर. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार और नगा समूहों के बीच चल रही शांति वार्ता की प्रक्रिया में हाल ही में आए तनाव के बीच सबसे बड़े नगा संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम-इसाक मुइवाह (एनएससीएन-आईएम) के प्रमुख टी. मुइवाह ने जोर देकर कहा कि नगा कभी भारतीय संघ का हिस्सा नहीं बनेंगे और न ही वे भारतीय संविधान को स्वीकार करेंगे.

द वायर  के लिए करण थापर को दिए 55 मिनट के साक्षात्कार में उनके संगठन और भारत सरकार के बीच हुए मतभेद स्पष्ट नजर आए और मुइवाह ने साफ किया कि एनएससीएन-आईएम की अलग नगा झंडे और नगा संविधान की मांग पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘हम इन दोनों समझौता न होने वाले मुद्दों पर दृढ़ रहे हैं और इस पर आखिर तक अडिग रहेंगे.’

मुइवाह ने कहा कि अलग नगा झंडे और संविधान की मांग न करने वाले नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप (एनएनपीजी) और कई नागरिक संगठन ‘गद्दार’ हैं.

86 वर्षीय मुइवाह ने नगालैंड के राज्यपाल और शांति प्रक्रिया में सरकार की ओर से वार्ताकार आरएन रवि की तीखी आलोचना की.

उन्होंने कहा कि रवि ने एनएससीएन-आईएम को ‘धोखा दिया,’ उन्हें निकालकर बाहर कर दिया और वे केंद्रीय गृह मंत्रालय के इशारे पर काम कर रहे थे.

यह बताते हुए कि एनएससीएन-आईएम का सब्र अब खत्म हो रहा है, मुइवाह ने कहा कि अगर सरकार उनकी शर्तों पर राजी नहीं होती है या पिछले समझौतों से पीछे हटती है तो वे ‘वार्ता छोड़ने के लिए विवश होंगे.’

हालांकि कई बार पूछे जाने पर भी उन्होंने यह साफ नहीं किया कि वे इस वार्ता को और कितना समय देने को तैयार हैं.

उन्होंने यह बताने से भी लगातार इनकार किया कि अगर वे शांति वार्ता छोड़कर जाते हैं तो क्या एनएससीएन-आईएम नगालैंड में 1997 के सीजफायर के पहले की (सशस्त्र) स्थिति में वापस जा सकता है.

गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है.

सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता साल 1997 से शुरू हुई. नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं.

18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए रूपरेखा समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए गए.

एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुइवाह और वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

तीन साल पहले केंद्र ने एक समझौते (डीड ऑफ कमिटमेंट) पर हस्ताक्षर कर आधिकारिक रूप से छह एनएनपीजी के साथ बातचीत का दायरा बढ़ाया था.

अक्टूबर 2019 में आधिकारिक तौर पर इन समूहों के साथ हो रही शांति वार्ता खत्म हो चुकी है, लेकिन नगालैंड के दशकों पुराने सियासी संकट के लिए हुए अंतिम समझौते का आना अभी बाकी है.

बता दें कि बीते अगस्त में एनएससीएन-आईएम नेतृत्व दिल्ली पहुंचा था और उनकी आधिकारिक स्तर की वार्ता हुई थी. इस बीच उनकी ओर से अपने अलग झंडे, संविधान और ग्रेटर नगालिम की मांगें दोहराई गई थीं.

उसी दौरान 14 अगस्त को संगठन प्रमुख टी. मुईवाह ने कहा कि अलग झंडे, संविधान और ग्रेटर नगालिम के बिना कोई समाधान नहीं निकल सकता.

मुईवाह  का कहना था, ‘सात दशकों पुराने हिंसक आंदोलन का सम्मानजनक समाधान बिना झंडे और संविधान के मुमकिन नहीं है. नगा लोग भारत के साथ संप्रभु अधिकारों को साझा करते हुए सह-अस्तित्व में रहेंगे, जैसा कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में स्वीकृत और परिभाषित किया गया, लेकिन वो भारत के साथ विलय नहीं करेंगे.’

2015 में केंद्र सरकार के साथ हुए समझौता मसौदे के बाद यह पहली बार था जब मुईवाह ने कहा था कि अलग झंडे और संविधान को लेकर वे कोई समझौता नहीं करेंगे.

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एग्रीमेंट में सभी नगा इलाकों को एक साथ लाकर ‘ग्रेटर नगालिम’ बनाने की बात भी हुई है. मालूम हो कि ग्रेटर नगालिम में असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के भी क्षेत्र आते हैं. इन राज्यों में इस प्रस्ताव का भारी विरोध होता रहा है.

बताया गया है कि केंद्र सरकार पहले ही संगठन की इन मांगों पर असहमति जता चुकी है, ऐसे में इस पूरी शांति प्रक्रिया के बेपटरी होने के आसार बनते दिख रहे हैं.

इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में जब शांति वार्ता आधिकारिक तौर पर पूरी हुई थी, तब केंद्र की ओर से वार्ताकार आरएन रवि ने एनएससीएन-आईएम की अलग झंडे और संविधान की मांग को भी खारिज कर दिया था.

करण थापर ने साक्षात्कार के दौरान उनसे पूछा कि अगर वार्ता विफल हो जाती है, तब क्या उग्रवाद का दौर फिर लौट सकता है, जिस पर उन्होंने कहा, ‘आपको यह सवाल भारत सरकार से पूछना चाहिए.’

साक्षात्कार के दौरान शुरुआत से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि मुइवाह के तर्कों का मुख्य बिंदु उनका यह मानना है कि नगाओं का अपना अलग इतिहास और विशेष पहचान है. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक तौर पर नगा कभी भारत के शासन में नहीं रहे हैं.

उन्होंने बार-बार यही कहा कि इस बात को भारत सरकार द्वारा स्वीकार किया जा चुका है, इसीलिए उनका कहना है क्योंकि नगाओं की एक अलग पहचान और इतिहास हैं, इसलिए उनकी समस्या का समाधान भी अलग होना चाहिए.

यह पूछे जाने पर कि भारत सरकार के अलग नगा झंडे और संविधान की मांग अस्वीकार करना तनाव का बिंदु बनेगा, मुइवाह ने कहा कि अलग झंडे और संविधान के बिना कोई समाधान नहीं हो सकता.

उन्होंने इस बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया कि जब सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान ख़त्म करते हुए कश्मीर के झंडे और संविधान को अस्वीकृत करार दे दिया, तो अब वे इस बात को नगालैंड के संदर्भ में नहीं मान सकते.

मुइवाह ने कहा कि विशेष नगा इतिहास और पहचान का मतलब केवल यह नहीं है कि समाधान विशेष होना चाहिए, बल्कि यह भी है कि जम्मू कश्मीर की मिसाल यहां लागू नहीं हो सकती.

जब उन्हें यह बताया गया कि एनएनपीजी जैसे राजनीतिक संगठन और कई नागरिक संगठन झंडे-संविधान की मांग नहीं उठा रहे हैं, तब मुइवाह ने उन्हें ‘गद्दार’ बताया.

बता दें कि 15 अक्टूबर को सभी एनएनपीजी समूह और नागरिक संगठनों ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करते हुए चल रही वार्ता को ‘एक स्वर’ में समर्थन देने की बात कही है. हालांकि एनएससीएन-आईएम की अलग झंडे की मांग पर उन्होंने कुछ नहीं कहा.

द वायर  से एनएससीएन-आईएम और भारत सरकार के बीच 2015 में हुए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में ‘संप्रभु सत्ता साझा करने’ की बात करते हुए मुइवाह ने इस बात पर जोर दिया कि इसका अर्थ यह नहीं है कि नगा भारतीय संविधान को स्वीकार कर लेंगे और इसके तहत आएंगे.

उनके मुताबिक, एक विशेष इतिहास और पहचान रखने का अर्थ ही है कि उनका अपना संविधान होगा. उन्होंने इस बात को भी दोहराया कि नगा कभी भारतीय संघ का हिस्सा नहीं बनेंगे.

इस बातचीत के दौरान मुइवाह ने लगातार नगा और भारत सरकार के दो अलग-अलग सत्ता बताया और एक बिंदु पर तो यहां तक कहा कि वे दो अलग राष्ट्र हैं.

उन्होंने अगस्त में कही हुई अपनी बात कि ‘नगा भारत में विलय नहीं होंगे‘ भी दोहराई.

एनएससीएन-आईएम द्वारा सभी नगा इलाकों को साथ लाकर ‘नगालिम’ बनाने की मांग पर मुइवाह ने कहा कि यह अब भी उनकी मांगों का महत्वपूर्ण हिस्सा है.

उन्होंने कहा कि रवि द्वारा प्रस्तावित पैन नगा होहो, जो बिना किसी राजनीतिक भूमिका या कार्यकारी अधिकार वाली एक सांस्कृतिक संस्था होगी, और संविधान की छठी अनुसूची के तहत मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नगा बसे इलाकों के लिए नगा क्षेत्रीय क्षेत्रीय परिषदें, शुरुआती कदम के तौर पर स्वीकार्य हैं. हालांकि उद्देश्य सभी नगा इलाकों का नगालिम में एकीकरण है.

उन्होंने यह भी दावा किया कि रवि ने यह बात मानी थी कि यह केवल एक अस्थायी उपाय है और सभी नगा क्षेत्रों का एकीकरण होना चाहिए.

हालांकि साक्षात्कार के दौरान मुइवाह ने दृढ़ता के साथ कहा कि रवि पर उनका भरोसा कम हुआ है.

इस बात की पुष्टि करते हुए कि इस साल की शुरुआत में फरवरी महीने में मुइवाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने बिना किसी पूर्व शर्त के ‘उच्च स्तरीय बातचीत’ किसी तीसरे देश में किए जाने की मांग रखी थी, उन्होंने कहा कि आठ महीने बीत जाने के बाद भी उन्हें इस बारे में आधिकारिक जवाब नहीं मिला है.

उन्होंने कहा कि 23 सालों से यह बातचीत जारी रहने के बावजूद एनएससीएन-आईएम में अब भी सब्र बचा हुआ है.

उन्होंने बिना अधिक जानकारी दिए इस बात को कई बार दोहराया कि पहले कई बिंदुओं पर सहमति बनी थी, लेकिन अब रवि इनसे पीछे हटते नजर आ रहे हैं.

मुइवाह ने बातचीत की शुरुआत में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जिक्र किया और उनकी ‘कट्टरता’ और नगाओं के विशेष इतिहास और पहचान को न स्वीकारने को लेकर उनकी आलोचना की, हालांकि बातचीत के अंत में उन्होंने नरेंद्र मोदी की तुलना नेहरू से करते हुए कहा कि उनकी सरकार भी उसी तरह हठी है.

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