बीते क़रीब तीन साल में हर 35 दिन में दिल्ली पुलिस के एक कर्मचारी ने ख़ुदकुशी की: आरटीआई

समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा आरटीआई के तहत दायर आवेदन के जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया कि जनवरी 2017 से 30 जून 2020 तक दिल्ली के 37 कर्मचारियों और अधिकारियों ने आत्महत्या की है. पिछले 42 महीनों में 14 कर्मचारियों ने ड्यूटी के दौरान जान दी, जबकि 23 कर्मचारियों ने ‘ऑफ ड्यूटी’ आत्महत्या की.

दिल्ली पुलिस (फोटो: रायटर्स)

समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा आरटीआई के तहत दायर आवेदन के जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया कि जनवरी 2017 से 30 जून 2020 तक दिल्ली के 37 कर्मचारियों और अधिकारियों ने आत्महत्या की है. पिछले 42 महीनों में 14 कर्मचारियों ने ड्यूटी के दौरान जान दी, जबकि 23 कर्मचारियों ने ‘ऑफ ड्यूटी’ आत्महत्या की.

दिल्ली पुलिस (फोटो: रायटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रायटर्स)

नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस के कर्मचारी किस कदर तनाव में रहते हैं, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते 3.5 साल में औसतन हर 35 दिन में एक कर्मचारी ने आत्महत्या की.

दिल्ली पुलिस ने समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत दायर आवेदन के जवाब में बताया कि जनवरी 2017 से 30 जून 2020 तक बल के 37 कर्मचारियों और अधिकारियों ने आत्महत्या की है, लेकिन खुदकुशी करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या सिपाही और प्रधान सिपाही स्तर के कर्मचारियों की है.

पुलिस से मिली सूचना के मुताबिक, पिछले 42 महीनों में 14 कर्मचारियों ने ड्यूटी के दौरान जान दी, जबकि 23 कर्मचारियों ने ‘ऑफ ड्यूटी’ आत्महत्या की.

दिल्ली पुलिस, आरटीआई के तहत सामने आई जानकारी पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने को राजी नहीं हुई, लेकिन निजी बातचीत में कई कर्मचारियों ने कहा कि बल के कर्मचारी लंबी ड्यूटी की वजह से काफी तनाव में रहते हैं और संभवत: इस वजह से वे जिंदगी को खत्म करने जैसा अतिवादी कदम उठा लेते हैं.

दिल्ली पुलिस से आरटीआई आवेदन में पूछा गया था कि जनवरी 2017 से 30 जून 2020 तक कितने कर्मचारियों ने खुदकुशी की है और उनका रैंक क्या है.

पुलिस ने अपने जवाब में बताया कि आत्महत्या करने वालों में 13 सिपाही, 15 प्रधान सिपाही, तीन सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई), तीन उपनिरीक्षक (एसआई) और दो निरीक्षक शामिल हैं.

ड्यूटी के दौरान 14 कर्मचारियों ने खुदकुशी की, जिनमें छह प्रधान सिपाही, चार सिपाही, एक एएसआई और एक एसआई शामिल हैं. वहीं ‘ऑफ ड्यूटी’ अपनी जान देने वालों में नौ सिपाही, छह प्रधान सिपाही, दो एएसआई, दो एसआई और एक निरीक्षक शामिल हैं.

जवाब में पांच कर्मचारियों की खुदकुशी के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई कि उन्होंने ड्यूटी के दौरान आत्महत्या की या ‘ऑफ ड्यूटी’ के समय. इनमें एक निरीक्षक, एक एएसआई और तीन प्रधान सिपाही शामिल हैं. ये कर्मचारी सुरक्षा इकाई में तैनात थे.

पुलिस ने बताया है कि अपनी जान देने वाले कर्मचारियों में दो महिला सिपाही भी शामिल हैं. इनमें से एक द्वारका जिले में तैनात थीं, जबकि दूसरी तृतीय वाहिनी से संबंधित थीं.

इस बाबत पुलिस के प्रवक्ता ई. सिंघला से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने ‘पीटीआई’ की ओर से भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.

वहीं, पुलिस के प्रधान सिपाही और सिपाही स्तर के कर्मचारियों ने बताया कि थानों में स्टाफ की कमी है, जिस वजह से दबाव ज्यादा है. 12-12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है.

उन्होंने बताया कि कई कर्मचारियों की ड्यूटी पिकेट पर भी लगा दी जाती है और बीट की जिम्मेदारी भी दी जाती है, जिससे काम का दबाव और बढ़ जाता है. इसके अलावा उन्हें साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलता है.

कर्मचारियों ने बताया कि अगर रात्रि पाली में ड्यूटी लगी है और अगले दिन अदालत का समन है तो वहां भी पेश होना होता है. इस बीच कोई आराम नहीं मिलता है और रात में फिर ड्यूटी करनी होती है, जिससे नींद पूरी नहीं होती. साथ में काम के दबाव के कारण निजी जीवन के लिए वक्त नहीं मिल पाता है. इन कारणों से कर्मचारी चिड़चिड़े हो जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं और अपनी जान देने तक का कदम उठा लेते हैं.

उधर, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के एक थाने के प्रभारी (एसएचओ) ने कहा कि थाने में तैनाती के दौरान दबाव तो रहता है, लेकिन 30 प्रतिशत काम का दबाव होता है और 70 प्रतिशत निजी जिंदगी का.

उन्होंने कहा, ‘दिल्ली पुलिस काफी लचीलापन रखती है, अगर मैं लिखकर दे दूं कि मुझे थाने में तैनाती नहीं चाहिए तो मेरा तबादला हो जाएगा.’

वहीं, एम्स के मनोचिकित्सा एवं राष्‍ट्रीय औषध निर्भरता उपचार केंद्र के डॉक्टर श्रीनिवास राजकुमार टी. ने बताया कि दिल्ली पुलिस में खुदकुशी का औसत काफी ज्यादा है. आत्महत्या का राष्ट्रीय औसत प्रति लाख पर 11 का है.

उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कर्मचारियों को संवेदनशील करने की जरूरत है तथा समय-समय पर उनकी जांच होनी चाहिए.

डॉ. श्रीनिवास ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या का मामला किसी के साथ भी हो सकता है. यह वैसा ही है, जैसे बुखार हो जाता है इसलिए इसे किसी कमजोरी के तौर पर नहीं लेना चाहिए. इसकी पहचान कर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए. बिना दवाई के जीवनशैली में बदलाव कर इसका उपचार संभव है.

उन्होंने बताया कि इंसान जब तनाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता है और समाज उसकी मदद नहीं करता है तो उसे कोई उम्मीद नहीं दिखती है तथा वह अपनी जान देने जैसा कदम उठा लेता है.