इशरत जहां एनकाउंटर: अदालत ने आरोपमुक्ति का आग्रह करने वाली पुलिस अफ़सरों की याचिकाएं ख़ारिज की

गुजरात में अहमदाबाद शहर के बाहरी इलाके में साल 2004 को गुजरात पुलिस के साथ कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में इशरत जहां समेत तीन अन्य लोग मारे गए थे. इशरत जहां मुंबई के समीप मुंब्रा की कॉलेज छात्रा थीं.

(फोटो: पीटीआई)

गुजरात में अहमदाबाद शहर के बाहरी इलाके में साल 2004 को गुजरात पुलिस के साथ कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में इशरत जहां समेत तीन अन्य लोग मारे गए थे. इशरत जहां मुंबई के समीप मुंब्रा की कॉलेज छात्रा थीं.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

अहमदाबाद: विशेष सीबीआई अदालत ने इशरत जहां से संबंधित कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में चार पुलिस अधिकारियों की उन याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज कर दिया, जिनमें उन्होंने स्वयं को आरोपमुक्त किए जाने का आग्रह किया था.

मामले में आरोपी आईपीएस अधिकारी जीएल सिंघल, सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक तरुण बरोट, जीएल सिंघल और उपनिरीक्षक अनानु चौधरी ने याचिका दायर कर आग्रह किया था कि उन्हें इस मामले में आरोपमुक्त किया जाना चाहिए.

आरोपमुक्ति का आग्रह करने वाले एक अन्य आरोपी सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक जेजी परमार का हाल में निधन हो गया था.

विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश वीआर रावल ने शुक्रवार को चारों आरोपियों को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मुकदमा चलाने के लिए गुजरात सरकार से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत स्वीकृति लेने का निर्देश दिया.

अदालत ने उल्लेख किया कि सीबीआई ने मुकदमा चलाने की स्वीकृति लेने के लिए कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है.

अदालत ने कहा कि जब यह स्थापित हो गया कि आरोपियों ने आधिकारक दायित्व निभाते समय कथित फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया तो सीबीआई को उन पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक अनुमति लेनी चाहिए थी. सीबीआई को स्वीकृति लेने या इस संबंध में घोषणा करने का निर्देश दिया जाना चाहिए.

आरोपियों ने खुद को आरोपमुक्त करने का आग्रह करते हुए कहा था कि जांच एजेंसी ने सरकार से मुकदमे के लिए आवश्यक स्वीकृति नहीं ली है और इसी तरह के आधार पर पिछले साल अन्य आरोपियों को तब आरोपमुक्त कर दिया गया था, जब राज्य सरकार ने सीबीआई को उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.

बता दें कि पिछले साल विशेष सीबीआई अदालत ने पूर्व पुलिस अधिकारियों- डीजी वंजारा और एनके अमीन के खिलाफ कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में कार्यवाही निरस्त कर दी थी, क्योंकि गुजरात सरकार ने उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी थी.

मालूम हो कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के अनुसार, आधिकारिक ड्यूटी पर तैनात रहने के दौरान किसी सरकारी कर्मचारी पर अगर उसके कार्यों के लिए मुकदमा चलाना है तो सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक होता है.

अदालत में इशरत की मां शमीमा कौसर ने कहा था कि याचिकाएं कानून और तथ्य के आधार पर आधारहीन हैं और राज्य सरकार दोनों अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी नहीं थी.

इससे पहले फरवरी 2018 में विशेष सीबीआई अदालत ने इशरत जहां और तीन अन्य के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात के पूर्व प्रभारी पुलिस महानिदेशक पीपी पांडे को आरोप मुक्त कर चुकी है.

विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश जेके पांड्या ने पांडे को आरोप मुक्त करने की अर्जी इस आधार पर स्वीकार कर ली थी कि इशरत जहां एवं तीन अन्य के अपहरण एवं उनकी हत्या के संबंध में उनके विरुद्ध कोई सबूत नहीं है.

सीबीआई ने इस मामले की जांच की थी और उसने अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के तत्कालीन प्रमुख पांडे पर कथित फर्जी मुठभेड़ में शामिल होने का आरोप लगाया था.

अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून, 2004 को गुजरात पुलिस के साथ कथित फर्जी मुठभेड़ में इशरत जहां, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लई, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर मारे गए थे. इशरत जहां मुंबई के समीप मुंब्रा की 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा थीं.

पुलिस ने दावा किया था कि ये चारों लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की आतंकी साजिश रच रहे थे.

हालांकि, उच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच टीम ने मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था. इसके बाद सीबीआई ने कई पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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