फड़णवीस सरकार में हुआ व्यापमं जैसा घोटाला, पास होने वाले को नहीं पता कहां हुई थी परीक्षा

एक्सक्लूसिव: महाराष्ट्र में महाभर्ती अभियान के तहत साल 2019 में सी और डी श्रेणी के लिए हुई परीक्षाओं में अपात्र लोगों के पास होने की बात सामने आई है. जांच में पता चला है कि कई संदिग्ध लोगों को शॉर्टलिस्ट किया गया, कई अभ्यर्थियों के हस्ताक्षर व फोटो में अंतर मिले और कई जगह किसी प्रॉक्सी ने परीक्षा दी.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

एक्सक्लूसिव: महाराष्ट्र में महाभर्ती अभियान के तहत साल 2019 में सी और डी श्रेणी के लिए हुई परीक्षाओं में अपात्र लोगों के पास होने की बात सामने आई है. जांच में पता चला है कि कई संदिग्ध लोगों को शॉर्टलिस्ट किया गया, कई अभ्यर्थियों के हस्ताक्षर व फोटो में अंतर मिले और कई जगह किसी प्रॉक्सी ने परीक्षा दी.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती)

मुंबई: पिछले साल नवंबर महीने में उत्तरी महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में तृतीय श्रेणी के राजस्व अधिकारी पद के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए 236 आवेदकों के दस्तावेज चेक करने के दौरान जिला कलेक्टर राहुल द्विवेदी को कुछ अटपटा लगा.

‘महापरीक्षा पोर्टल’ द्वारा कराई गई परीक्षा के टॉपर्स में शामिल अभ्यर्थियों को ये भी नहीं पता था कि वे किस पोस्ट के लिए नियुक्त किए गए हैं, उन्हें बेसिक जानकारी जैसे कि परीक्षा कब और कहां परीक्षा हुई थी, ये तक नहीं पता था.

कलेक्टर द्वारा सवाल-जवाब किए जाने पर कुछ ने बताया कि उनके आवेदन पत्र और हॉल टिकट पर उनके किसी संबंधी ने साइन किया था.

मामले में और गहराई में जाने पर द्विवेदी को पता चला कि कुछ लोगों ने परीक्षा भी नहीं दी थी, उनकी जगह पर किसी और (प्रॉक्सी) ने कॉपी लिखी और वे राजस्व विभाग के संबंधित पद के लिए नियुक्त हो गए.

अगले कुछ महीनों तक द्विवेदी ने पूरे लगन के साथ अभ्यर्थियों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों की जांच की और इसका ‘महापरीक्षा पोर्टल’ द्वारा सौंपे गए प्रमाणों के साथ मिलान किया. इसका परिणाम ये निकलकर आया कि व्यवस्थित तरीके से एक बड़े घोटाले को अंजाम दिया जा रहा था.

इस सभी निष्कर्षों को मिलाकर जिला कलेक्टर ने इस साल 22 मई को 12 पेज की एक रिपोर्ट सौंपी थी, जो संभवत: पहला ऐसा मौका रहा जब इस परीक्षा में घोटाला उजागर करने के लिए मजबूत प्रमाण पेश किया गया.

हालांकि अहमदनगर कलेक्टर द्वारा उजागर किया गया ये घोटाला सिर्फ 236 अभ्यर्थियों तक सीमित नहीं है, बल्कि ये पूरे राज्य में फैला हुआ प्रतीत होता है. यह घोटाला मध्य प्रदेश में हुए बड़ा परीक्षा घोटाले-व्यापमं घोटाले– जैसा दिखाई पड़ता है.

ये परीक्षाएं दो जुलाई से 26 जुलाई 2019 के बीच महाराष्ट्र के 36 में से 34 जिलों (मुंबई और पालघर को छोड़कर) में आयोजित की गईं थी.

परीक्षा केवल राजस्व अधिकारियों के पद के लिए नहीं बल्कि 20 विभागों में से 11 के लिए आयोजित की गईं थी, जिसमें श्रेणी ‘सी’ और श्रेणी ‘डी’ के पदों को 2019 में भरा जाना था.

हालांकि अपने जिले में भर्ती प्रक्रिया रोकने वाले द्विवेदी के विपरीत अन्य जिलों के प्रशासन ने सबूतों के बावजूद शिकायतों की अनदेखी की और भर्ती प्रक्रिया को पूरा किया.

पिछले हफ्ते द्विवेदी का यहां से ट्रांसफर कर दिया गया था. लेकिन अजीब बात ये है कि उन्हें अभी तक नया पद नहीं सौंपा गया है.

ऐसा लगता है कि उनके प्रयासों का कोई फल नहीं मिलेगा. उनके तबादले के तुरंत बाद विभाग ने द्विवेदी की फाइल को फिर से जांचना शुरू कर दिया है और भर्ती जल्द ही शुरू होने की संभावना है.

द्विवेदी की तरह ही महाआईटी के निदेशक अजीत पाटिल का भी तबादला कर दिया गया है और उन्हें कोई नई पोस्ट नहीं दी गई है.

पिछले महाऑनलाइन पोर्टल को अचानक खत्म करने बाद तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने साल 2017 में महापरीक्षा पोर्टल शुरू किया था.

महाराष्ट्र सूचना प्रौद्योगिकी निगम लिमिटेड या ‘महाआइटी’ द्वारा संचालित महापरीक्षा पोर्टल ने राज्य सरकार के कई पदों पर भर्ती प्रक्रिया संभाली थी.

इस कंपनी का गठन ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन’ और एक मजबूत ई-गवर्नेंस तंत्र स्थापित करने के लिए किया गया था.

अधिकारियों ने बताया कि इसकी पूरी जिम्मेदारी फडणवीस के खास आदमी कौस्तुभ धवसे को सौंपी गई थी. एचपी, फ्रॉस्ट एंड सूलीवान और अन्य कंपनियों के साथ काम कर चुके धवसे को फडणवीस ने साल 2014 में सरकार में शामिल किया था और उन्हें संयुक्त सचिव का दर्जा दिया गया.

कौस्तुभ धवसे मुख्यमंत्री के ओएसडी थे और इस समय विपक्ष के नेता फडणवीस के मुख्य नीति सलाहकार हैं. उन्हें ‘वॉर रूम’ की भी जिम्मेदारी दी गई थी.

कॉरपोरेट फाइलिंग्स से पता चलता है कि महाआईटी (MahaIT) में धवसे सरकारी प्रस्ताव नंबर 1716/Pra.Kra.286/Ka.39 के तहत नामांकित डायरेक्टर बनाए गए थे. वे इस पद पर दिसंबर 2019 तक रहे, जब भाजपा सरकार गिर गई थी.

महाआईटी के अधिकतर डायरेक्टर आईएएस अधिकारी रहे हैं और उनमें से सिर्फ धवसे गैर-सरकारी व्यक्ति थे.

कौस्तुभ धवसे. (फोटो साभार: ट्विटर)
कौस्तुभ धवसे. (फोटो साभार: ट्विटर)

महाआईटी ने साल 2017 में एक निविदा जारी की थी और एक अमेरिका-आधारित आईटी कंपनी ‘यूएसटी ग्लोबल’ (UST Global) और एक भारतीय कंपनी ‘आरसियस इन्फोटेक प्राइवेट लिमिटेड’ (Arceus Infotech Private Limited) ने संयुक्त रूप से अनुबंध हासिल किया था.

उन्हें पूरी परीक्षा प्रक्रिया को संभालना था, जिसमें आवेदन प्रक्रिया से लेकर, कागजात तैयार करने, परीक्षा केंद्रों की पहचान करने, टाइम-टेबल बनाने और इन परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित कराने तक के कार्य करने के थे. ज्यादातर काम यूएसटी ग्लोबल ने संभाले थे.

ये परीक्षाएं सामान्य प्रशासन मंत्रालय (जीएडी) द्वारा शासित प्रशासनिक सेवाओं का हिस्सा हैं. अन्य विभागों के साथ फडणवीस ने जीएडी को भी संभाला था और राज्य में महाभर्ती अभियान की मॉनिटरिंग की थी. यह जिम्मेदारी अब वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पास है.

साल 2019 में घोषित इस अभियान के तहत 25,000 पदों को भरा जाना था. उस वर्ष कुछ महीनों के अंतराल में राज्य में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव होने वाले थे, इसलिए यह योजना भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी.

इन पदों के लिए 35 लाख उम्मीदवारों- मुख्य रूप से ग्रैजुएट्स और 10 वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले लोगों ने आवेदन किया था.

साल 2017 में, जिस वर्ष महाआईटी ने पहली बार परीक्षा आयोजित की थी, लगभग 50 हजार उम्मीदवारों ने आवेदन किया था और अन्य तीन लाख उम्मीदवारों ने साल 2018 में आवेदन पत्र भरे थे.

महाआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आवेदनों की ये संख्या दो कारणों से ‘अप्रत्याशित’ थी- एक, क्योंकि एक ही बार में 25,000 सीटों की घोषणा की गई थी और दूसरी, क्योंकि ये पद मुख्य रूप से ग्रेड सी और डी पदों के लिए थे इसलिए आवेदकों की संख्या अपेक्षित शैक्षिक योग्यता के साथ काफी ज्यादा थी.

महाराष्ट्र सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग (सूचना प्रौद्योगिकी) द्वारा 17 सितंबर, 2017 को जारी किए गए सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के अनुसार, प्रति आवेदन की लागत 250 रुपये प्रति उम्मीदवार तय की गई थी.

–हालांकि परीक्षा आयोजित करने के समय इस आवेदन की लागत में वृद्धि हुई थी और उम्मीदवारों से 350 से 500 रुपये के बीच शुल्क लिया गया था. इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि जीआर द्वारा एक राशि तय करने के बावजूद उम्मीदवारों से अधिक राशि क्यों ली गई.

महाआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कुल राशि में से केवल 56 रुपये उनके विभाग में जाने थे और बाकी का भुगतान यूएसटी ग्लोबल और कंसोर्टियम को करना था.

महाआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विभाग ने 2017 से यूएसटी ग्लोबल के साथ मिलकर 31 विभिन्न परीक्षाएं आयोजित की हैं. साल 2019 के 35 लाख उम्मीदवारों के अलावा, 2018 में तीन लाख और 2017 में 50,000 अन्य आवेदन किए गए थे.

अधिकारी ने कहा, ‘महाआईटी को 2018 में आयोजित परीक्षाओं के लिए अभी भी विभिन्न विभागों से 7 लाख रुपये और साल 2019 के लिए 16 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली करनी है.’

महाआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि साल 2019 में विज्ञापित इन 25,000 पदों में से 11,000 पद जुलाई 2019 से लेकर इस साल मई के बीच भरे गए थे. बाकी की परीक्षाएं उम्मीदवारों की शिकायतों के बाद रोक दी गईं थी.

यूएसटी ग्लोबल के प्रवक्ता ने द वायर  को बताया, ‘यूएसटी किसी भी परीक्षा के लिए पैसे नहीं लेता है और  अनुबंध की शर्तों के अनुसार सेवाओं के लिए महाआईटी द्वारा भुगतान किया जाता है.’ हालांकि कंपनी ने अनुबंध में निर्धारित शर्तों को स्पष्ट नहीं किया.

अहमदनगर कलेक्टर ने अपनी जांच में क्या पाया?

22 मई को लिखे एक पत्र में कलेक्टर ने कहा कि इस साल तीन जनवरी से सात जनवरी के बीच जब उनका कार्यालय 236 उम्मीदवारों की सूची के दस्तावेजों का सत्यापन कर रहा था, तो उनमें से कई लोगों की विश्वसनीयता पर संदेह पाया गया.

उन्होंने अपने पत्र में कहा कि पूछताछ करने पर उन्हें संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली. इसके बाद कलेक्टर ने महाआईटी विभाग और यूएसटी ग्लोबल से सभी 236 उम्मीदवारों के सीसीटीवी फुटेज की मांग की.

महाआईटी के परियोजना प्रबंधक ने जरूरी फुटेज मुहैया नहीं कराई और कहा कि वीडियो अलग-अलग स्थानों पर रखे गए हैं और भारी-भरकम मात्रा में है.

हालांकि विभाग ने विशेष रूप से उन उम्मीदवारों से संबंधित जानकारी प्रदान करने के लिए सहमति व्यक्त की जिसके बारे में कलेक्टर ने दावा किया था कि वे संदिग्ध हैं. सीसीटीवी फुटेज और लगभग 14 उम्मीदवारों की अन्य जानकारी साझा की गई.

कलेक्टर के पत्र में यूएसटी ग्लोबल द्वारा दी गई प्रतिक्रिया और 14 उम्मीदवारों को लेकर उनके निष्कर्षों को शामिल किया गया है. खास बात ये है कि यूएसटी ग्लोबल, जिसने इन परीक्षाओं का आयोजन किया था और उसके पास सभी दस्तावेज थे, को जांच शुरू होने से पहले तक कुछ भी अटपटा नहीं लगा था. इस बीच कलेक्टर ने अपनी रिपोर्ट में तीखी टिप्पणियां कीं.

उदाहरण के लिए, एक उम्मीदवार जिसने राजस्व अधिकारी के पद के लिए परीक्षा में 200 में से 184 अंक हासिल किए. यूएसटी ग्लोबल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि इस विशेष उम्मीदवार को लेकर उनके पास फुटेज उपलब्ध नहीं है. उम्मीदवार के पंजीकरण की तस्वीर और हॉल टिकट की तस्वीरें कलेक्टर के कार्यालय में जमा की गईं. यूएसटी ग्लोबल इसमें कोई समस्या नहीं दिखी, पर कलेक्टर द्वारा नियुक्त समिति के निष्कर्ष बताते हैं कि हस्ताक्षर और तस्वीरें मेल नहीं खाए.

उनके बयान के अनुसार यूएसटी ग्लोबल के अधिकारियों ने कहा है कि कम से कम दो ऐसे उदाहरण हैं जहां नकली उम्मीदवार ने परीक्षा दी थी. इसमें से एक कैंडिडेट ने 182 अंक हासिल किए, दूसरे ने 170 अंक प्राप्त किए जो कि कट-ऑफ से महज चार नंबर कम थे.

कई अन्य उम्मीदवारों के लिए यूएसटी ग्लोबल ने दावा किया है कि चूंकि उम्मीदवार को सीसीटीवी फुटेज में परीक्षा देते हुए देखा जा सकता है, इसलिए इससे ‘कोई बड़ा निष्कर्ष’ नहीं निकाला जा सकता है.

हालांकि समिति ने अपनी रिपोर्ट में दस्तावेजों में निरंतरता की कमी, हॉल टिकट में गायब हस्ताक्षर, परीक्षा के समय प्रस्तुत अलग-अलग तस्वीरें और बाद में दस्तावेज सत्यापन में अलग फोटो देने जैसे विवरण दिया है.

इसमें एक अजीबोगरीब उदाहरण सामने आया, जहां 178 अंक हासिल करने वाली एक महिला उम्मीदवार ने पहले ‘पुरुष उम्मीदवार’ के रूप में अपना फॉर्म भरा था और बाद में ये दावा करते हुए एक बॉन्ड जमा किया कि फॉर्म भरने के समय गलती हो गई थी.

समिति के निष्कर्ष अलग-अलग हस्ताक्षर और विभिन्न आवासीय पते के प्रमाणों की ओर भी इशारा करते हैं. समिति ने कहा, ‘उम्मीदवार परीक्षा की तारीख और समय साझा नहीं कर पाए थे.’

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणनवीस. (फोटो: पीटीआई)
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस. (फोटो: पीटीआई)

द वायर  ने द्विवेदी से संपर्क किया कि आखिर खाली सीटें कैसे भरी जाएंगी और उनकी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपे जाने के बाद क्या हुआ. इस पर द्विवेदी ने कहा, ‘मैंने अपना काम कर दिया है. मुझे जो कुछ कहना था, उसका उल्लेख रिपोर्ट में है और यह संबंधित विभाग के पास है. अब उन्हें फैसला लेना है.’

इस संबंध में द वायर  ने महाआईटी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों में से एक से संपर्क किया. उन्होंने नाम न लिखने की शर्त पर दावा किया कि कलेक्टर ने मामले के अपने मूल्यांकन में गलती की है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे विभाग ने समय-समय पर कलेक्टर को सूचित किया है कि यदि कुछ उम्मीदवारों को लेकर संशय है, तो उन्हें ऐसे लोगों की जगह विश्वसनीय कैंडिडेट का चयन करना चाहिए. पूरी प्रक्रिया को ही रोकना अनुचित है.’

अधिकारी ने यह भी दावा किया कि परीक्षा एकदम सही तरीके से हुई थी और इसमें सेंध लगाना संभव नहीं है. लेकिन जब उन्हें कुछ उदाहरण दिए गए, तो उन्होंने माना कि ‘कुछ त्रुटियों’ की गुंजाइश है.

द वायर  ने कलेक्टर द्वारा लगाए गए आरोपों के बारे में पूछताछ के लिए यूएसटी ग्लोबल को एक सवालों की सूची भेजी और यह भी जानना चाहा कि क्या संगठन ने इन मामलों का समाधान करने के लिए कोई तंत्र स्थापित किया है.

इसके जवाब में कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘यूएसटी और कंसोर्टियम ने महाआईटी के निर्देशों और अनुबंध की शर्तों के अनुसार भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित की है. महाआईटी महाराष्ट्र सरकार की भर्ती के लिए नोडल एजेंसी है और उनके पास रिक्तियों और आवेदन के बारे में जानकारी रहती है.’

प्रवक्ता ने यह भी दावा किया कि कंपनी को अहमदनगर कलेक्ट्रेट की किसी भी रिपोर्ट या उनके द्वारा शुरू की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी नहीं है.

अन्य जिलों में क्या हो रहा है

अहमदनगर इस बड़ी समस्या का केवल एक छोटा-सा हिस्सा है. लगभग हर जिला प्रशासन और राज्य विभाग इन परीक्षाओं को आयोजित करते हैं और पदों को भरने के संबंध में उन्हें दर्जनों शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिसमें समस्याएं एक समान हैं.

एक 29 वर्षीय उम्मीदवार बीटेक ग्रैजुएट नीलेश गायकवाड़ इस लड़ाई में सबसे आगे हैं, जो परीक्षा और चयन प्रक्रिया में असंख्य असंगतियों की खोजबीन और अनिश्चितताओं को उजागर कर रहे हैं. उन्होंने रत्नागिरी जिले में एक राजस्व अधिकारी के पद के लिए 172 अंक हासिल किए, जो कट-ऑफ से महज दो अंक कम है.

वे कहते हैं कि ये केवल तकनीकी गड़बड़ियां नहीं हैं, बल्कि ‘एक अच्छी तरह से सोचा-समझा भर्ती घोटाला’ है. गायकवाड़ और कुछ अन्य लोगों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के कम से कम 5,000 उम्मीदवारों की पहचान कर ‘एमपीएससी समन्वय समिति’ के बैनर तले एक समूह बनाया है.

गायकवाड़ कहते हैं कि यह समूह ज्यादातर उन छात्रों द्वारा बनाया गया है, जिनके पास शिकायतें हैं और उन्होंने इस परीक्षा में विसंगतियों का पुष्ट प्रमाण एकत्र किए हैं.

राज्य बोर्ड परीक्षा के पांच टॉपर्स ने 200 में से 194 अंक प्राप्त किए हैं. विशेषज्ञों का दावा है कि इतना अंक प्राप्त करना व्यावहारिक रूप से असंभव है क्योंकि उम्मीदवार को 120 मिनट में 200 प्रश्नों का उत्तर देना होता है और प्रश्नपत्र आमतौर पर बहुत कठिन होता है.

खास बात ये है कि इन टॉपर्स ने हूबहू छह प्रश्न गलत किए हैं और इसमें भी उन्होंने हूबहू ‘गलत विकल्प’ पर निशान लगाया था. द वायर  ने उनकी उत्तर पुस्तिकाओं प्राप्त की हैं. 

इनके उत्तर के अलावा एक और चौंकाने वाली बात ये है कि तीन टॉपर्स परीक्षा वाले दिन, उसी समय पर, उसी सेंटर पर एक अन्य परीक्षा दी थी.

जांच में कुछ ऐसे उम्मीदवारों के भी नाम सामने आए हैं जिन्हें महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) द्वारा बैन कर दिया गया है, लेकिन फिर भी महापरीक्षा पोर्टल द्वारा आयोजित परीक्षाओं में वे उपस्थित हुए थे.

महापरीक्षा के लिए एक शर्त यह है कि ‘उम्मीदवार को किसी अन्य प्रतियोगी परीक्षा द्वारा बैन नहीं किया गया हो.’ यहां सवाल ये है कि ऐसे उम्मीदवारों को इन परीक्षाओं में बैठने की अनुमति कैसे दी गई, जब उन्हें अन्य परीक्षा प्लेटफॉर्मों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था?

राज्य बोर्ड परीक्षा में टॉपर्स में से एक और नासिक के एक केंद्र में परीक्षा देने वाले व्यक्ति को एमपीएससी द्वारा बैन किया गया था. इसी तरह एक और उम्मीदवार, जिसने अहमदनगर जिले में राजस्व अधिकारी के पद के लिए परीक्षा दिया और 184 अंक हासिल किए, को भी एमपीएससी द्वारा हमेशा के लिए बैन किया गया है. अहमदनगर कलेक्टर ने भी इस उम्मीदवार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था.

द वायर  द्वारा संपर्क किए जाने पर इन कैंडिडेट ने या तो बोलने से इनकार कर दिया या कहा कि दावे झूठे हैं.

ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां भाई-बहनों, पिता और बच्चों ने एक साथ परीक्षा पास की है, कुछ मामलों में तो एक समान नंबर प्राप्त हुए हैं.

परीक्षा नियमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक उम्मीदवार केवल एक बार इन परीक्षाओं के लिए उपस्थित हो सकता है. हालांकि, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक ही उम्मीदवार कई बार अलग-अलग केंद्रों पर दिखाई दिया.

ऐसे एक उम्मीदवार को तो शॉर्टलिस्ट भी किया गया है. डेटाबेस की विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इनमें से अधिकांश संदिग्ध उम्मीदवार तीन जिलों- औरंगाबाद, जालना और धुले के हैं.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

कैग रिपोर्ट

पूर्व में महाआईटी और यूएसटी ग्लोबल ने महापरीक्षा पोर्टल समेत कम से कम चार अलग-अलग परियोजनाओं में एक साथ काम किया है.

वर्तमान में कलेक्टर द्विवेदी की रिपोर्ट एकमात्र सार्वजनिक दस्तावेज है जो उनकी विश्वसनीयता के बारे में सवाल उठाता है, हालांकि अतीत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने निविदा प्रक्रिया में विशिष्ट विसंगतियों की पहचान की थी और कहा था कि एकीकृत विश्वविद्यालय प्रबंधन प्रणाली के कार्यान्वयन में यूएसटी ग्लोबल को तरजीह दी गई थी.

कैग द्वारा वित्त वर्ष 2017-18 के लिए किए गए एक ऑडिट में यह पाया गया था कि बोली प्रक्रिया में भाग लेने वाली अन्य कंपनियों पर यूएसटी ग्लोबल को विशेष तरजीह दी गई थी.

अनुरोध प्रस्ताव (आरएफपी) में निर्धारित शर्तों के अनुसार कंपनियों का तकनीकी मूल्यांकन किया जाना चाहिए. हालांकि कैग की रिपोर्ट में पाया गया है कि यद्यपि एक अन्य कंपनी, कार्वी डेटा मैनेजमेंट सर्विस लिमिटेड तकनीकी रूप से योग्य थी और उनकी दरें यूएस ग्लोबल की दरों से 17.66 फीसदी कम थीं, इसके बावजूद यूएसटी ग्लोबल को काम दिया गया था.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि महाआईटी ने ‘वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धी बोली की उचित प्रक्रिया के बिना’ स्कैनिंग और डिजिटलीकरण के लिए दरों को अंतिम रूप दे दिया था, जो परीक्षा प्रक्रिया के अभिन्न अंगों में से एक हैं.

रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया था कि नियमों का उल्लंघन कर यूएसटी ग्लोबल को चुना गया. स्वतंत्र रूप से वाणिज्यिक बोली का मूल्यांकन न किए जाने के कारण 17.68 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ा.

राजनीतिक हस्तक्षेप

बीड के एक कैंडिडेट राहुल कवठेकर ने बताया कि अकेले 2018 में पूरे राज्य में 55 विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए थे. कवठेकर ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के आयोजन से लेकर कई राजनीतिक प्रतिनिधियों से मुलाकात का सारा काम उन्होंने किया था.

कांग्रेस के सतेज पाटिल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले और प्रहार जनशक्ति पार्टी के बच्चू कडू सहित कई राजनीतिक नेताओं ने चुनाव से पहले महापरीक्षा को रोकने की मांग की थी. उन्होंने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और मामले की गहन जांच की भी मांग की थी.

पिछले हफ्ते जब एनसीपी के विधायक रोहित पवार ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि उनकी पार्टी राजस्व अधिकारियों की परीक्षा के संबंध में ‘त्रुटियों’ की जांच कर रही है, तो कई उम्मीदवारों ने यह कहते हुए तीखे जवाब दिया कि वे एक बड़े घोटाले को कम करके आंक रहे हैं.

कुछ ने संदिग्ध उम्मीदवारों की मार्कशीट की प्रतियां भी साझा कीं और संदिग्ध अभ्यर्थियों के मामले की जांच की मांग की.

कावठेकर ने कहा कि वे इस साल की शुरुआत में महाआईटी के कई अधिकारियों के साथ पाटिल से मिले थे.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘एक छात्र प्रतिनिधि समूह ने मंत्री और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात की थी जो इन परीक्षाओं को आयोजित करने में शामिल थे. हमने अपना मामला प्रस्तुत किया, उन्हें सबूत दिखाए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. अंततः महापरीक्षा को खत्म कर दिया गया लेकिन मामले में शामिल उम्मीदवारों या अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. बल्कि, वही अधिकारी अब महाआईटी विभाग में काम कर रहे हैं.’

(अनुज श्रीवास के इनपुट के साथ)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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