क्या महिलाओं की सुरक्षा उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में भी है?

उन्नाव ज़िले की बांगरमऊ विधानसभा सीट पर 3 नवंबर को उपचुनाव है. यह सीट नाबालिग के बलात्कार के दोषी पाए गए विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता रद्द होने पर ख़ाली हुई थी. महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराधों के बीच यहां हुई एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री के भाषण से उनकी सुरक्षा की बात नदारद रही.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

उन्नाव ज़िले की बांगरमऊ विधानसभा सीट पर 3 नवंबर को उपचुनाव है. यह सीट नाबालिग के बलात्कार के दोषी पाए गए विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता रद्द होने पर ख़ाली हुई थी. महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराधों के बीच यहां हुई एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री के भाषण से उनकी सुरक्षा की बात नदारद रही.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

जिस राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध बड़े पैमाने पर होते हैं और जिस क्षेत्र में उपचुनाव सिर्फ इस लिए कराया जा रहा है क्योंकि वहां का विधायक बलात्कार के मामले में दोषी पाया गया, वहां ज़ाहिर है कि सत्तारूढ़ पार्टी और मुख्यमंत्री की तवज्जो महिलाओं की सुरक्षा पर ही होगी. लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हो रहा है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोहत्या करने वालों को सज़ा दिलाना सरकार की प्राथमिकताओं में बताया है.

मुख्यमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में गोहत्या विरोधी क़ानून के इस्तेमाल पर सवाल उठाए हैं.

वहीं महिला अधिकारों के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्राथिमकता महिला सुरक्षा होनी चाहिए. ऐसा न करके वे 50 प्रतिशत मतदाताओं को नज़रअंदाज़ कर रहे है, जिसका परिणाम उनको चुनाव में भुगतना पड़ेगा.

राजधानी लखनऊ से क़रीब 60 किलोमीटर दूर बांगरमऊ (उन्नाव) में एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि वह प्रदेश में गौ-माता की रक्षा के साथ किसी तरह का खिलवाड़ नहीं होने देंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई गोहत्या करेगा, तो जेल जाना ही पड़ेगा.

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार ने प्रदेश के हर ज़िले में गोशाला निर्माण के लिए कोष निर्धारित किया और गौवंश के खाने-पीने का भी प्रबंध किया गया है.

मुख्यमंत्री भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर की विधानसभा सदस्यता रद्द होने के बाद रिक्त बांगरमऊ विधानभवन सीट पर 03 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए अपनी पार्टी के प्रत्याशी श्रीकांत कटियार के पक्ष में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे.

उल्लेखनीय है कि उन्नाव की एक नाबालिग ने भाजपा के नेता और विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर 2018 पर सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया था.

स्थानीय प्रशासन द्वारा अभियुक्त विधायक के विरुद्ध करवाई नहीं होने से नाराज़ पीड़िता ने राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के बाहर 2018 में आत्महत्या का प्रयास भी किया. इसी बीच पीड़िता के पिता कि हिरासत में मौत हो गई.

मामला दोबारा सुर्खियों में तब आया जब पीड़िता और उसका परिवार 2019 में एक सड़क हादसे का शिकार हो गया.

इस हादसे में पीड़िता गंभीर रूप से घायल हो गई और उसके परिवार के दो लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में संज्ञान लिया.

इस मामले में दिल्ली की एक अदालत ने दिसंबर 2019 में कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी माना और 25 लाख रुपये का जुर्माना लगते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई.

सीबीआई ने भी जांच के बाद कहा की कुलदीप सिंह सेंगर के ख़िलाफ़ कार्रवाई में उन्नाव प्रशासन ने ढिलाई की थी. एजेंसी ने एक आईएएस, एक आईपीएस समेत चार अधिकारियों को ढिलाई का ज़िम्मेदार मानकर उसके विरुद्ध करवाई के लिए योगी सरकार को लिखा है.

सज़ा होने के बाद कुलदीप सिंह सेंगर की विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई. भाजपा ने शुरू में आरोप लगने के बाद उनको पार्टी से नहीं निकाला, लेकिन बढ़ते आक्रोश को देखते हुए बाद में चार बार के विधायक को भाजपा से भी निष्काषित कर दिया गया.

यह अकेला मामला नहीं था, जहां जिले में महिलाओं के खिलाफ अपराध की स्थिति सामने आई होती। दिसंबर 2019 में अपने मुकदमे की सुनवाई के लिए जा रही उन्नाव की ही एक 26 वर्षीय बलात्कार पीड़िता कोपांच लोगों ने बीच सड़क में आग के हवाले कर दिया.

जलाए जाने के बाद अपनी जान बचाने के लिए महिला एक किलोमीटर तक दौड़ी. हालांकि वे 95 प्रतिशत जल चुकी थीं, लेकिन उन्होंने पुलिस को बयान दिया और अभियुक्तों के नाम भी बताए, जिसमें में से दो महिला के साथ बलात्कार के आरोपी ही थे.

पीड़िता को इलाज के लिए राजधानी लखनऊ लाया गया और बाद में दिल्ली भेजा दिया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में 6 दिसंबर की रात उनकी मौत हो गई.

सत्तारूढ़ भाजपा जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारा देकर सत्ता में आई थी, बीते दिनों हाथरस गैंगरेप मामले को लेकर एक बार फिर आलोचना का निशाना बनी.

आरोप है कि पीड़िता के बयान के बावजूद सरकार-प्रशासन यह साबित करने में लगे रहे है कि पीड़िता का बलात्कार नहीं हुआ.अदालत के हाथरस मामले में स्वत: संज्ञान लेने के बाद ही मामले की जांच शुरू हुई.

मामले की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है और सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से जांच की निगरानी को कहा है.

प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध की स्थिति आंकड़ों की रोशनी में और स्पष्ट दिखती है. महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है.

एक ओर प्रदेश सरकार कानून और व्यवस्था में सख्ती के दावे करती है तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की सूची में महिलाओं के खिलाफ मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर पर है.

भारत में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 405,861 मामले दर्ज हुए, जिसमें से 59,853 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे. यह संख्या देश में कुल मामलों का 14.7 फीसदी है, जो कि किसी भी राज्य की तुलना में सर्वाधिक है.

इसके अलवा मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट्स बताती हैं कि प्रदेश में पिछले 10 सालोंं में बलात्कार के मामले लगभग दोगुने हो गए. राज्य में 2009 में 1,859 रेप केस की तुलना में 2019 में 3,065 मामले दर्ज हुए.

ऐसे में महिला संगठनों का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता गोहत्या नहीं महिला सुरक्षा होना चाहिए.

मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता शुभांगी सिंह कहती हैं कि महिलाओं के मुद्दों को नजरअंदाज करने का अर्थ हैं कि 50 प्रतिशत मतदाताओं को नजरअंदाज करना.

शुभांगी आगे कहती हैं, ‘मुख्यमंत्री ने गोहत्या का मुद्दा ऐसे समय में उठाया था, जब गोहत्या क़ानून के दुरुपयोग पर अदालत ने भी चिंता जताई है. अदालत ने कहा है कि बिना पुख़्ता सबूत के बेक़सूरों को गोहत्या के नाम पर फंसाया जा रहा है. नेता उस समय गोरक्षा को प्राथिमकता दे रहे हैं, जब महिला के विरुद्ध अपराध बढ़ रहे थे.’

बता दें कि हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गोरक्षा कानून का इस्तेमाल बेगुनाहों के ख़िलाफ़ किया जा रहा है जबकि क़ानून का इस्तेमाल उसमें निहित भावना से होना चाहिए.

गोहत्या के आरोप में उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) के तहत भी कार्रवाई की है. सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में रासुका इस्तेमाल सबसे ज़्यादा गोकशी के मामलों में हुआ है.

महिला संगठन साझी दुनिया की सचिव प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा का कहना है कि महिला सुरक्षा का मुद्दा कभी भी भाजपा की प्राथमिकताओं में नहीं रहा है.

वे कहती हैं, ‘भाजपा योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक इस लिए बनाती है क्योंकि वे अपने भाषणों से लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाते हैं और वोटों का धार्मिक ध्रुवीकरण करते हैं. उनकी महिला उत्पीड़न के लिए जो योजनाएं हैं भी, वह सिर्फ नाममात्र की हैं क्योंकि प्रतिदिन यौन उत्पीड़न की ख़बरें मीडिया में आ रहीं हैं.’

वही महिला अधिकार के लिए सक्रिय अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति का कहना है कि योगी सरकार महिला हिंसा रोकने में नाकाम रही है.

समिति की वरिष्ठ सदस्य मधु गर्ग के अनुसार चुनावी सभा में मुख्यमंत्री गोरक्षा के लिए बयान देते हैं और महिला सुरक्षा के मुद्दे पर ख़ामोश रहते हैं. प्रदेश सरकार का ‘मिशन शक्ति अभियान’ भी फेल हो रहा है, क्योंकि सरकार महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है.

मधु के अनुसार,  गोरक्षा और सांप्रदायिक मुद्दों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा कभी भी महिला सुरक्षा अपने राजनीतिक एजेंडा में नहीं रखती है.

मधु गर्ग ने यह भी कहा कि महिला सुरक्षा की बात पार्टी क्या करेगी जो कुलदीप सिंह सेंगर और कठुआ के आरोपियों के पक्ष में खड़ी थी. भाजपा ने तो अपने नेता कुलदीप सिंह सेंगर को उस वक़्त तक पार्टी से नहीं निकला जब तक नागरिक संगठन के दबाव नहीं बनाया.

वहीं शुभांगी सिंह कहती हैं, ‘सरकार ने मिशन शक्ति अभियान चलाया है जिसके तहत महिला सुरक्षा पर व्याख्यान और सेमिनार आयोजित किए जा रहे हैं. हालांकि इन कार्यक्रमों से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में कमी नहीं आएगी. जब तक राजनीतिक दलों के एजेंडा में महिला सुरक्षा प्राथमिकता से शामिल नहीं नहीं होगा और क़ानून का कार्यान्वयन नहीं होगा, तब तक समस्या ख़त्म नहीं होगी.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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