मानसिक बीमारी से जूझ रहे शख़्स को शारीरिक बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के समान माना जाए

मनोरोग से ग्रसित एक शिकायतकर्ता ने द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से ली गई एक पॉलिसी के तहत मेडिकल क्लेम के लिए आवेदन किया था, लेकिन बीमा कंपनी ने उनके दावे को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद शिकायतकर्ता ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अपील की थी.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

मनोरोग से ग्रसित एक शिकायतकर्ता ने द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से ली गई एक पॉलिसी के तहत मेडिकल क्लेम के लिए आवेदन किया था, लेकिन बीमा कंपनी ने उनके दावे को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद शिकायतकर्ता ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अपील की थी.

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चंडीगढ़ः जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का कहना है कि मानसिक बीमारी से जूझ रहे शख्स के साथ शारीरिक बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 की धारा 21(4) का हवाला देते हुए कहा कि सभी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान में मानसिक बीमारी से जूझ रहे हर व्यक्ति के साथ शारीरिक बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए.

आयोग ने द ऑरिएंटल इंश्योरेस कंपनी से मनोरोग से ग्रसित मोहाली के एक स्थानीय निवासी के दावे के निपटान के लिए कहा.

आयोग ने कंपनी को निर्देश दिए कि वह शिकायतकर्ता को 25,000 रुपये का मुआवजा और मुकदमे की लागत का भुगतान करें.

शिकायतकर्ता निरंकार सिंह ने कहा था कि उन्होंने द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से इस उम्मीद में ‘हैप्पी फैमिली फ्लोटर पॉलिसी’ ली थी कि जरूरत के समय उन्हें खुद को अधिक वित्तीय बोझ में डाले बिना गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल मिलेगी.

उन्होंने कहा कि मनोरोग से ग्रसित होने का पता चलने पर उन्होंने पॉलिसी के तहत मेडिकल क्लेम के लिए आवेदन किया लेकिन 27 सितंबर 2018 को बीमा कंपनी ने इस आधार पर इसे खारिज कर दिया कि इस बीमारी को पॉलिसी के क्लॉज 4.8 तहत बाहर रखा गया है.

सिंह ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य को मेडिकल बीमा के तहत कवर किया गया है और उनके क्लेम को भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के निर्देशों के अनुसार कवर किया जाना चाहिए.

वहीं, आयोग को लिखे अपने जवाब में द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी ने कहा कि इस मामले में ‘डायग्नोसिस’ शीर्षक के तहत वृद्धावस्था से जुड़े मनोभ्रम का स्पष्ट उल्लेख है और पॉलिसी के क्लॉज 4.8 के तहत इसे बाहर रखा गया है इसलिए शिकायतकर्ता के क्लेम को उचित रूप से खारिज किया गया है.

दलीलें सुनने के बाद उपभोक्ता आयोग ने कहा, ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 की धारा 21(4) से पता चलता है कि हर बीमाकर्ता को मानसिक बीमारी के इलाज के मेडिकल बीमा के लिए उसी आधार पर प्रावधान करने होंगे, जो शारीरिक बीमारी के इलाज के लिए उपलब्ध हैं, इसलिए सभी बीमाकर्ताओं को मानसिक हेल्थकेयर एक्ट 2017 के सभी प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से पालन करने का निर्देश दिया जाता है.’

इस एक्ट के मुताबिक, ‘सभी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान में मानसिक बीमारी से जूझ रहे हर शख्स को शारीरिक बीमारी वाले लोगों के समान माना जाएगा इसलिए हर बीमाकर्ता को मानसिक बीमारी के इलाज के लिए उसी आधार पर मेडिकल बीमा के प्रावधान करने हैं, जो शारीरिक बीमारी के इलाज के लिए उपलब्ध है.’

जिला आयोग ने बीमा कंपनी को निर्देश दिए कि वह तत्काल शिकायतकर्ता के दावे का निपटान करे. शिकायतकर्ता को सेवा उपलब्ध नहीं कराने और मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न के लिए 15,000 रुपये तथा मुकदमे के लिए 10,000 रुपये भुगतान बीमा कंपनी से करने के लिए कहा गया है.