बाबरी विध्वंस पर फ़ैसला सुनाने वाले पूर्व जज की सुरक्षा बढ़ाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सीबीआई के विशेष जज एसके यादव ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की संवेदनशीलता के मद्देनज़र अदालत से अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा बढ़ाए जाने की मांग की थी. 30 सितंबर को उन्होंने इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित सभी 32 आरोपियों को बरी किया था.

अक्टूबर 1990 में बाबरी मस्जिद के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी. (फाइल फोटो: एपी/पीटीआई)

सीबीआई के विशेष जज एसके यादव ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की संवेदनशीलता के मद्देनज़र अदालत से अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा बढ़ाए जाने की मांग की थी. 30 सितंबर को उन्होंने इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित सभी 32 आरोपियों को बरी किया था.

अक्टूबर 1990 में बाबरी मस्जिद के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी. (फाइल फोटो: एपी/पीटीआई)
अक्टूबर 1990 में बाबरी मस्जिद के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी. (फाइल फोटो: एपी/पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसला सुनाने वाले पूर्व विशेष न्यायाधीश एसके यादव की सुरक्षा बढ़ाने से इनकार कर दिया है.

जस्टिस आरएफ नरीमन के नेतृत्व में जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ सीबीआई के विशेष पूर्व जज एसके यादव की सुरक्षा बढ़ाए जाने के उनके आग्रह पर सुनवाई कर रही थी.

पूर्व जज यादव ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 30 सितंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए अदालत से अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा बढ़ाए जाने की मांग की थी.

पीठ ने कहा, ‘पत्र का अवलोकन करने के बाद हम सुरक्षा प्रदान कराना उचित नहीं समझते.’

बता दें कि 30 सितंबर को विशेष अदालत ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित सभी 32 आरोपियों को बरी करते हुए कहा था कि अयोध्या में विवादित ढांचे को नष्ट करने के षडयंत्र को लेकर किसी तरह के निर्णायक सबूत नहीं मिले हैं.

फैसला सुनाते हुए विशेष सीबीआई जज एसके यादव ने कहा था कि विध्वंस सुनियोजित नहीं था, यह एक आकस्मिक घटना थी. असामाजिक तत्व गुंबद पर चढ़े और इसे ढहा दिया.

फैसले में यह कहा गया कि सीबीआई पर्याप्त सबूत नहीं दे सकी. आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिले, बल्कि आरोपियों द्वारा उन्मादी भीड़ को रोकने का प्रयास किया गया था.

बता दें कि कारसेवकों ने छह दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था. उनका मानना था कि इस मस्जिद का निर्माण भगवान राम की जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर किया गया था.

मस्जिद नष्ट किए जाने के बाद दंगे भड़के थे, जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई थी.

मालूम हो कि इससे पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2019 में 40 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद नौ नवंबर को बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा ख़ारिज करते हुए हिंदू पक्ष को जमीन देने को कहा था.

अदालत ने मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में किसी अन्य स्थान पर पांच एकड़ जमीन आवंटित करने का भी निर्देश दिया था.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)

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