त्रिपुराः ब्रू शरणार्थियों ने अनुसूचित जाति और स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र जारी करने की मांग की

वर्ष 1997 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान ब्रू समुदाय के 30 हज़ार से अधिक लोग मिज़ोरम छोड़कर त्रिपुरा के कुछ ज़िलों में बस गए थे. वापस मिज़ोरम लौटने से इनके इनकार के बाद त्रिपुरा सरकार ने तकरीबन 33,000 ब्रू लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू की है.

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(फाइल फोटोः पीटीआई)

वर्ष 1997 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान ब्रू समुदाय के 30 हज़ार से अधिक लोग मिज़ोरम छोड़कर त्रिपुरा के कुछ ज़िलों में बस गए थे. वापस मिज़ोरम लौटने से इनके इनकार के बाद त्रिपुरा सरकार ने तकरीबन 33,000 ब्रू लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू की है.

(फोटोः पीटीआई)
(फोटोः पीटीआई)

अगरतला: उत्तर त्रिपुरा जिले के राहत शिविरों में 1997 से रह रहे ब्रू समुदाय ने त्रिपुरा में उनके पुनर्वास की प्रक्रिया के दौरान स्थायी आवासीय (परमानेंट रेजिडेंट ऑफ त्रिपुरा सर्टिफिकेट्स- पीआरटीसी) और अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्रों की मांग की है.

मिजोरम ब्रू विस्थापित पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) के महासचिव ब्रूनो मशा ने इस हफ्ते त्रिपुरा के मुख्य सचिव मनोज कुमार को पत्र लिखकर ब्रू समुदाय के लोगों के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र और स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र जारी करने की मांग की.

ब्रू समुदाय के हजारों लोग उत्तर त्रिपुरा जिले के दो उपमंडलों में स्थित राहत शिविरों में 1997 से रह रहे हैं. वे जातीय संघर्ष की वजह से मिजोरम से भागकर त्रिपुरा आ गए थे.

ब्रू समुदाय के प्रतिनिधियों, केंद्र सरकार, त्रिपुरा एवं मिजोरम सरकार के बीच इस साल 16 जनवरी को एक समझौता हुआ था. इसके तहत राहत शिविरों को खाली करने से इनकार करने वाले और मिजोरम वापस जाने से मना करने वाले ब्रू समुदाय के लोगों को करीब 23 साल राज्य में रहने के बाद त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसने की इजाजत दे दी थी.

इस बीच उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर उपमंडल की जॉइंट मूवमेंट कमेटी (जेएमसी) ने उपमंडल में छह हजार ब्रू परिवारों को बसाने के सरकार के फैसले के खिलाफ बेमियादी प्रदर्शन करने का निर्णय किया है.

बता दें कि जेएमसी में नागरिक सुरक्षा फोरम और उपमंडल का मिजो कन्वेंशन शामिल हैं, जिसने सिलसिलेवार प्रदर्शन कर ब्रू समुदाय को त्रिपुरा के सभी आठ जिलों में बसाने की मांग की.

जेएमसी के प्रमुख डॉ. जेड पचुउ ने कहा कि उनकी उत्तर त्रिपुरा के जिलाधिकारी से मुलाकात हुई है और उन्हें आश्वस्त किया गया कि अधिकतम 1,500 परिवारों को ही यहां बसाया जाएगा, लेकिन वे अब 6,000 परिवारों को बसाने की कोशिश कर रहे हैं.

एक अधिकारी ने बताया कि त्रिपुरा सरकार पड़ोसी राज्य मिजोरम से विस्थापित तकरीबन 33,000 ब्रू लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुकी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुनर्वास प्रक्रिया के तहत त्रिपुरा सरकार ने कानून मंत्री रतन लाल नाथ और मुख्य सचिव मनोज कुमार के साथ चर्चा के बाद 19 सितंबर को पुनर्वास के लिए 15 क्षेत्रों को मंजूरी दी थी. कुछ पुनर्वास स्थलों पर अभी भी विचार चल रहा है. इसमें से कुछ पर प्रवासियों की आपत्तियां हैं, जबकि कुछ को लेकर स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.

वहीं, विस्थापित नेताओं ने कुछ वैकल्पिक स्थानों का प्रस्ताव रखा है, जिन पर विचार किया जा रहा है.

बीते 10 महीनों में उत्तरी त्रिपुरा के दो स्थानीय जातीय फोरम- कंचनपुर नागरिक मंच और मिजो कन्वेंशन ने पुनर्वास के खिलाफ कई प्रदर्शन किए हैं. ये दोनों संगठन 23 साल पहले त्रिपुरा आए इन शरणार्थियों पर स्थानीय लोगों के लिए परेशानी का सबब बनने का आरोप लगाते रहे हैं. दोनों संगठनों ने धमकी दी है कि अगर इन शरणार्थियों को कंचनपुर या आसपास के इलाकों में बसाया गया तो बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा.

इस संबंध में मिजोरम ब्रू विस्थापित पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) के महासचिव ब्रूनो मशा ने 29 सितंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा कि दो संगठन सांप्रदायिक गलतफहमी पैदा कर रहे हैं.

मालूम हो कि मिजोरम के ब्रू समुदाय के लोग 1997 में मिजो समुदाय के लोगों के साथ हुए भूमि विवाद के बाद शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से त्रिपुरा पलायन करने लगे थे. उस वक्त समुदाय के ब्रू समुदाय के तकरीबन 37 हजार लोग मिजोरम छोड़कर त्रिपुरा के मामित, कोलासिब और लुंगलेई जिलों में भाग आए थे. इनमें से लगभग 5,000 नौ चरणों में वापस लौटे थे, इसके बावजूद कई ने 2009 में उत्तरी त्रिपुरा में शरण मांगी थी.

ये लोग पिछले 23 सालों से उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर और पानीसागर उप-संभागों के छह शिविरों- नैयसंगपुरा, आशापारा, हजाचेर्रा, हमसापारा, कासकऊ और खाकचांग में रहे रहे हैं.

ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों की बीच हुई यह हिंसा इनके पलायन का कारण बना था. इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी, जब शक्तिशाली यंग मिज़ो एसोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं हैं.

इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की.

इसके बाद 21 अक्टूबर 1996 को बीएनएलफए ने एक मिजो अधिकारी की हत्या कर दी, जिसके बाद से दोनों समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी.

दंगे के दौरान ब्रू समुदाय के लोगों को पड़ोसी उत्तरी त्रिपुरा की ओर धकेलते हुए उनके बहुत सारे गांवों को जला दिया गया था. इसके बाद से ही इस समुदाय के लोग त्रिपुरा के कंचनपुर और पानीसागर उप-संभागों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं.

आदिवासी समुदाय के इन लोगों को मिजोरम वापस भेजने के लिए जुलाई 2018 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, लेकिन यह क्रियान्वित नहीं हो सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था.

इसी साल जनवरी में उनके स्थायी पुनर्वास के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इसके तहत फैसला किया गया है कि मिजोरम से विस्थापित हुए 30 हज़ार से अधिक ब्रू आदिवासी त्रिपुरा में ही स्थायी रूप से बसाए जाएंगे.

 

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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