गोरखपुर दंगा मामला: हाईकोर्ट ने की योगी पर मुकदमे की याचिका स्वीकार

कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ताओं की संशोधित याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 9 अगस्त तय की है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ताओं की संशोधित याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 9 अगस्त तय की है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक दशक पुराने गोरखपुर दंगा मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से राज्य सरकार के इनकार को चुनौती देने की अनुमति वाली याचिका स्वीकार कर ली है.

31 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अखिलेश चंद्र शर्मा की पीठ ने 2007 के गोरखपुर दंगे की सीबीआई जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं परवेज़ परवाज़ और असद हयात को इस पर संशोधित आवेदन देने की इजाज़त दे दी है.

इससे पहले पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मामले में सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल एडवोकेट जनरल एके मिश्रा से सवाल किया कि सरकार की अनुमति न मिलने की स्थिति में याचिकाकर्ताओं को क्या करना चाहिए.

इस पर मिश्रा ने सेक्शन 190 के अनुसार मजिस्ट्रेट द्वारा किसी पुलिस रिपोर्ट या शिकायत पर संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की बात कही थी.

तब इस बात को ख़ारिज करते जस्टिस कृष्ण मुरारी ने उनसे सवाल किया था कि मान लीजिए किसी मामले में मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक है, पुलिस ने अपनी जांच पूरी कर ली है, जांच रिपोर्ट तैयार करके मजिस्ट्रेट को सौंप दी है पर मजिस्ट्रेट के पास सरकार की मंजूरी नहीं है, तो ऐसे में क्या वो आगे बढ़ सकता है? इस स्थिति में मजिस्ट्रेट क्या करेगा?

उन्होंने यह भी कहा था कि किसी याचिकाकर्ता को निरुपाय नहीं छोड़ा जा सकता.

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इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 31 जुलाई की सुनवाई में अप्रैल में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एडवोकेट जनरल अधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह ने भी उनके सहयोगी एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल द्वारा मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के तर्क पर यही आपत्ति जताई थी.

इस पर अदालत ने दोनों की बहस को ‘निरर्थक’ क़रार देते हुए कहा, ‘यहां याचिकाकर्ता के लिए कोई विकल्प नहीं है… आप दोनों पहले ख़ुद तय कर लें कि कहना क्या चाहते हैं… आप ख़ुद ही एकमत नहीं हैं.’

साथ ही पीठ ने एडवोकेट जनरल को सुनवाई के दौरान मौजूद न रहने पर फटकार भी लगाई. अदालत ने कहा, ‘हम एडवोकेट जनरल को इलाहाबाद में रहने का आदेश देते हैं. यहां न रहने की वजह से ही आपका अपने सहयोगियों की बात से तारतम्य नहीं है… इस केस के लिए यहीं रहिए, ये गंभीर मामला है.’

इसके बाद पीठ ने साथ ही राज्य सरकार को याचिकाकर्ताओं की संशोधित याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख 9 अगस्त तय की है.

वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील फरमान नक़वी को संशोधित याचिका सौंपने के लिए एक दिन का समय भी दिया गया है. नक़वी के मुताबिक, ‘हमारी अर्ज़ी में हमने कहा है कि इस मामले में राज्य की अगुवाई एक आरोपी द्वारा की जा रही है. मुकदमा चलाने की अनुमति देने से सरकार के इनकार के निर्णय को चुनौती देने की हमें अनुमति दी जानी चाहिए.’

गौरतलब है कि 2007 में हुए इन दंगों की जांच की मांग परवेज़ परवाज़ द्वारा की गई है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अब मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलने की अनुमति मिलने के बाद परवेज़ राज्य सरकार से अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के इंतज़ाम करने का निवेदन करने वाले हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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