वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुखीम ने साथ न देने का आरोप लगाते हुए एडिटर्स गिल्ड की सदस्यता छोड़ी

द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम पर एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिये सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप में हुई एफआईआर को हाईकोर्ट ने रद्द करने से इनकार कर दिया है. मुखीम का कहना है कि एडिटर्स गिल्ड सिर्फ सेलिब्रिटी पत्रकारों का ही बचाव करती है, उनके मामले पर उसने चुप्पी साध रखी है.

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द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखीम (फोटो साभारः फेसबुक)

द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम पर एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिये सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप में हुई एफआईआर को हाईकोर्ट ने रद्द करने से इनकार कर दिया है. मुखीम का कहना है कि एडिटर्स गिल्ड सिर्फ सेलिब्रिटी पत्रकारों का ही बचाव करती है, उनके मामले पर उसने चुप्पी साध रखी है.

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द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखीम (फोटो साभारः फेसबुक)

शिलॉन्गः वरिष्ठ पत्रकार और पद्मश्री से सम्मानित पैट्रिशिया मुखीम ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया से इस्तीफा दे दिया है.

द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक मुखीम ने कहा कि एडिटर्स गिल्ड उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को मेघालय हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए जाने से इनकार और उन्हें फेसबुक पोस्ट के जरिये सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का दोषी ठहराए जाने पर पूरी तरह चुप है.

मुखीम ने कहा, ‘एडिटर्स गिल्ड ने उनके मामले पर चुप्पी साधे रखी जबकि गिल्ड के सदस्य न होने के बावजूद अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए बयान जारी किया गया.’

बता दें कि मुखीम ने राज्य में ग़ैर-आदिवासी छात्रों पर हुए हमले को लेकर एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिसके लिए उन पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी.

10 नवंबर को मेघालय उच्च न्यायालय ने प्रदेश की मुखीम की फेसबुक पोस्ट के खिलाफ पुलिस में दर्ज शिकायत रद्द करने से मना कर दिया था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, अब मुखीम का कहना है कि देश में पत्रकारों की शीर्ष संस्था एडिटर्स गिल्ड सिर्फ सेलिब्रिटी पत्रकारों का ही बचाव करती है.

अपने इस्तीफे में मुखीम ने कहा कि एडिटर्स गिल्ड ने न्यूज एंकर और संपादक अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा कर बयान जारी किया लेकिन उनके मामले में कोई बयान जारी नहीं किया.

पिछले हफ्ते मेघालय हाईकोर्ट ने जुलाई महीने में मुखीम द्वारा की गई फेसबुक पोस्ट को लेकर उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था.

मुखीम ने कहा था कि उन्होंने एडिटर्स गिल्ड को इस मामले में विस्तार से बताया था.

मुखीम ने अपने इस्तीफे में कहा, ‘मैं अब इसकी सदस्यता से इस्तीफा देना चाहता हूं. ऐसा करने के कई कारण हैं. पहला, एक पत्रकार के तौर पर मैं सेलिब्रिटी संपादकों की लीग का हिस्सा नहीं हूं, जिनके अखबार व्यापक तौर पर पढ़े जाते हैं और जिनके न्यूज वेब पोर्टल बहुत लोकप्रिय हैं.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने इस उम्मीद में गिल्ड के साथ हाईकोर्ट के आदेश को साझा किया कि वह इस संदर्भ में बयान जारी कर निंदा करेगा लेकिन इस संदर्भ में पुरी तरह से चुप्पी साध ली गई.’

मुखीम ने एडिटर्स गिल्ड की नवनिर्वाचित अध्यक्ष सीमा मुस्तफा को लिखे पत्र में कहा, ‘विडंबना यह है कि गिल्ड ने संस्था का सदस्य न होने के बावजूद अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए बयान जारी किया जबकि उनकी गिरफ्तारी पत्रकारिता के आधार पर नहीं बल्कि आत्महत्या मामले में हुई थी. मैं इसे एक सेलेब्रिटी संपादक या एंकर के बचाव में गिल्ड का एक क्लासिक मामला मानती हूं जबकि गिल्ड के ही एक सदस्य की याचिका को जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया गया.’

पैट्रिशिया ने गिल्ड अध्यक्ष सीमा मुस्तफा को भेजे अपने इस्तीफे में कहा कि वह सदस्यता से इस्तीफा देना चाहती हैं, इसलिए उनका त्यागपत्र स्वीकार किया जाए.

गौरतलब है कि इस साल जुलाई में बास्केटबॉल कोर्ट में पांच लड़कों पर हमला हुआ था. हत्यारों का पता नहीं चलने के बाद मुखीम ने लावसोहतुन गांव के ‘दरबार’ (परिषद) पर फेसबुक के माध्यम से हमला बोला था. 

‘दरबार’ या ‘दोरबार शोन्ग’ खासी गांवों की प्रशासनिक इकाई है, जो पारंपरिक शासन चलाती है. इस घटना में कथित रूप से दो समूह- आदिवासी एवं गैर-आदिवासी- शामिल थे. इस मामले में 11 लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया था और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

इस बारे में मुखीम ने अपनी पोस्ट में लिखा था, ‘बास्केटबॉल खेल रहे कुछ गैर-आदिवासी युवाओं पर धारदार हथियार से हमला किया गया और वे अब अस्पताल में हैं, यह एक सरकार एवं पुलिस वाले राज्य में स्वीकार नहीं किया जा सकता है.’

फेसबुक पोस्ट में आगे लिखा गया था, ‘मेघालय में गैर-आदिवासियों पर इस तरह के हमले की निंदा की जानी चाहिए. इसमें से कई के पूर्वज दशकों से यहां पर रह रहे हैं, कुछ तो ब्रिटिश काल से ही यहां पर हैं. और क्षेत्र के दोरबार शोन्ग के बारे में क्या? क्या उनकी आंखें और कान जमीन पर नहीं हैं? क्या वे अपने अधिकारक्षेत्र के आपराधिक तत्वों को नहीं जानते हैं? क्या उन्हें इसमें आगे नहीं आना चाहिए और उन हमलावरों की पहचान करनी चाहिए?’

ग्राम परिषद ने सोशल मीडिया पर पोस्ट के लिए मुखीम के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि उनके बयान से सांप्रदायिक तनाव भड़का है और इससे सांप्रदायिक संघर्ष भी भड़क सकता है.

मुखीम पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने), 505 (किसी भी वर्ग या समुदाय को भकड़ाने के इरादे से बयान देना) और 499 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में मुखीम ने मांग की थी कि उनके खिलाफ शिकायत और शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया जाए.

हालांकि मामले को सुनते हुए जस्टिस डब्ल्यू. दिएंगदोह ने कहा था कि उन्होंने अपने पोस्ट में ‘आदिवासी एवं गैर-आदिवासी की सुरक्षा एवं अधिकारों की तुलना की है और उनका झुकाव एक तरफ रहा है. इसके चलते यह दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव को भड़काने वाली प्रवृत्ति का है.’

पैट्रीशिया मुखीम का कहना है कि वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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