लोकतंत्र में सरकारी कार्यालयों को आलोचना का सामना करना पड़ता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के ख़िलाफ़ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर हम युवाओं को उनके विचार अभिव्यक्त नहीं करने देंगे तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि वे जो अभिव्यक्त कर रहे हैं, वह सही है या ग़लत.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के ख़िलाफ़ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर हम युवाओं को उनके विचार अभिव्यक्त नहीं करने देंगे तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि वे जो अभिव्यक्त कर रहे हैं, वह सही है या ग़लत.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में सरकारी कार्यालयों को आलोचना का सामना करना पड़ता है. अदालत ने कहा कि लोगों को पूरे समाज और व्यक्तिगत रूप से अधिकारों के बीच संतुलन बैठाना होगा.

अदालत ने यह भी कहा कि अगर हम युवाओं को उनके विचार अभिव्यक्त नहीं करने देंगे तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि वे जो अभिव्यक्त कर रहे हैं, वह सही है या गलत.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एमएस कार्णिक की पीठ ने नवी मुंबई के निवासी सुनैना होले (38) की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.

इस साल जुलाई महीने में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए मुंबई और पालघर पुलिस ने सुनैना के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

सुनैना ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अंतरिम सुरक्षा और अपने खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर और आरोपों को रद्द करने की मांग की थी.

बता दें कि मुंबई और पालघर पुलिस ने उनके खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज की थी. युवा सेना के सदस्य रोहन चव्हाण सहित कई लोगों ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

सुनैना पर आईपीसी और आईटी एक्ट की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. अदालत ने 30 अक्टूबर को सुनैना को पुलिस के समक्ष पेश होने और जांच में सहयोग देने को कहा था.

जस्टिस शिंदे ने कहा था, ‘इस समय पुलिस अधिकारियों का काम बहुत मुश्किल है. कई बार उन्हें 12 घंटे से अधिक समय तक काम करना पड़ता है. मोर्चे और जुलूस के लिए भी उन्हें बंदोबस्त करना पड़ता है. इन सबके बावजूद मुंबई पुलिस को स्कॉटलैंड यार्ड के बाद दुनिया में सबसे बेहतर माना जाता है.’

याचिकाकर्ता सुनैना की ओर से मामले में पेश अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकतीऔर उनकी मुवक्किल सरकार की आलोचना करते समय सिर्फ अपनी राय रख रही थीं.

पीठ ने कहा, ‘सच में लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि एक शख्स के मौलिक अधिकारों से दूसरे शख्स के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो.’

जब चंद्रचूड़ ने अदालत को सुनैना का वह वीडियो दिखाया, जिसे उन्होंने ट्वीट किया था तो इस पर अदालत ने सरकारी वकील से पूछा, ‘क्या सरकार हर उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने की मंशा रखती है, जो ट्विटर पर आपत्तिजनक बात कहता है.’

पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र में सरकारी कार्यालयों को रोजाना जनता की आलोचना का सामना करना पड़ता है. लोगों को समाज और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बैठाना होगा. हम जजों को टीवी, ट्विटर देखने को नहीं कहा गया और हम कुछ नहीं जानते. हम तरोताजा दिमाग के साथ रोजाना अदालत आते हैं. हमने लोकतांत्रिक ढांचे को अपनाया है.’

उन्होंने कहा, ‘युवा सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ लिखेंगे. अगर हम उन्हें कुछ भी लिखने नहीं देंगे तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि वे जो अभिव्यक्त कर रहे हैं, वह गलत है या सही.’

मामले की अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होगी.

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