प्रभावशाली लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उपयोग में और ज़िम्मेदार होना चाहिए: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले में यह टिप्पणी की, जिसमें उसने 15 जून को एक शो के दौरान सूफ़ी संत ख़्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती के संबंध में कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर टीवी एंकर अमीश देवगन के ख़िलाफ़ दर्ज कई प्राथमिकीयों को रद्द करने से इनकार कर दिया.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले में यह टिप्पणी की, जिसमें उसने 15 जून को एक शो के दौरान सूफ़ी संत ख़्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती के संबंध में कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर टीवी एंकर अमीश देवगन के ख़िलाफ़ दर्ज कई प्राथमिकीयों को रद्द करने से इनकार कर दिया.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि आम लोगों के बीच अपनी ‘पहुंच, प्रभाव’ आदि को देखते हुए प्रभावशाली लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते हुए अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.

न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों का अपना कर्तव्य भी है. न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नफरत वाले भाषणों के विभिन्न पहलुओं पर गौर किया.

न्यायालय ने कहा कि नफरत वाले भाषणों का ‘किसी विशेष समूह के प्रति घृणा के अलावा कोई अन्य उद्देश्य नहीं है.’

न्यायालय ने कहा कि बहुलतावाद के लिए प्रतिबद्ध राजनीति में, घृणा फैलाने वाला भाषण लोकतंत्र में किसी भी वैध तरीके से योगदान नहीं कर सकता और वास्तव में यह समानता के अधिकार को खारिज करता है.

सर्वोच्च अदालत ने अपने उस फैसले में यह टिप्पणी की, जिसमें उसने 15 जून को एक शो के दौरान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के संबंध में कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर टीवी एंकर अमीश देवगन के खिलाफ दर्ज कई प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया.

जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि प्रभावशाली लोगों को आम लोगों के बीच अपनी पहुंच, प्रभाव और अधिकार को ध्यान में रखते हुए और जिस विशेष वर्ग से वह आते हैं, उसका ध्यान रखते हुए उनका कर्तव्य है और उन्हें अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.

पीठ ने कहा कि अनुभव और ज्ञान के साथ, ऐसे लोगों से बेहतर स्तर के संचार कौशल की उम्मीद होती है. यह कहना उचित है कि वे अपने शब्दों का उपयोग करने में सावधान रहेंगे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, हालांकि पीठ ने कहा कि उसका यह मत नहीं है कि पत्रकारों जैसे प्रभावशाली लोगों को अन्य नागरिकों जैसे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हासिल है.

पीठ ने कहा कि विवादित और संवेदनशील मुद्दों पर बहस और उस पर अपना विचार रखना हमारे लोकतंत्र में सुरक्षित और प्रोत्साहित किया जाने वाला अधिकार है. उसका यह कहना नहीं है कि यदि वे धर्म, जाति, पंथ आदि से संबंधित विवादास्पद और संवेदनशील विषयों पर चर्चा करते हैं और बोलते हैं तो प्रभावशाली या यहां तक कि सामान्य लोगों को प्रतिशोध और अभियोजन के खतरे से डरना चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘इस तरह की चर्चाओं में भाग लेने वाले विवादास्पद और कभी-कभी अतिवादी विचार व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन इसे ‘हेट स्पीच’ के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. क्योंकि यह सभी वैध चर्चाओं और बहस को रोक देगी.’

कोर्ट ने कहा, ‘कई बार इस तरह की चर्चा और बहस विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने में मदद करती हैं और अंतर को पाटती हैं. प्राथमिक तौर पर सवाल इरादे और उद्देश्य का है.’

पीठ ने कहा कि अभद्र भाषा की एक सार्वभौमिक परिभाषा मुश्किल है लेकिन एक बात सामान्य तौर पर मान्य है कि हिंसा के लिए उकसाना दंडनीय है. इसलिए, हेट स्पीच का संवैधानिक और वैधानिक उपचार उन मूल्यों पर निर्भर करता है, जिन्हें बढ़ावा देने की मांग की जाती है.

अमीश देवगन को जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी से संरक्षण मिला रहेगा

15 जून के एक कार्यक्रम में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के मामले में टीवी समाचार एंकर अमीश देवगन के विरूद्ध दर्ज प्राथमिकियों को रद्द करने से सोमवार को इनकार करने के साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि देवगन जांच में सहयोग करना जारी रखते हैं, तो उन्हें जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी से संरक्षण मिला रहेगा.

जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना समेत विभिन्न राज्यों में देवगन के खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकियों को राजस्थान के अजमेर में स्थानांतरित कर दिया.

एक समाचार चैनल पर ‘आर पार’ नामक शो में 15 जून को सूफी संत के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करने के मामले में देवगन के खिलाफ राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में कई प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं.

हालांकि बाद में उन्होंने ट्वीट करके खेद जताया था और कहा था कि वह दरअसल मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी का जिक्र कर रहे थे और गलती से चिश्ती का नाम बोल गए.

पीठ ने देवगन द्वारा 15 जून को प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम की लिपि के संबंधित अंश अपने फैसले में पेश किए और कहा , ‘ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता (पत्रकार) इसमें सिर्फ मेजबान की बजाय समान रूप से भागीदार था.’

पीठ ने कहा, ‘आपत्तिजनक अंश सहित लिपि ‘सामग्री’ का हिस्सा है लेकिन इसके आकलन के लिए इसकी जांच और विभिन्न संदर्भ और इसकी मंशा पर विचार करने की जरूरत होगी. अदालत द्वारा इसे लेकर मामला बनने के बारे में कोई राय बनाने से पहले इनका आकलन करना होगा. आकलन का निर्णय तथ्यों पर आधारित होगा जिसके लिए पुलिस जांच की आवश्यकता होगी.’

न्यायालय ने अपने 128 पन्नों के फैसले में कहा कि देवगन का यह तर्क कि उन्होंने अपने ट्वीट के माध्यम से इसके लिए माफी मांग ली थी, जिसे शिकायतकर्ता और पुलिस ने कहा है कि यह उनके कृत्य की स्वीकरोक्ति का संकेत है.

पीठ ने इन प्राथमिकी को निरस्त करने से इंकार करते हुए कहा कि इस मामले में उसकी टिप्पणियां किसी भी तरह से पेश मामले की पुलिस जांच को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करना चाहिए. पुलिस स्वतंत्र रूप से अपनी जांच करके सच्चाई और सही तथ्यों का पता लगाएगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)