दोषसिद्धि पर रोक नहीं होने की स्थिति में दोषी व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के एर्नाकुलम संसदीय सीट पर सौर पैनल घोटाला मामले में दोषी सरिता नायर का नामांकन पत्र निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के फैसले के ख़िलाफ़ दायर अपील पर सुनाए गए फैसले में यह टिप्पणी की.

(फोटो: द वायर)

शीर्ष अदालत ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के एर्नाकुलम संसदीय सीट पर सौर पैनल घोटाला मामले में दोषी सरिता नायर का नामांकन पत्र निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के फैसले के ख़िलाफ़ दायर अपील पर सुनाए गए फैसले में यह टिप्पणी की.

(फोटो: द वायर)
(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि अगर आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दो साल या इससे ज्यादा की सजा होती है और अगर उसकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जाती है तो ऐसा व्यक्ति जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव लड़ने के अयोग्य है.

शीर्ष अदालत ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के एर्नाकुलम संसदीय सीट पर सरिता नायर का नामांकन पत्र निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनाए गए फैसले में यह टिप्पणी की. न्यायालय ने सरिता नायर की अपील खारिज कर दी.

निर्वाचन अधिकारी ने केरल में 2013 के सौर घोटाले से संबंधित आपराधिक मामले में नायर को दोषी ठहराए जाने और उसे सजा होने के तथ्य के मद्देनजर उसका नामांकन पत्र निरस्त कर दिया था. इस सीट पर कांग्रेस के हिबी एडेन विजयी हुए थे.

नायर ने वायनाड संसदीय सीट पर कांग्रेस के राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए दाखिल नामांकन पत्र इसी आधार पर निरस्त किए जाने को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी. यह अपील दो नवंबर को न्यायालय ने खारिज कर दी थी. इससे पहले अक्टूबर 2019 में केरल हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने नायर की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि उसका नामांकन पत्र निरस्त करना गलत था, क्योंकि उसकी तीन साल की सजा को अपील अदालत ने निलंबित कर दिया था.

पीठ ने कहा कि सजा के अमल का निलंबन दोषसिद्धि की स्थिति नहीं बदलता है और इसलिए ऐसा व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य ही रहेगा.

शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय की इस व्यवस्था के लिए आलोचना की कि नायर की याचिका में तीन त्रुटियों (उचित सत्यापन, अधूरी प्रार्थना और पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप) का सुधार नहीं किया जा सकता था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि ये त्रुटियां सुधार योग्य थीं और याचिकाकर्ता को इन्हें दूर करने का अवसर दिया जाना चाहिए था.

न्यायालय ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) के प्रावधान से स्पष्ट है कि सजा के अमल पर रोक लगाना अयोग्यता के दायरे से बाहर निकलने के लिए पर्याप्त नहीं है.

न्यायालय ने कहा कि सजा के अमल का निलंबन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के संदर्भ में पढ़ना होगा. इस प्रावधान के अंतर्गत सजा नहीं बल्कि सजा पर अमल निलंबित किया गया है.

शीर्ष अदालत ने नायर का नामांकन निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के निर्णय को सही ठहराते हुये कहा कि जब तक दोषसिद्धि पर रोक नहीं होगी, धारा 8 (3) के अंतर्गत अयोग्यता प्रभावी रहेगी.

केरल के सौर घोटाला से जुड़े धोखाधड़ी के दो मामले में कोयंबटूर की अदालत ने सरिता नायर को तीन-तीन की सजा और एक मामले में 10 हजार और दूसरे मामले में 45 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया था.

एक मामला 2008 में वड़ावल्ली में सरिता नायर, उनके पूर्व पति बीजू राधाकृष्णन और एक साथी रवि द्वारा शुरू की गई कंपनी- इंटरनेशनल कंसल्टेंसी एंड मैनेजमेंट सर्विसेज, पावर एंड कनेक्शन- से संबंधित है.

यह कंपनी लोगों को पवन चक्कियों में निवेश करने में मदद करती थी. सरिता नायर इसकी प्रबंध निदेशक और रवि निदेशक थे.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, एक उद्योगपति त्यागराजन ने 26.5 लाख रुपये का निवेश किया, जबकि दो और लोगों ने 2008 में क्रमश: 4 लाख रुपये और 7 लाख रुपये का निवेश किया.

2009 में एक अन्य व्यक्ति ने कंपनी को 6.87 लाख रुपये का भुगतान किया. चारों की ओर से दर्ज शिकायतों के आधार पर, दो मामले दर्ज किए गए और 2010 और 2011 में आरोप पत्र दायर किए गए.

सौर पैनल घोटाला मामले में सरिता नायर की कंपनी ‘टीम सोलर’ ने बिजनेस पार्टनर बनाने या सोलर पावर इकाई लगाने में मदद के लिए तमाम प्रभावशाली लोगों को 70 लाख रुपये का चूना लगाया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)