क़ानून मंत्रालय द्वारा संसद की परामर्श समिति को भेजे एक दस्तावेज में कहा गया है कि ज़्यादातर उच्च न्यायालय चाहते हैं कि अधीनस्थ अदालतों पर उनका प्रशासनिक नियंत्रण बना रहे.
क़ानून मंत्रालय के एक दस्तावेज में कहा गया है कि नौ उच्च न्यायालयों ने निचली न्यायपालिका के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा होने के एक प्रस्ताव का विरोध किया है जबकि आठ उच्च न्यायालयों ने प्रस्ताव की रूपरेखा में बदलाव की मांग की है.
केवल दो उच्च न्यायालयों ने ही निचली न्यायपालिका में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के विचार का समर्थन किया है.
विधि और न्याय पर संसद की परामर्शदाता समिति के सभी सदस्यों को भेजे गए दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि 24 उच्च न्यायालयों में से ज़्यादातर उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायपालिका पर नियंत्रण चाहते हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में निचली न्यायपालिका के लिए अलग कैडर वाली एक नयी सेवा के लिए अरसे से लंबित प्रस्ताव पर फिर से ज़ोर दिया है. ज्ञात हो कि सबसे पहले यह विचार 1960 के दशक में पेश किया गया था.
दस्तावेज के अनुसार, आंध्रप्रदेश, बंबई, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पटना और पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (एआईजेएस) के विचार के पक्ष में नहीं हैं.
इस दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि केवल सिक्किम और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों ने ही निचली अदालतों के लिए एक अखिल भारतीय सेवा की व्यवस्था किए जाने के लिए सचिवों की समिति द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव के पक्ष में राय जाहिर की है.
इलाहाबाद, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा और उत्तराखंड उच्च न्यायलयों ने प्रवेश स्तर पर आयु सीमा, शिक्षा, प्रशिक्षण और प्रस्तावित सेवा के माध्यम से भरी जाने वाली रिक्तियों के कोटे में बदलाव का सुझाव दिया है.
दस्तावेज में कहा गया है कि ज़्यादातर उच्च न्यायालय चाहते हैं कि अधीनस्थ अदालतों पर उनका प्रशासनिक नियंत्रण बना रहे.
कई उच्च न्यायालय कर रहे हैं विचार
इस दस्तावेज में आगे कहा गया है कि झारखंड और राजस्थान उच्च न्यायालयों ने संकेत दिया है कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन संबंधी मामला विचार के लिए लंबित है . कलकत्ता, जम्मू और कश्मीर तथा गुवाहाटी उच्च न्यायालयों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
सरकार ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय को निचली न्यायपालिका में न्यायाधीशों की भर्ती के लिए सुझाव दिये थे, जिनमें एक सुझाव नीट की तरह परीक्षा आयोजित किए जाने का भी था.
31 दिसंबर 2015 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश में अधीनस्थ अदालतों में 4,452 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं. अधीनस्थ अदालतों में स्वीकृत रिक्तियों की संख्या 20,502 है और न्यायाधीशों तथा न्यायिक अधिकारियों की वास्तविक संख्या 16,050 है.
सरकार ने दिया नीट मॉडल का प्रस्ताव
सरकार ने उच्चतम न्यायालय को यह भी बताया कि मेडिकल पाठ्यक्रमों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए नेशनल एलीजिबिलिटी कम एन्ट्रेन्स टेस्ट (नीट) के लिए अपनाये जाने वाले सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) मॉडल पर भी विचार किया जा सकता है.
मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय को विभिन्न मॉडलों का सुझाव दिया ताकि अधीनस्थ अदालतों में रिक्तियों को तेजी से भरा जा सके.
नीट मॉडल के अलावा क़ानून मंत्रालय ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि अभ्यर्थियों के चयन के लिए भर्ती निकाय उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एक केंद्रीकृत परीक्षा आयोजित कर सकता है.
यूपीएससी और आईबीपीएस भी ले सकते हैं मदद
साथ ही मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी से न्यायिक अधिकारियों की भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करने को कहा जा सकता है.
मंत्रालय के अनुसार यूपीएससी ऐसी खास परीक्षा के आयोजन के लिए उच्च न्यायालयों से परामर्श कर अपनी प्रक्रियाओं में बदलाव कर सकता है.
सचिव न्यायिक ने भी सुझाव दिया कि निचली अदालतों में न्यायाधीशों की भर्ती के लिए इन्स्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग एंड पर्सनल सलेक्शन (आईबीपीएस) की कुछ प्रक्रियाओं का पालन किया जा सकता है.
वर्तमान में न्यायिक अधिकारियों की भर्ती के लिए विभिन्न उच्च न्यायालय और राज्य सेवा आयोग परीक्षाओं का आयोजन करते हैं.