जलवायु आपदाओं के चलते 2050 तक साढ़े चार करोड़ भारतीय विस्थापित हो सकते हैं: रिपोर्ट

एक्शन एड इंटरनेशनल और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया की रिपोर्ट के अनुसार, पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकने की राजनीतिक असफलता के कारण अकेले दक्षिण एशिया में बड़ी संख्या में विस्थापन होगा और यह क्षेत्र बाढ़, सूखा, तूफान, चक्रवात जैसी जलवायु संबंधी आपदाओं से जूझेगा.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

एक्शन एड इंटरनेशनल और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया की रिपोर्ट के अनुसार, पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकने की राजनीतिक असफलता के कारण अकेले दक्षिण एशिया में बड़ी संख्या में विस्थापन होगा और यह क्षेत्र बाढ़, सूखा, तूफान, चक्रवात जैसी जलवायु संबंधी आपदाओं से जूझेगा.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जलवायु परिर्वतन के कारण आने वाली आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि के कारण 2050 तक भारत की साढ़े चार करोड़ से ज्यादा आबादी को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़ेंगे.

एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में 2020 में अपने घरों से विस्थापित होने वालों की संख्या करीब 1.4 करोड़ है जो 2050 तक तीन गुनी हो जाएगी.

यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ‘एक्शन एड इंटरनेशनल’ और ‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया’ के अध्ययन पर आधारित है.

‘जलवायु निष्क्रियता की कीमत: विस्थापन और कष्टकारक आव्रजन’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया के पांच देशों – भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में मजबूरन होने वाले विस्थापन और आव्रजन (माइग्रेशन) के साथ-साथ 2050 में सिर्फ इस क्षेत्र में छह करोड़ लोगों से ज्यादा की जीविका पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव का आकलन किया गया है.

आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण 2050 तक अकेले भारत में 4.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ेगा.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकने की राजनीतिक असफलता के कारण जलवायु आपदाएं पहले ही 2020 में करीब 1.8 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर कर रही हैं.’

शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में आकलन किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अकेले दक्षिण एशिया में बड़ी संख्या में विस्थापन होगा. यह क्षेत्र जलवायु संबंधी आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान और चक्रवात से जूझेगा.

यह अध्ययन ब्रायन जोन्स ने किया है. वे 2018 में ‘ग्राउंड्सवेल रिपोर्ट ऑन इंटरनल क्लाइमेट माइग्रेशन’ (जलवायु परिवर्तन के कारण आंतरिक विस्थापन) पर पहली रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं.

एक्शन एड में ग्लोबल क्लाइमेट के हरजीत सिंह ने कहा, ‘हम नेपाल में ग्लेशियर के पिघलने, भारत-बांग्लदेश में समुद्री जलस्तर बढ़ने, चक्रवात और तापमान में बदलाव को झेल रहे हैं. जलवायु परिवर्तन लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाने और जीविका के नए साधान खोजने पर मजबूर कर रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘धनी देशों को अपना उत्सर्जन कम करने की जिम्मेदारी लेनी होगी और उत्सर्जन कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में दक्षिण एशिया देशों का साथ देना होगा. मनुष्य के समय पर कदम नहीं उठाने की कीमत बहुत भारी होगी.’

रॉयटर्स के मुताबिक, हरजीत सिंह ने कहा, ‘ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ में नीति निर्माता अभी तक इस वास्तविकता को नहीं पहचान रहे हैं और समस्या की व्यापकता को महसूस नहीं कर रहे हैं कि हम कैसे इससे निपटने जा रहे हैं.’

सिंह ने कहा कि स्थिति बेहद विनाशकारी हो सकती है क्योंकि कई ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों की ओर अपनी आजीविका की तलाश में जाएंगे.

उन्होंने कहा कि वहां वे लोग मजदूरी, रिक्शा, निर्माण कार्य जैसी अनिश्चित नौकरियां करते हैं. वे अक्सर बाढ़ग्रस्त झुग्गी इलाके में रहते हैं. उन तक सामाजिक सेवाओं की पहुंच बहुत सीमित होती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और बांग्लादेश जैसे देशों के लिए वित्तीय निहितार्थ हैं, जहां गरीब लोगों को अक्सर सरकारों के मदद के बिना अपने मूल घरों से दूर सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

नए आंकड़ों में अनुमान लगाया गया है कि भारत में 2050 तक साढ़े चार करोड़ से अधिक लोगों के पलायन करने की संभावना है. रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में पलायन में सात गुना वृद्धि होने की संभावना है.

रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई सरकारों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े आपदाओं से विस्थापन रोकने की तैयारी करने का आह्वान किया गया है. साथ ही भविष्य में पलायन के लिए मजबूर होने वाले लोगों की संख्या को कम करने पर जोर दिया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि संकट से विस्थापन को रोकने में मदद करने वाले उपायों में खेती के तरीकों को बढ़ावा देना, मिट्टी को अच्छी स्थिति में रखना, पानी का अधिक कुशलता से प्रबंधन करना, फसलों में सुधार करना या नई फसलों को उगाने की कोशिश करना और पैसे कमाने के तरीके शामिल हैं.

साथ ही रिपोर्ट में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत बनाने और जलवायु आपदाओं से प्रभावित लोगों के लिए काम करने, शहरों में प्रवासी कामगारों के लिए आवश्यक सेवाओं में सुधार करने की सिफारिश की है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां लोगों को स्थानांतरित किया जाता है, वहां अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भूमि सुरक्षित और उपजाऊ हो, काम के अधिकार सुरक्षित हों और लोगों के पास नए घर बनाने के लिए पर्याप्त धन हो.

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने कहा कि गरीबी और असमानता से निपटने के लिए प्राकृतिक आपदाओं से विस्थापित लोगों को क्षेत्रीय प्रक्रियाओं का हिस्सा बनाना आवश्यक है.

उन्होंने कहा, ‘दक्षिण एशियाई नेताओं को इसमें शामिल होना चाहिए और विस्थापित लोगों की सुरक्षा के लिए योजनाएं तैयार करनी चाहिए.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)