केंद्र सरकार से कलकत्ता उच्च न्यायालय नाराज़ क्यों है?

जजों की कमी के मसले पर उच्च न्यायालय ने केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को भेजे एक आदेश में कहा है कि पीठ की विनम्रता को उसकी कमज़ोरी न समझा जाए.

कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)

जजों की कमी के मसले पर उच्च न्यायालय ने केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को भेजे एक आदेश में कहा है कि पीठ की विनम्रता को उसकी कमज़ोरी न समझा जाए.

कलकत्ता हाईकोर्ट (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)
कलकत्ता उच्च न्यायालय (फोटो साभार: Twitter/@LexisNexisIndia)

कलकत्ता उच्च न्यायालय की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश निशिता म्हात्रे ने उच्च न्यायालय में जजों की कमी पर खेद जताते हुए कहा है कि जजों की वांछित संख्या न होने के चलते न्यायालय समय से काम न कर पाने के लिए विवश है.

जस्टिस म्हात्रे ने बताया कि उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा चयनित नामों की सिफारिश भेजी जा चुकी है, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी है बस केंद्र सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति को हरी झंडी देनी है.

गौरतलब है कि चार अगस्त को टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) से जुड़ी एक जनहित याचिका की सुनवाई में हो रही देर पर एक वरिष्ठ अधिवक्ता बिकास भट्टाचार्य ने कहा था कि इस तरह हज़ारों विद्यार्थियों को न्याय का इंतज़ार भी बढ़ता जा रहा है.

इस पर जस्टिस म्हात्रे का कहना था, ‘अधिवक्ताओं और जनता के लिए न्यायपालिका की आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन कोर्ट क्या कर सकता है? जजों की कमी के कारण हमारे पास समय ही नहीं है.’

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार बिकास भट्टाचार्य का कहना था कि जजों की नियुक्ति में हो रही इस देर का कारण अदालती नहीं बल्कि राजनीतिक है. मुख्य न्यायाधीश म्हात्रे ने भी भट्टाचार्य की इस बात पर सहमत होते हुए कहा कि जजों की कमी राजनीतिक मुद्दा है.

गौरतलब है कि नियमानुसार कलकत्ता उच्च न्यायालय में 72 जज होने चाहिए पर इस समय कोर्ट में 34 जज हैं. चीफ जस्टिस ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल कौशिक चन्दा से केंद्र के इस मसले पर रवैये पर भी सवाल किया, जिस पर कौशिक का कहना था कि केंद्र द्वारा इस पर विचार किया जा रहा है.

इस पर जस्टिस म्हात्रे ने यह जानना चाहा कि कब तक ऐसा चलेगा क्योंकि देश के इस सबसे पुराने उच्च न्यायालय में किसी जज की आखिरी बार नियुक्ति लगभग डेढ़ साल पहले हुई थी.

इससे पहले 12 जुलाई को जस्टिस दीपांकर दत्ता और डीपी डे की पीठ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में हो रही इस देर पर फटकार लगाते हुए इस दिशा में कदम न उठाए जाने पर समुचित कार्रवाई की चेतावनी दी थी. साथ ही पीठ ने यह सवाल भी किया था कि क्या देश यह सोच सकता है कि संसद अपनी आधी संख्या के साथ काम कर सकती है.

जजों की कमी से आ रही मुश्किलों को इंगित करते हुए इस पीठ ने कहा था कि न्यायिक प्रणाली को ध्वस्त होने से बचाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति की दिशा में काम करने की ज़रूरत है.

पीठ ने सरकार को स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा दिलाने के लिए जजों से जुड़े आंकड़े भी बताए थे. उन्होंने केंद्र को बताया कि अगले महीने उच्च न्यायालय से तीन जज रिटायर होने वाले हैं, जिसके बाद नवंबर 2017 में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सहित चार और जज सेवानिवृत्त होंगे. फरवरी में फिर चार जज रिटायर होंगे. अगर तब तक नए जजों की नियुक्तियां नहीं हुईं, तो जजों की स्वीकृत संख्या के 66 फीसदी पद खाली होंगे.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार उच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को भेजे एक आदेश में कहा गया है, ‘पीठ की विनम्रता को उसकी कमज़ोरी न समझा जाए. ये स्पष्ट किया जा चुका है कि उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर इस आदेश में व्यक्त की गई चिंताओं के बावजूद केंद्र की इस मुद्दे पर चुप्पी को भविष्य में न्याय व्यवस्था में दख़ल के तौर पर देखा जाएगा, साथ ही इस पर ज़रूरी क़ानूनी कदम उठाया जाएगा.

अब तक केंद्र की ओर से इस मुद्दे पर कोई जवाब नहीं दिया गया है.

(पीटीआई से इनपुट के साथ)