अगर कानून वापस नहीं लिए जाते हैं तो आंदोलनकारी किसान भी घर वापस नहीं जाएंगे: राकेश टिकैत

केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते एक महीने से दिल्ली की सीमाओं में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत अब तक बेनतीजा रही है. किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है.

/
राकेश टिकैत. (फोटो साभार: फेसबुक)

केंद्र द्वारा लाए गए तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते एक महीने से दिल्ली की सीमाओं में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत अब तक बेनतीजा रही है. किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है.

राकेश टिकैट. (फोटो: पीटीआई)
राकेश टिकैट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली की सीमा पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक महीना हो गया है. सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत अब तक बेनतीजा रही है. भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है.

उनका कहना है कि अगर कानून वापस नहीं लिए जाते हैं तो आंदोलनकारी किसान भी घर वापस नहीं जाएंगे.

सवाल: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का कोई नतीजा नहीं निकला है. आगे की राह क्या होगी?

सरकार हमसे बातचीत करना चाहती है और हमसे तारीख तथा मुद्दों के बारे में पूछ रही है. हमने 29 दिसंबर को बातचीत का प्रस्ताव दिया है. अब सरकार को तय करना है कि वह हमें कब बातचीत के लिए बुलाती है.

हमारा कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए तौर-तरीके और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए गारंटी का मुद्दा सरकार के साथ बातचीत के एजेंडे में शामिल होना चाहिए. हमने साफ कहा है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है. कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं.

सवाल: आपने हाल ही में किसान आंदोलन को लेकर गुरुद्वारा ‘लंगर’ की तरह मंदिरों व धार्मिक ट्रस्टों से भी योगदान देने की बात कही थी. इस बयान से पैदा हुए विवाद पर क्या कहेंगे?

यह आंदोलन में फूट डालने वालों की चाल है. मेरे बयान का आशय मंदिर में पुजारी व धार्मिक ट्रस्ट की तरफ से गुरुद्वारा ‘लंगर’ की तर्ज पर आंदोलन में अपने बैनर के साथ लंगर सेवा प्रदान करने से था. मेरे बयान को अन्यथा न लिया जाए और उसे गलत तरीके से पेश नहीं किया जाए. आंदोलन सभी का है.

हमारा बयान मंदिरों या ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं है. ‘ऋषि और कृषि’ की दो पद्धतियों पर हिंदुस्तान की संस्कृति आधारित है. हम इन दोनों पद्धतियों को मानते हैं. इस सबके बाद भी अगर किसी को मेरी किसी बात से ठेस पहुंची हो तो मैं सौ दफा माफी मांगने को तैयार हूं.

सवाल: किसानों और सरकार के बीच बातचीत में अड़चन कहां आ रही है. सरकार से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं?

सरकार एक तरफ वार्ता का न्योता भेजती है, दूसरी तरफ किसानों की मांग को खारिज करती है. यह सरकार के दोहरे चरित्र को दर्शाता है. क्या सरकार द्वारा घोषित फसलों का मूल्य मांगना गलत है.

सरकार से हमारी कोई लड़ाई नहीं है. वार्ता के सारे रास्ते खुले हैं. ऐसे में बीच का रास्ता यह है कि पहले तीनों कृषि कानूनों को खत्म कर एमएसपी पर कानून बनाया जाए.

सवाल: सरकार का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. इस पर क्या कहेंगे?

विपक्ष में इतनी ताकत होती तो वह सत्ता से हटते ही क्यों. इस आंदोलन में तो भाजपा वाले भी आ रहे हैं. लोग यहां आकर हमसे कह रहे हैं कि यहां से हटना नहीं. हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन करने का संविधान में अधिकार दिया गया है.

मेरा निवेदन है कि कोई भी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश न करें. यह आंदोलन पूरे देश के अन्नदाताओं का आंदोलन है. सरकार भी तो इस मुद्दे पर सार्वजनिक बैठकें कर रही है. क्या भाजपा के लोगों ने कभी आंदोलन नहीं किया.

सवाल: प्रधानमंत्री और सरकार के मंत्री इन कानूनों को किसानों के हित में बता रहे हैं. कई किसान संगठनों ने इनका समर्थन किया है.

देखिये, इन कानूनों के बनने से पहले ही देश में गोदाम बनने लगे थे. पहले कह रहे थे कि वे गोशालाएं बना रहे हैं, लेकिन बने गोदाम. गोशाला तो एक भी नहीं बन पाई. दूसरी ओर, खेती की लागत बढ़ गई है और किसान अपनी पैदावार आधे दामों पर बेचने को मजबूर है. लेकिन, अब कोई किसानों की आय दोगुनी होने की बात कर रहा है.

मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए कृषि से संबंधित तीन विधेयकों– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020- के विरोध में पिछले एक महीने से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

केंद्र सरकार इन कानूनों को कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार के रूप में पेश कर रही है. हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा और मंडी प्रणाली को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे तथा उन्हें बड़े कॉर्पोरेट की दया पर छोड़ देंगे.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq