2020 में राष्ट्रीय महिला आयोग को मिलीं हिंसा की 23 हज़ार से अधिक शिकायतें, छह साल में सर्वाधिक

राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में मिली कुल शिकायतों में से एक चौथाई घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं. सर्वाधिक शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिलीं, इसके बाद दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र रहे.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में मिली कुल शिकायतों में से एक चौथाई घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं. सर्वाधिक शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिलीं, इसके बाद दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र रहे.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय महिला आयोग को 2020 में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा के संबंध में 23,722 शिकायतें मिलीं, जो पिछले छह वर्षों में सबसे ज्यादा हैं.

आयोग के आंकड़ों के अनुसार कुल शिकायतों में से एक चौथाई घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं.

इसने बताया कि सबसे ज्यादा 11,872 शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिलीं. इसके बाद दिल्ली से 2,635, हरियाणा से 1,266 और महाराष्ट्र से 1,188 शिकायतें मिलीं.

कुल 23,722 शिकायतों में 7,708 शिकायतें सम्मान के साथ जीने के प्रावधान से जुड़ी थीं, जिसमें महिलाओं के भावनात्मक उत्पीड़न के मामले देखे जाते हैं. आयोग के आंकड़ों के अनुसार कुल 5,294 शिकायतें घरेलू हिंसा से जुड़ी हैं.

आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि हो सकता है कि 2020 में आर्थिक असुरक्षा, तनाव बढ़ने, वित्तीय चिंताओं समेत अन्य चिंताओं और ऐसे में माता-पिता/परिवार की तरफ से भावनात्मक सहायता न मिलने का परिणाम घरेलू हिंसा के रूप में निकला हो.

उन्होंने कहा, ‘घर पति-पत्नी दोनों के लिए कार्यस्थल और बच्चों के लिए स्कूल-कॉलेज बन गया. ऐसी परिस्थितियों में महिलाएं एक ही स्थान से घर भी संभाल रही हैं और पेशेवर भी हैं. लेकिन महिलाओं के सामने इस साल की सबसे बड़ी चुनौती इन परिस्थितियों में तालमेल बिठाने की ही नहीं, बल्कि इस अप्रत्याशित स्थिति में भी आगे बढ़ने की है.’

आयोग के आंकड़ों के अनुसार 2020 में मिली शिकायतें पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक हैं. इससे पहले 2014 में 33,906 शिकायतें मिली थीं.

कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के बीच मार्च में आयोग को घरेलू हिंसा की बहुत अधिक शिकायतें मिलीं. लॉकडाउन में महिलाएं घर में उत्पीड़न करने वालों के साथ ही जीने को मजबूर हो गईं.

यह सिलसिला मार्च में ही नहीं, बल्कि अगले कुछ महीनों में बढ़ता ही गया और जुलाई में इस संबंध में 660 शिकायतें मिलीं.

शर्मा ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा की पीड़िताओं को उन लोगों का सहयोग नहीं मिल पा रहा था जो इस तरह के समय में पूर्व में उनका साथ देते थे.

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा के मामले दर्ज कराने की संभावनाएं भी महिलाओं के पास कम हो गईं और वे इस बीच सुरक्षित स्थानों पर भी नहीं जा सकती थीं तथा मायके के साथ भी उनका संपर्क कम हो गया, जो ऐसे वक्त में उनके लिए संपर्क और सहायता का बड़ा जरिया हुआ करता था.

उन्होंने कहा, ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाले तंत्रों की पहचान लॉकडाउन में अनिवार्य सेवा के रूप में नहीं की गई और ऐसे में सुरक्षा अधिकारी तथा गैर सरकारी संगठन पीड़िताओं के घर जाने में असमर्थ हो गए. वहीं, पुलिस अधिकारियों के पास कोविड-19 से निपटने के इतने काम थे कि वे प्रभावी तरीके से पीड़िताओं की मदद नहीं कर पाए.’

आंकड़ों के अनुसार 1,276 शिकायतें महिलाओं के प्रति पुलिस की उदासीनता और 704 शिकायतें साइबर अपराध की हैं. वहीं, 1,234 शिकायतें दुष्कर्म या दुष्कर्म की कोशिश की मिली हैं जबकि यौन उत्पीड़न की 376 शिकायतें 2020 में मिलीं.

शर्मा ने महिलाओं से अपील की कि उन्हें जब भी जरूरत पड़े, वे राष्ट्रीय महिला आयोग से संपर्क करें.

पीपल्स अगेंस्ट रेप इन इंडिया (पीएआरआई) की प्रमुख, महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि ज्यादा संख्या में शिकायतें मिलने के पीछे महिलाओं में मामलों के बारे में बात करने और शिकायत करने को लेकर बनी जागरूकता भी एक वजह हो सकती है.

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया की वजह से घरेलू हिंसा की शिकायतों के मामले बढ़े हैं. अब महिलाएं आवाज उठाती हैं और वे दबती नहीं है, जो कि अच्छी बात है.

वहीं, एक अन्य महिला अधिकार कार्यकर्ता शमीना शफीक ने कहा कि सरकार को घरेलू हिंसा के बारे में कड़ाई से बात करने की जरूरत है क्योंकि दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से पुरुष यह सोचता है कि महिला को पीटना उसका अधिकार है.

बता दें कि बीते दिसंबर में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) ने एक रिपोर्ट जारी किया था जिसमें कहा गया था कि पांच राज्यों की 30 फीसदी से अधिक महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक एवं यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे बुरा हाल कर्नाटक, असम, मिजोरम, तेलंगाना और बिहार में है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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