‘लव जिहाद’ क़ानून: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को मिला सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लागू नए धर्मांतरण रोधी क़ानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन क़ानूनों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि राज्य सरकारों का पक्ष सुने बिना कोई आदेश नहीं दिया जा सकता.

/
(फोटो: रॉयटर्स)

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लागू नए धर्मांतरण रोधी क़ानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन क़ानूनों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि राज्य सरकारों का पक्ष सुने बिना कोई आदेश नहीं दिया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)
सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विवाह के लिए धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों पर रोक लगाने से बुधवार को इनकार कर दिया.

हालांकि, न्यायालय ने इन कानूनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए.

सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने इन कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकारों का पक्ष सुने बगैर कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है.

अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अन्य तथा गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.

इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहले से ही यह मामला लंबित है. इस पर पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट जाना चाहिए.

एक याचिकाकर्ता ने जब यह कहा कि शीर्ष अदालत को ही इन कानूनों की वैधता पर विचार करना चाहिए तो पीठ ने कहा कि यह स्थानांतरण याचिका नहीं है, जिसमें कानून से जुड़े सारे मामले वह अपने यहां मंगा ले.

हालांकि, गैर सरकारी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) दीपक गुप्ता के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इसी तरह के कानून विभिन्न राज्यों में बनाए जा रहे हैं.

उन्होंने इन कानूनों के प्रावधानों पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि लोगों को शादी के बीच से उठाया जा रहा है.

सिंह ने कहा कि इस कानून के कुछ प्रावधान तो बेहद खतरनाक और दमनकारी किस्म के हैं और इनमें शादी से पहले सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता का प्रावधान भी है, जो सरासर बेतुका है.

पीठ ने कहा कि वह इन याचिकाओं पर नोटिस जारी करके दोनों राज्यों से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांग रही है.

सिंह ने जब कानून के प्रावधानों पर रोक लगाने पर जोर दिया, तो पीठ ने कहा कि राज्यों का पक्ष सुने बगैर ही इसका अनुरोध किया जा रहा है. पीठ ने कहा, ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’

उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने राज्य में कथित लव जिहाद की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 जारी किया था, जिसे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को मंजूरी दी थी.

इस कानून के तहत विधि विरुद्ध किया गया धर्म परिवर्तन गैर जमानती अपराध है. यह कानून सिर्फ अंतरधार्मिक विवाहों के बारे में है लेकिन इसमें किसी दूसरे धर्म को अंगीकार करने के बारे में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गयी है.

इस कानून में विवाह के लिए छल कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर अधिकतम 10 साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है.

इसी तरह, उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 में छल कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्मांतरण कराने का दोषी पाए जाने पर दो साल की कैद का प्रावधान है.

विशाल ठाकरे और अन्य का कहना था कि वे उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश से प्रभावित हैं क्योंकि यह संविधान में प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कम करता है.

इनकी याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा ‘लव जिहाद’ के खिलाफ बनाए गए कानून और इसके तहत दंड को अवैध और अमान्य घोषित किया जाए क्योंकि यह संविधान के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करता है.

याचिका के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित अध्यादेश और उत्तराखंड का कानून आमतौर पर लोक नीति और समाज के विरुद्ध है.

गैर-सरकारी संगठन ने अपनी याचिका में कहा है कि दोनों कानून संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ये राज्य को लोगों की व्यक्तिगत स्वतंतत्रा और अपनी इच्छा के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के अधिकार को दबाने का अधिकार प्रदान करता है.

इस संगठन के अनुसार, उत्तर प्रदेश का अध्यादेश स्थापित अपराध न्याय शास्त्र के विपरित आरोपी पर ही साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी डालता है.

याचिका में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा बनाए गए इन कानूनों को संविधान के खिलाफ करार देने का अनुरोध किया गया है.

बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उत्‍तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्‍यादेश, 2020 लाने के बाद से राज्य में 14 केस दर्ज किए गए और 51 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें से 49 अभी जेल में हैं.

वहीं, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ ही दो अन्य भाजपा शासित राज्यों मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में कथित लव जिहाद रोकने के लिए धर्मांतरण रोधी नया कानून लाया गया है.

बीते दिसंबर में भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में जबरन या बहला-फुसलाकर धर्मांतरण या शादी के लिए धर्मांतरण के खिलाफ कानून को लागू किया गया था. इसका उल्लंघन करने के लिए सात साल तक की सजा का प्रावधान है.

वहीं, दिसंबर के अंत में ही मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने कैबिनेट की बैठक में मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश-2020 को मंजूरी दे दी.

इस अध्यादेश में जबरन शादी, धमकी, लोभ या किसी तरह के प्रभाव से धर्मांतरण के लिए न्यूनतम एक से पांच साल तक की कैद और 25,000 रुपये का जुर्माना और अधिकतम तीन से दस साल की कैद और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.

हालांकि, इसे अभी राज्यपाल से मंजूरी मिलनी बाकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq