मध्य प्रदेश: कोरोना वायरस की वैक्सीन लगने के नौ दिन बाद मज़दूर की संदिग्ध हालत में मौत

भोपाल में 45 वर्षीय दीपक मरावी को यहां के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में बीते 12 दिसंबर को भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोवैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी. बीते 21 दिसंबर को तबीयत बिगड़ने के बाद उनकी मौत हो गई. मृतक के परिवार का आरोप है कि वैक्सीन से उनकी जान गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

भोपाल में 45 वर्षीय दीपक मरावी को यहां के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में बीते 12 दिसंबर को भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोवैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी. बीते 21 दिसंबर को तबीयत बिगड़ने के बाद उनकी मौत हो गई. मृतक के परिवार का आरोप है कि वैक्सीन से उनकी जान गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना वायरस का टीका ‘कोवैक्सीन’ लगाए जाने के बाद 45 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत का मामला सामने आया है. उन्हें यह टीका भोपाल के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में लगाया गया था.

कोवैक्सीन भारत बायोटेक और भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोरोना वैक्सीन है, जिसका फाइनल ट्रायल बीते सात जनवरी को पूरा हुआ है.

मृतक की पहचान दीपक मरावी के रूप में हुई, हालांकि उनकी मौत 21 दिसंबर 2020 को हो गई थी, लेकिन इसकी जानकारी बीते आठ जनवरी को मीडिया को हुई.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, दीपक भोपाल के टीला जमालपुरा स्थित सूबेदार कॉलोनी में अपने घर में मृत पाए गए थे. अगले दिन उनके शव का पोस्टमॉर्टम हुआ था और प्रारंभिक रिपोर्ट में उनके शरीर में जहर मिलने की पुष्टि हुई है.

बीते आठ जनवरी को दीपक के 18 वर्षीय बेटे आकाश मरावी ने उनकी मौत की जानकारी दी. हालांकि मौत कोवैक्सीन का टीका लगवाने से हुई या किसी अन्य कारण से, इसकी पुष्टि पोस्टमार्टम की फाइनल रिपोर्ट आने के बाद होगी. दीपक के शव का विसरा पुलिस को सौंप दिया गया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, दीपक मरावी कोवैक्सिन के तीसरे चरण के मानव परीक्षण में शामिल हुए थे. पीपुल्स मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अनिल दीक्षित ने कहा, ‘यह मामला हमारे संज्ञान में आया था कि एक स्वयंसेवक दीपक मरावी की मृत्यु हो गई. हालांकि, मौत टीके के प्रतिकूल प्रभाव से नहीं, बल्कि अन्य कारणों से हुई है.’

मरावी के बेटे आकाश ने बताया कि वह मजदूर थे और टीका परीक्षण के लिए एक स्वयंसेवक के रूप में शामिल हुए थे. उन्हें 12 दिसंबर को पहली खुराक दी गई थी.

दीपक की पत्नी वैजयंती मरावी ने एनडीटीवी को बताया, ‘वो इंजेक्शन लगवा कर आए, सात दिन तक ठीक थे, खाना खा रहे थे. इसके बाद उन्हें चक्कर आने लगे. मैंने उनसे कहा था कि चलते नहीं बन रहा तो आराम करो. वो खाना थोड़ा-थोड़ा खा रहे थे. 21 को उन्हें उल्टी होने लगी मुंह से झाग निकल रहा था.’

उन्होंने कहा, मैंने कहा डॉक्टर के पास चलो वो जिद में रहे कहे कहीं नहीं जाऊंगा मुझे आराम करने दो, मुझसे चलते नहीं बन रहा. कोई बीमारी नहीं थी. उनकी मौत वैक्सीन से हुई है. हमें कहीं से कोई मदद नहीं मिली, कोई नहीं आया. मैंने उनसे कहा था कि वैक्सीन मत लगवाना ये खतरे का काम है. अब हमारे पास कुछ नहीं बचा.’

आकाश ने दैनिक भास्कर को बताया कि टीका लगवाने के बाद उनकी सेहत का हाल जानने के लिए अस्पताल से फोन आते रहे. 21 दिसंबर को उनके पिता की निधन की जानकारी लेने पीपुल्स प्रबंधन से तीन बार फोन आया, लेकिन संस्थान से कोई भी नहीं आया.

उन्होंने ये भी बताया के उनके पिता भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित भी थे.

रिपोर्ट के अनुसार, पीपुल्स मेडिकल कॉलेज की थर्ड फेज क्लीनिकल ट्रायल टीम ने छह जनवरी की दोपहर को दीपक के मोबाइल फोन पर वैक्सीन की दूसरे डोज के लिए फोन किया था. यह कॉल आकाश ने रिसीव किया. उन्होंने टीम को पिता के निधन की फिर से सूचना दी. इसके बाद एग्जीक्यूटिव ने कॉल डिसकनेक्ट कर दिया.

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस घटना पर चिंता जताई है. उन्होंने मृतक की पत्नी का एक वीडियो ट्वीट कर लिखा, ‘चौंकाने वाली खबर है. केंद्र व राज्य शासन को इसे तत्काल संज्ञान में लेना चाहिए.’

गौरतलब है कि इससे पहले द वायर  ने एक रिपोर्ट में बताया था कि भोपाल के पीपुल्स हॉस्पिटल पर गैस त्रासदी के पीड़ितों समेत कुछ लोगों को धोखे में रखकर उन पर वैक्सीन ट्रायल करने का आरोप है.

इनमे में कुछ लोग बीमार पड़ गए, तो उनकी मदद नहीं की गई. लोगों ने बताया था कि ट्रायल के लिए भोपाल की बस्तियों से लोगों को लाया गया था और उन्हें बिना समुचित जानकारी दिए वैक्सीन लगा दी गई. इसके एवज में उन्हें 750 रुपये भी दिए गए.

अस्पताल प्रबंधन और गैस राहत और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने द वायर  से बात करते हुए इन आरोपों को खारिज किया था.

इस बीच शनिवार को किए गए अन्य ट्वीट में दिग्विजय सिंह ने कहा, आदिवासी युवा मजदूर दीपक मरावी ने 750 रुपये की लालच में भारत बायोटेक का वैक्सीन लगवा लिया और उसी दिन से उनकी तबियत खराब हो गई. मुझे इस बात का दुख है एनडीटीवी में रिपोर्ट आने के बाद भी उसकी प्रशासन ने कोई खबर नहीं ली. मंत्री जी ने उसे टुकड़े टुकड़े गैंग से जोड़ दिया. मंत्री जी शर्म करो.

मध्य प्रदेश कांग्रेस की ओर से कहा गया है, ‘भोपाल में ट्रायल वैक्सीन के बाद मौत. कोवैक्सीन के डोज के 9 दिन बाद मौत. भारत बायोटेक द्वारा बनाई जा रही स्वदेशी कोरोना वैक्सीन (कोवैक्सीन) का ट्रायल डोज लेने वाले वालंटियर दीपक मरावी की डोज के 9 दिन बाद मौत हो गई. शिवराज जी, पहले झूठ बोलकर ट्रायल और अब मौत..?’

समाजवादी पार्टी के डिजिटल मीडिया कोऑर्डिनेटर मनीष जगन अग्रवाल ने ट्वीट कर कहा, ‘भोपाल में कोरोना वैक्सीन ट्रायल में वैक्सीन डोज लेने वाले दीपक मरावी की दर्दनाक मौत हो गई. परिजनों का आरोप है कि हॉस्पिटल प्रशासन ने कोई देखरेख भी नहीं की.’

उन्होंने कहा, ‘कोरोना वैक्सीनेशन भाजपा की सरकार में जबरन और श्रेय लूटने के लिए क्यों करवाया जा रहा है? जनता की जान के साथ खिलवाड़ क्यों?’