भोपाल में जारी ‘कोवैक्सीन’ टीके के क्लीनिकल परीक्षण को तुरंत बंद किया जाए: गैस पीड़ित संगठन

मध्य प्रदेश में भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे चार संगठनों ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर कहा कि भारत बॉयोटेक के ‘कोवैक्सीन’ टीके के क्लीनिकल परीक्षण में भाग ले रहे लोगों की सुरक्षा और उनके हकों को नजरअंदाज करने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों और संस्थाओं के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई और मुआवज़े की मांग भी की है.

Bhopal: A medic administers Covaxin, developed by Bharat Biotech in collaboration with the Indian Council of Medical Research (ICMR), during the Phase- 3 trials at the Peoples Medical College in Bhopal, Monday, Dec. 7, 2020. (PTI Photo)(PTI07-12-2020 000173B)

मध्य प्रदेश में भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे चार संगठनों ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर कहा कि भारत बॉयोटेक के ‘कोवैक्सीन’ टीके के क्लीनिकल परीक्षण में भाग ले रहे लोगों की सुरक्षा और उनके हकों को नजरअंदाज करने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों और संस्थाओं के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई और मुआवज़े की मांग भी की है.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

भोपाल: भोपाल में यूनियन कार्बाइड गैस कांड के पीड़ितों के लिए काम कर रहे चार संगठनों ने रविवार को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर भोपाल में जारी स्वदेशी टीके ‘कोवैक्सीन’ के क्लीनिकल परीक्षण को अविलंब बंद करने की मांग की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को भेजे गए पत्र में इन संगठनों ने ‘कोवैक्सीन’ के क्लीनिकल परीक्षण में भाग ले रहे लोगों की सुरक्षा और उनके हकों को नजरअंदाज करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और संस्थाओं के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई और परीक्षण के प्रतिभागियों के सेहत को पहुंचे नुकसान के लिए मुआवजे की मांग भी की है.

1984 में हुए विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के लिए काम कर रहे इन संगठनों ने इस पत्र की प्रति मीडिया से साझा की है.

इस पत्र में भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा, चिल्ड्रेन अगेंस्ट डाव कार्बाइड की नौशीन खान और भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खान ने हस्ताक्षर किए हैं.

रशीदा बी ने कहा, ‘इस टीके को, जिसके बारे में यह मालूम नहीं है कि यह कितना सुरक्षित है, के परीक्षण में शामिल 1700 लोगों में से 700 लोग यूनियन कार्बाइड के जहर से ग्रस्त हैं. टीका लगने के 10 दिनों के अंदर एक गैस पीड़ित की मौत हो चुकी है और बहुत लोग अभी भी गंभीर तकलीफें झेल रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि करीब 12 साल पहले भोपाल मेमोरियल अस्पताल में विदेशी दवा कंपनियों की दवाओं के क्लीनिकल परीक्षणों में 13 गैस पीड़ितों की मौत के लिए आज तक किसी को भी सजा नहीं दी गई है.

रशीदा ने कहा, ‘हम लोग प्रधानमंत्री को इस उम्मीद के साथ लिख रहे हैं कि फिर से वही इतिहास दोहराया न जाए. भोपाल गैस पीड़ितों के संगठनों की ओर से उन्होंने यह मांग की कि कोवैक्सीन के परीक्षण में शामिल गैस पीड़ित मृतक के परिवार को कोरोना योद्धाओं को दिया जाने वाला 50 लाख रुपये दिए जाएं.’

भोपाल में जारी इस क्लीनिकल परीक्षण में व्याप्त अनियमितताओं को रेखांकित करते हुए रचना ढींगरा ने कहा, ‘इस परीक्षण में ऐसे लोगों को शामिल किया गया है, जिनका स्वास्थ्य यूनियन कार्बाइड के जहर से पहले ही बिगड़ा हुआ है और उन्हें बगैर जानकारी दिए और उनके सहमति के बगैर इस परीक्षण में शामिल किया गया है.’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘टीका लगवाने के बाद परीक्षण में भाग ले रहे लोगों को हुई तकलीफों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है और कई लोग जब अपनी तकलीफों के लिए अस्पताल पहुंचे तो उन्हें उपचार देने बजाय वापस भेज दिया गया. जो लोग परीक्षण में शामिल होकर हट गए हैं या जिन्हें हटा दिया गया है, उनकी सेहत की कोई निगरानी रखी नहीं जा रही है और न ही उनका इलाज किया जा रहा है.’

भोपाल गैस पीड़ितों के संगठनों की मांगों पर बात करते हुए शहजादी बी. ने कहा, ‘इस परीक्षण को तुरंत बंद करने और परीक्षण में मरने वाले गैस पीड़ित के परिवार को राहत राशि देने के साथ हम यह मांग कर रहे हैं कि इस परीक्षण की निष्पक्ष जांच की जाए. इस हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और संस्थाओं को दंडित किया जाए और टीकों से जिन्हें नुकसान पहुंचा है, उन्हें मुआवजा दिया जाए.’

वहीं, नौशीन खान ने कहा, ‘भोपाल में जारी कोवैक्सीन परीक्षण में आपराधिक अनियमितताओं को नजरअंदाज करके सरकार आने वाली 16 (जनवरी) तारीख को एक बड़े चिकित्सीय हादसे की आशंका को मजबूत कर रही है.’

इन संगठनों ने रविवार को भोपाल में एक संवाददाता सम्मेलन किया और उसमें भोपाल में स्वदेशी टीके ‘कोवैक्सीन’ के क्लीनिकल परीक्षण में शामिल कुछ प्रतिभागियों को भी लाए थे.

इसमें इन प्रतिभागियों में से अधिकांश ने आरोप लगाया कि उन्हें यह कहकर इसमें शामिल किया गया कि यह कोरोना का टीका है. हमें यह नहीं बताया गया कि परीक्षण किया जा रहा है. प्रतिभागियों ने बताया कि इस टीके के लगने के दो-तीन दिन बाद वे परेशानी महसूस करने लगे. उन्हें, बुखार, जुकाम, दर्द, उल्टी एवं सांस लेने में दिक्कतें आईं.

मालूम हो कि भोपाल के निजी पीपुल्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में 12 दिसंबर 2020 को कोरोना वायरस के स्वदेशी टीके ‘कोवैक्सीन’ के क्लीनिकल परीक्षण में शामिल 42 वर्षीय दीपक मरावी की नौ दिनों बाद 21 दिसंबर 2020 को मौत हो गई थी.

कोवैक्सीन भारत बायोटेक और भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोरोना वैक्सीन है, जिसका फाइनल ट्रायल बीते सात जनवरी को पूरा हुआ है.

हालांकि, चिकित्सकों को संदेह है कि उसकी मौत शरीर में जहर फैलने की वजह से हुई होगी. यह टीका बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने एक बयान में शनिवार को कहा कि प्रारंभिक समीक्षा में पता चला है कि यह व्यक्ति की मौत कोवैक्सीन से संबंधित नहीं है.

इससे पहले द वायर  ने एक रिपोर्ट में बताया था कि भोपाल के पीपुल्स हॉस्पिटल पर गैस त्रासदी के पीड़ितों समेत कुछ लोगों को धोखे में रखकर उन पर वैक्सीन ट्रायल करने का आरोप है.

इनमे में कुछ लोग बीमार पड़ गए, तो उनकी मदद नहीं की गई. लोगों ने बताया था कि ट्रायल के लिए भोपाल की बस्तियों से लोगों को लाया गया था और उन्हें बिना समुचित जानकारी दिए वैक्सीन लगा दी गई. इसके एवज में उन्हें 750 रुपये भी दिए गए.

हालांकि अस्पताल प्रबंधन और गैस राहत और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने द वायर  से बात करते हुए इन आरोपों को खारिज किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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