सुशांत केस में रिपब्लिक और टाइम्स नाउ पर दिखाई गई कुछ ख़बरें ‘मानहानिकारक’ थीं: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मीडिया चैनल्स आत्महत्या के मामलों में ख़बरें दिखाते वक्त संयम बरतें क्योंकि मीडिया ट्रायल के कारण न्याय देने में हस्तक्षेप तथा अवरोध उत्पन्न होता है.

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सुशांत मामले को लेकर विभिन्न टीवी चैनलों की कवरेज (साभार: संबंधित चैनल/वीडियोग्रैब)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि मीडिया चैनल्स आत्महत्या के मामलों में ख़बरें दिखाते वक्त संयम बरतें क्योंकि मीडिया ट्रायल के कारण न्याय देने में हस्तक्षेप तथा अवरोध उत्पन्न होता है.

सुशांत मामले को लेकर विभिन्न टीवी चैनलों की कवरेज (साभार: संबंधित चैनल/वीडियोग्रैब)
सुशांत मामले को लेकर विभिन्न टीवी चैनलों की कवरेज (साभार: संबंधित चैनल/वीडियोग्रैब)

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मीडिया प्रतिष्ठानों से कहा कि वे आत्महत्या के मामलों में खबरें दिखाते वक्त संयम बरतें क्योंकि ‘मीडिया ट्रायल के कारण न्याय देने में हस्तक्षेप तथा अवरोध उत्पन्न होता है.’

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ पर दिखाई गई कुछ खबरें ‘मानहानिकारक’ थीं.

पीठ ने आगे कहा कि हालांकि उसने चैनलों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का निर्णय लिया है.

अदालत ने कहा कि किसी भी मीडिया प्रतिष्ठान द्वारा ऐसी खबरें दिखाना अदालत की मानहानि करने के बराबर माना जाएगा जिससे मामले की जांच में या उसमें न्याय देने में अवरोध उत्पन्न होता हो.

पीठ ने कहा, ‘मीडिया ट्रायल के कारण न्याय देने में हस्तक्षेप एवं अवरोध उत्पन्न होते हैं तथा यह केबल टीवी नेटवर्क नियमन कानून के तहत कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन भी करता है.’

अदालत ने कहा, ‘कोई भी खबर पत्रकारिता के मानकों एवं नैतिकता संबंधी नियमों के अनुरूप ही होनी चाहिए अन्यथा मीडिया घरानों को मानहानि संबंधी कार्रवाई का सामना करना होगा.’

उच्च न्यायालय ने आत्महत्या के मामलों में खबर दिखाने को लेकर मीडिया घरानों के लिए कई दिशा-निर्देश भी जारी किए.

अदालत में राजपूत के मौत की घटना की प्रेस खासकर टीवी समाचार चैनलों द्वारा खबर दिखाने पर रोक लगाने की मांग करने वाली अनेक जनहित याचिकाओं पर पीठ ने पिछले वर्ष छह नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

ये याचिकाएं वरिष्ठ अधिवक्ता अस्पी चिनॉय, कार्यकर्ताओं, अन्य नागरिकों और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों के समूह द्वारा दायर की गई थीं. इनमें यह मांग भी की गई थी कि समाचार चैनलों को सुशांत मामले में मीडिया ट्रायल करने से रोका जाए.

मालूम हो कि 34 वर्षीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत पिछले साल 14 जून को मुंबई के बांद्रा स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे.

सुशांत के पिता केके सिंह ने पटना के राजीव नगर थाना में अभिनेता की प्रेमिका और लिव इन पार्टनर रहीं अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ अभिनेता को खुदकुशी के लिए उकसाने और अन्य आरोपों में शिकायत दर्ज कराई थी.

सुशांत की मौत को लेकर उठ रहे सवालों के बीच बिहार सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने मामले की जांच पांच अगस्त 2020 को सीबीआई को सौंप दी थी.

इसके बाद 19 अगस्त को बिहार सरकार की अनुशंसा को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि वे अभिनेता की मौत के मामले की जांच करें. अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस से मामले में सहयोग करने को कहा था.

इस मामले की जांच के दौरान ड्रग्स खरीदने और उसके इस्तेमाल का भी खुलासा होने के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने अभिनेत्री रिया समेत उनके छोटे भाई शौविक चक्रवर्ती (24), सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा (33) और अभिनेता के निजी स्टाफ सदस्य दीपेश सावंत को भी गिरफ्तार किया था.

हालांकि बाद में कोर्ट ने इन्हें जमानत दे दी. इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कई बार मीडिया रिपोर्टिंग को लेकर फटकार लगाया था.

कोर्ट ने कहा था कि प्रेस का बहुत ‘ध्रुवीकरण’ हो गया है. उन्होंने कहा कि पत्रकार पहले की तहत ‘तटस्थ और जिम्मेदार’ नहीं हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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