हत्या और डक़ैती से अधिक गंभीर हैं ह्वाइट कॉलर अपराध: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी फ़र्ज़ी बिल दिखाकर जीएसटी से बचने की धोखाधड़ी करने वाले चार व्यवसायियों की याचिकाएं ख़ारिज करते हुए की. कोर्ट ने यह कहते हुए कि आवेदकों ने अनुचित अंतरिम राहत प्राप्त की, चारों याचिकर्ताओं को जीएसटी विभाग के पास 25-25 हजार रुपये जमा करने का आदेश दिया है.

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी फ़र्ज़ी बिल दिखाकर जीएसटी से बचने की धोखाधड़ी करने वाले चार व्यवसायियों की याचिकाएं ख़ारिज करते हुए की. कोर्ट ने यह कहते हुए कि आवेदकों ने अनुचित अंतरिम राहत प्राप्त की, चारों याचिकर्ताओं को जीएसटी विभाग के पास 25-25 हजार रुपये जमा करने का आदेश दिया है.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो : पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो : पीटीआई)

मुंबई: ह्वाइट कॉलर (सफेदपोश) अपराधों को हत्या और डकैती से अधिक गंभीर अपराध बताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने चार व्यवसायियों द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया जिन पर फर्जी बिल दिखाकर उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) से बचने की धोखाधड़ी करने के लिए मामला दर्ज किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण के बहाने आवेदकों ने कार्यवाही में देरी की और अनुचित अंतरिम राहत प्राप्त की इसलिए इस तरह के आदेश न्यायपालिका की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं और इसलिए जीएसटी अधिकारियों को याचिकाओं की लागत के रूप में 25000 की लागत का भुगतान प्रत्येक (कुल 1 लाख रुपये) द्वारा किया जाना चाहिए और उनकी दलीलों को खारिज कर दिया.

जस्टिस तानाजी वी. नलावडे और जस्टिस मुकुंद जी. सेविलिकर की खंडपीठ ने मैसर्स गनराज इस्पात प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों की चार याचिकाओं पर एक फैसला सुनाया, जिनका पंजीकृत कार्यालय अहमदनगर जिले के सुपा में है.

अपनी याचिकाओं में उन्होंने उनके खिलाफ अवैध कार्यवाही को रोकने की मांग की थी और किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा के साथ लंबित सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील मार्कंड डी. अदकर और वकली पीबी शिरसाथ ने कहा कि उन्हें लगभग 84 लाख रुपये की जीएसटी देनदारियों से अवगत कराया गया था और जीएसटी कानून के अनुसार अपराधों के कमीशन के लिए आरोप लगाए गए थे.

यह कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने विरोध के तहत जीएसटी खुफिया निदेशालय के पास राशि जमा की थी और वे उनके खिलाफ लगाई गई देनदारी का सामना करना चाहते थे.

व्यवसायियों ने अभियोजन पक्ष को चुनौती दी कि वह गलत धारणाओं पर आधारित है और कहा कि अपराध और जांच के पंजीकरण के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों का प्राधिकरण द्वारा पालन नहीं किया गया था और इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई अवैध थी.

हालांकि, जीएसटी विभाग की ओर से पेश होते हुए वकील एजी ताल्हार ने कहा कि याचिकाओं की गलत व्याख्या की गई और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई समन जारी नहीं किया गया था और विभाग कानून के अनुसार प्रक्रिया का पालन कर रहा था.

तल्हार ने कहा कि एक अन्य कंपनी के व्यवसायों की जांच में पता चला था कि बिना रसीद या उत्पाद या सेवाओं की आपूर्ति के नकली चालान ‘धोखाधड़ी’ के माध्यम से इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के लिए तैयार किए गए थे और इस तरह के कई चालान याचिकाकर्ता की कंपनी को जारी किए गए थे, जो लगभग 5.5 करोड़ रुपये की राशि के थे और जिसके लिए 84 लाख रुपये की जीएसटी की वसूली होनी थी.

याचिकाकर्ताओं के आरोपों से इनकार करते हुए जीएसटी प्राधिकरण ने कहा कि नवंबर, 2020 में याचिकाकर्ताओं की कंपनी के परिसरों की जांच से ऐसे नकली चालान का पता चला और इसलिए उनके खिलाफ कार्यवाही उचित थी.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस नलवाडे के नेतृत्व वाली पीठ ने उल्लेख किया, ‘याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी का एक प्रथम दृष्टया मामला बनाने के लिए सामग्री है.’

न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं को उनके पक्ष में दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम राहत मिली थी और यह मामला जानबूझकर अवकाश अदालत के समक्ष दायर किया गया था ताकि देरी हो सके.

पीठ ने कहा, ‘एक स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया जाता है कि कंपनी के सलाहकार कोविड-19 वायरस के कारण संक्रमित थे. इस तरह के जवाबों को कोर्ट द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता है.’

इस बातों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने कहा, ‘इस प्रकार उत्तरदाता (जीएसटी) विभाग को वस्तुतः समन जारी करने की तरह अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से रोका गया था. इस तरह के आदेश से, याचिकाकर्ताओं को अप्रत्यक्ष रूप से अग्रिम जमानत की राहत मिली, जो वर्तमान प्रकृति की कार्यवाही में आमतौर पर स्वीकार्य नहीं है.’

याचिका का निस्तारण करते हुए पीठ ने आगे कहा, ‘हत्या, डकैती आदि अपराधों की तुलना में सफेदपोश अपराध अधिक गंभीर होते हैं (क्योंकि) इस तरह के अपराध साजिश रचने के बाद किए जाते हैं. इस परिस्थिति को न्यायालय द्वारा ध्यान में रखने की आवश्यकता है क्योंकि अग्रिम जमानत की राहत देने से जांच बाधित होती है और इस तरह के दृष्टिकोण से न्यायपालिका की छवि को नुकसान होता है. इस अदालत का मानना है कि याचिकाकर्ताओं पर कुछ देनदारी लगाने की आवश्यकता है.’