मीडिया संगठनों ने पत्रकारों पर दर्ज मामलों की निंदा की, राजद्रोह क़ानून ख़त्म करने की मांग

गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ओर से निकाली गई ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के संबंध में असत्यापित ख़बरें शेयर करने के आरोप में कांग्रेस नेता शशि थरूर और राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय समेत छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में राजद्रोह समेत विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किए गए हैं.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: द वायर)

गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ओर से निकाली गई ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के संबंध में असत्यापित ख़बरें शेयर करने के आरोप में कांग्रेस नेता शशि थरूर और राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय समेत छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में राजद्रोह समेत विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किए गए हैं.

(फोटोः मृणाल पांडेय, राजदीप सरदेसाई और अनंत नाग)
(फोटोः मृणाल पांडेय, राजदीप सरदेसाई और अनंत नाग)

नई दिल्ली: 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान असत्यापित खबरें शेयर करने के आरोप में पत्रकारों पर विभिन्न राज्यों में दर्ज किए गए राजद्रोह के मामलों की पत्रकार संगठनों ने निंदा की है.

इस संबंध में शनिवार को एक संयुक्त प्रेस वार्ता हुई, जिसका आयोजन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई), एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, द इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स (आईडब्ल्यूपीसी), द दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन द्वारा किया गया था.

ये एफआईआर 26 जनवरी को दिल्ली में हुई किसानों की ट्रैक्टर रैली की रिपोर्टिंग के संबंध में दायर की गई हैं, जिनमें शुरुआती कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि एक युवा किसान की गोली लगने से मौत हुई, लेकिन बाद में दावा किया गया कि ट्रैक्टर पलटने से उसकी मौत हुई.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने पत्रकारों के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर हैरानी जताई जबकि मामले में विश्वसनीय पोस्टमार्टम रिपोर्ट तब तक सामने नहीं आई थी.

पीसीआई ने जारी बयान में कहा, ‘यह संबंधित राज्य सरकारों की ओर से एक बेतुका बहाना है. घटित हो रही स्टोरी में चीजें नियमित आधार पर बदलती हैं. उसके अनुरूप ही रिपोर्टिंग उन परिस्थितियों को दर्शाती है, जब व्यापक भीड़ हो और संदेह और संभावनाएं हमेशा बनी रहती हों. इसमें कई बार शुरुआती और बाद की रिपोर्टों में अंतर हो सकता है.’

पीसीआई के अध्यक्ष आनंद के. सहाय ने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि एक सामान्य प्रिज्म है, जिसके जरिये विभिन्न राज्य सरकारें पत्रकारों को देख रही हैं. मैंने मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर देखी है उनकी भाषा देखकर ऐसा लगता है कि इन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय के भीतर तैयार किया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसा लग रहा है कि कुछ लोगों का समूह है, जिनका काम फर्जी केस दर्ज कराना है. वे एक मुश्किल परिस्थिति देना चाहते हैं, तभी एक केस भोपाल में दर्ज कराया जा रहा है तो एक केस नोएडा में. यह खेल पुराना है.’

सहाय ने कुछ पत्रकारों का उल्लेख भी किया, पत्रकारिता करने के लिए हाल फिलहाल जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई, इनमें केरल के सिद्दीक कप्पन, मणिपुर से किशोर चंद्र वांगखेम, गुजरात से धवल पटेल, महाराष्ट्र से राहुल कुलकर्णी और विनोद दुआ हैं.

कांग्रेस नेता शशि थरूर, इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड के सीनियर कंसल्टिंग एडिटर मृणाल पांडेय, कौमी आवाज के संपादक जफर आगा, कारवां पत्रिका के संपादक और संस्थापक परेश नाथ, इसके संपादक अनंत नाथ और कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस और एक अज्ञात शख्स के खिलाफ भाजपा शासित राज्यों में एफआईआर दर्ज की गई है.

दिल्ली पुलिस ने शनिवार रात को इसी तरह का एक मामला दायर किया है.

द इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स की टीके राजलक्ष्मी ने द वायर  को बताया, ‘यह पुलिस और राज्य सरकारों की चालाकी का स्पष्ट मामला है. अगर इस तरह से राजद्रोह के मामले दर्ज किए जाएंगे तो हम किस ओर जा रहे हैं?’

उन्होंने कहा, ‘किसी भी सरकार को असुरक्षित क्यों महसूस करना चाहिए?’

प्रेस सम्मेलन को संबोधित करते हुए एडिटर्स गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा ने कहा, ‘इस तरह के समय में किस तरह की पत्रकारिता की जा सकती है?’

उन्होंने कहा, ‘इस तरह के आरोप न केवल पत्रकारों को धमकाने या प्रताड़ित करने के लिए दर्ज किए जाते हैं, बल्कि पेशेवरों को आतंकित करने के लिए भी किए जाते हैं, ताकि वे अपना काम करने से डरें.’

पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी राजद्रोह कानूनों का इस तरह से इस्तेमाल करने पर कहा, ‘अगर आप जम्मू कश्मीर में पत्रकार हैं या मणिपुर या फिर कांग्रेस शासित राज्य में, पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह कानून अस्वीकार्य हैं.’

द प्रिंट के संपादक शेखर गुप्ता ने कहा, ‘इन पत्रकारों ने ऐसा कुछ नहीं किया, जो अपराध है. पत्रकार गलतियां करते हैं, यह कोई अपराध नहीं है. हम सोच सकते हैं कि अदालत में दंडात्मक आरोपों से निपटने के लिए बेहतरीन वकील होंगे लेकिन यह प्रक्रिया अपने आप में ही एक तरह की सजा है.’

द दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) के अध्यक्ष एसके पांडे ने आरोप लगाया कि यह स्थिति अघोषित आपातकाल जैसी है.

पांडेय ने कहा, ‘आज जो कुछ भी हो रहा है, यह स्थिति अघोषित आपातकाल जैसी है. लोगों ने देखा है कि आपातकाल कैसा था, हम बदतर स्थिति की ओर जा रहे हैं, जहां अगर आप सत्ता के खिलाफ आवाज उठाओगे तो आपको राजद्रोह के जरिये या एफआईआर के जरिये निशाना बनाया जाएगा, ताकि आप लड़ने की इच्छा खो दें और हथियार डाल दें. पत्रकारों से लेकर किसानों और कारोबारियों, कलाकारों, लेखकों और बुद्धिजीवियों तक सभी को निशाना बनाया जा रहा है.’

इस बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें इन राजद्रोह के मामलों को तत्काल वापस लेने की मांग की गई.

प्रस्ताव में कहा गया, ‘यह बैठक सरकार द्वारा पत्रकारों के काम को बाधित करने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों को अस्वीकृत करती है और मांग करती है कि सरकारें इन मामलों को वापस लें. इनमें 28 जनवरी 2021 को संपादकों और प्रकाशकों पर लगाए गए राजद्रोह के मामले और हाल के सालों में देशभर में पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मामलें शामिल हैं. हम यह भी चाहते हैं कि सरकारें समाचार संगठनों पर दबाव डालना बंद करें.’

बयान में कहा गया, ‘हम राजद्रोह कानून को रद्द करने और पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए जैसे कानून के खतरनाक और दिग्भ्रमित इस्तेमाल को खत्म करने की भी मांग करते हैं.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50