इंटरनेट पर रोक शासनों का पसंदीदा उपाय बन गया है: डिजिटल अधिकार समूह

डिजिटल अधिकार समूहों का कहना है कि दुनिया भर में इंटरनेट को बंद करना दमनकारी और निरंकुश शासनों और कुछ अनुदार लोकतंत्रों की एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है. सरकारें इसका उपयोग असहमति की आवाज़, विरोधियों की आवाज़ दबाने या मानवाधिकारों के हनन को छुपाने के लिए करती हैं.

म्यामांर में तख्तापलट के बाद विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया था. (फोटो: रॉयटर्स)

डिजिटल अधिकार समूहों का कहना है कि दुनिया भर में इंटरनेट को बंद करना दमनकारी और निरंकुश शासनों और कुछ अनुदार लोकतंत्रों की एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है. सरकारें इसका उपयोग असहमति की आवाज़, विरोधियों की आवाज़ दबाने या मानवाधिकारों के हनन को छुपाने के लिए करती हैं.

म्यामांर में तख्तापलट के बाद विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया था. (फोटो: रॉयटर्स)
म्यांमार में तख्तापलट के बाद विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया था. (फोटो: रॉयटर्स)

लंदन: म्यांमार में सेना के जनरलों ने जब पिछले हफ्ते तख्तापलट किया, तो उन्होंने विरोध प्रदर्शनों को परोक्ष तौर पर रोकने के प्रयास के तहत इंटरनेट तक पहुंच पर रोक लगा दी थी.

इसी तरह युगांडा के निवासी हाल के चुनाव के बाद हफ्तों तक फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया मंचों का उपयोग नहीं कर सके. वहीं इथियोपिया के उत्तरी तिगरे क्षेत्र में व्यापक संघर्ष के बीच महीनों से इंटरनेट बंद है.

दुनिया भर में इंटरनेट को बंद करना दमनकारी और निरंकुश शासनों और कुछ अनुदार लोकतंत्रों की एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है.

डिजिटल अधिकार समूहों का कहना है कि सरकारें इसका उपयोग असहमति की आवाज, विरोधियों की आवाज को चुप कराने या मानवाधिकारों के हनन को छुपाने के लिए करती हैं तथा इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होने की चिंता उत्पन्न होती है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि अक्सर विरोध या नागरिक अशांति के जवाब में ऑनलाइन पहुंच रोक दी जाती है, विशेष तौर चुनावों के दौरान क्योंकि वे सूचना के प्रवाह को रोककर सत्ता पर अपनी पकड़ बरकरार रखने की कोशिश करते हैं.

यह स्थानीय टीवी और रेडियो स्टेशन पर नियंत्रण करने का डिजिटल हथकंडा है, जिसका इस्तेमाल इंटरनेट से पहले के समय के दौरान विद्रोहियों के खिलाफ किया जाता था.

इंटरनेट निगरानी संगठन ‘नेटब्लॉक्स’ के संस्थापक एल्प टोकर ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट बंद किए जाने की जानकारी काफी कम सामने आती है. उनके जैसे दस्तावेजीकरण के प्रयासों से विश्व को पता चल पा रहा है कि क्या हो रहा है.’

ब्रिटेन आधारित डिजिटल निजता एवं सुरक्षा अनुसंधान समूह टॉप-10 वीपीएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, गत वर्ष 21 देशों में 93 प्रमुख इंटरनेट शटडाउन हुए. इस सूची में चीन और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल नहीं हैं, जहां सरकार इंटरनेट पर सख्ती से नियंत्रण रखती है या रोकती है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट पर रोक लगाए जाने के राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय परिणाम होते हैं. प्रभाव कोविड-19 लॉकडाउन के चलते और बढ़ गए हैं जिसके चलते स्कूल की कक्षाएं ऑनलाइन चलने जैसी गतिविधियां हो रही हैं.

म्यांमार में सेना द्वारा सत्ता पर नियंत्रण हासिल करने और नेता आंग सान सू ची और उनके सहयोगियों की हिरासत के खिलाफ के परोक्ष तौर पर प्रदर्शनों पर रोकने के लिए पिछले सप्ताह इंटरनेट पहुंच पर 24 घंटे के लिए रोक लगा दी गई थी. बाद में व्यापक विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए इंटरनेट सेवाएं बहाल कर दी गई थीं.

बता दें कि बीते एक फरवरी को म्यांमार में तख्तापलट हुआ था और म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.

मालूम हो कि भारत में भी साल 2021 में (बीते दो फरवरी तक) केंद्र या राज्य सरकार विभिन्न वजहों का हवाला देकर कम से कम 10 बार इंटरनेट पर पाबंदी लगा चुकी हैं.

कई स्वतंत्र ऑडिटर्स द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 2019 और 2020 में ही भारत में 13,000 घंटे से अधिक समय तक इंटरनेट बंद रहा और इस दौरान कम से कम 164 बार इंटरनेट बंद किया गया.

किसी चुनी गई सरकार द्वारा सबसे लंबे समय के लिए 552 दिनों तक जम्मू कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवाओं पर पांबदी लगाई गई थी.

साल 2019 में भारत सरकार ने 4,196 घंटों के लिए इंटरनेट बैन किया, जिसके चलते 1.3 अरब डॉलर का आर्थिक प्रभाव पड़ा. साल 2020 में ये आंकड़ा दोगुना हो गया और इस दौरान सरकार ने 8,927 घंटों के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगाई.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)