उत्तराखंड: 2019 में पीएमओ ने पनबिजली परियोजनाओं के लिए बनाए थे कड़े नियम, राज्य सरकार को थी आपत्ति

दस्तावेज़ों से पता चलता है कि 25 फरवरी 2019 को हुई पीएमओ की एक बैठक में किसी भी नई पनबिजली परियोजना को मंज़ूरी देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके साथ ही ऐसे प्रोजेक्ट्स को रोक दिया गया जिनका निर्माण कार्य आधे से कम हुआ था.

/
फरवरी 2021 में हुए ग्लेशियर हादसे में पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुई धौलीगंगा पनबिजली परियोजना. (फोटो: पीटीआई)

दस्तावेज़ों से पता चलता है कि 25 फरवरी 2019 को हुई पीएमओ की एक बैठक में किसी भी नई पनबिजली परियोजना को मंज़ूरी देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके साथ ही ऐसे प्रोजेक्ट्स को रोक दिया गया जिनका निर्माण कार्य आधे से कम हुआ था.

ग्लेशियर हादसे में पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुई धौलीगंगा पनबिजली परियोजना. (फोटो: पीटीआई)
ग्लेशियर हादसे में पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुई धौलीगंगा पनबिजली परियोजना. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उत्तराखंड में हालिया प्राकृतिक आपदा के चलते प्रभावित हुई कम से कम दो जलविद्युत या पनबिजली परियोजना उन 13 प्रोजेक्ट की सूची में शामिल है, जिसे लेकर दो साल पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की बैठक में चिंता जाहिर की गई थी.

इस आपदा में करीब 200 के करीब लोगों के लापता या फंसे होने को लेकर आशंका जताई गई है, अब तक घटनास्थल से 41 शव निकले जा चुके हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दस्तावेजों दर्शाते हैं कि 25 फरवरी 2019 को हुई पीएमओ की उस बैठक में किसी भी नए पनबिजली परियोजना को मंजूरी देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके साथ ही ऐसे प्रोजेक्ट्स को रोक दिया गया जिनका निर्माण कार्य आधे से कम पूरा हुआ था.

रेट खनन और पत्थर तोड़ने के खिलाफ भी मीटिंग में कड़े निर्णय लिए गए थे. हालांकि ये फैसले अभी भी ठंडे बस्ते में पड़े हैं, क्योंकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई में राज्य सरकार ने अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर मांग किया कि जलविद्युत क्षेत्र से जुड़े कार्य फिर से शुरू किए जाएं.

सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद राज्य में इस तरह के सभी कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था.

पनबिजली परियोजनाओं के संबंध में पर्यावरण, जल और विद्युत मंत्रालय के बीच काफी मतभेद है और इसे लेकर अभी तक सर्वसम्मति नहीं बन पाई है. पीएमओ की उक्त बैठक इन्हीं तीनों विभागों के बीच सहमति बनाने और एक मंच पर लाने के लिए की गई थी.

इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा और कहा कि राज्य की बिजली आपूर्ति और सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार देने के लिए ऐसी परियोजनाएं जरूरी हैं.

रावत ने कहा कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट के बैन और 2012 में गोमुख से उत्तरकाशी के बीच के क्षेत्र को इको-सेंसिटिव घोषित करने के चलते 4,084 मेगावॉट की क्षमता वाले 34 पनबिजली परियोजनाएं रुकी हुई हैं.

पीएमओ की बैठक में ऐसी नई परियोजनाओं के संबंध में कड़े नियम बनाने के अलावा 13 परियोजनाओं पर चिंता जाहिर की गई थी, जिसमें एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड और टीएचडीसी की पीपलकोटी परियोजना है. ये दोनों परियोजनाएं ग्लेशियर फटने के चलते काफी क्षतिग्रस्त हो गई हैं और यहीं पर 150 मजदूरों के गायब होने या फंसे होने को लेकर आशंका जताई गई है.

इस बैठक की अगुवाई प्रधानमंत्री के तत्कालीन प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने की थी और इसमें ऊर्जा मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार के अधिकारी मौजूद थे.

इस बैठक के निर्णयों को केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया जाना अभी बाकी है. इस बारे में इस अख़बार द्वारा मिश्रा से संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बारे में पूछे जाने पर राज्य के विद्युत् विभाग को सभी सवाल भेज दिए. इस संबंध में उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संदीप सिंघल ने कहा, ‘पीएमओ की बैठक के अनुसार हमने किसी नए प्रोजेक्ट का काम शुरू नहीं किया है. मुख्यमंत्री ने ग्रिड स्टैबिलिटी और राज्य की जल क्षमता के संदर्भ में माननीय प्रधानमंत्री को लिखा था. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हमारा मत ये है कि हम 2017 के पर्यावरण मंत्रालय की ड्राफ्ट विशेषज्ञ रिपोर्ट और इसकी सिफारिशों को स्वीकार करते हैं.’

उत्तराखंड के चमोली जिले में आई भीषण प्राकृति आपदा को लेकर द वायर  ने हाल में कई रिपोर्ट्स प्रकाशित की है, जिसमें ये बताया गया है कि किस तरह पनबिजली परियोजनाओं को लेकर सरकार के विभिन्न स्तरों पर अनियमितताएं बरती जा रही हैं.

द वायर  ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह से सरकार ने उस समिति की रिपोर्ट स्वीकार नहीं की, जिसने नदी में ज्यादा पानी छोड़ने की सिफारिश की थी, जबकि तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने इस पर सहमति जताई थी.

इतनी ही नहीं सरकार ने जिस पॉलिसी पेपर के आधार पर मौजूदा ई-फ्लो घोषित किया है, उसमें किसी भी प्राथमिक (नए) आंकड़ों का संकलन नहीं है, बल्कि ई-फ्लो पर पूर्व में किए गए विभिन्न अध्ययनों का विश्लेषण करके इसकी सिफारिश कर दी गई थी.

कुल मिलाकर अगर देखें तो चार रिपोर्टों में पनबिजली परियोजनाओं के लिए करीब 50 फीसदी पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है.

वहीं तीन रिपोर्ट ऐसी हैं, जिसमें 20-30 फीसदी ई-फ्लो रखने की बात की गई है. जल शक्ति मंत्रालय ने इसी सिफारिश को लागू करना जरूरी समझा.

इसी तरह एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया कि किस तरह उत्तराखंड सरकार ने पनबिजली परियोजनाओं द्वारा कम पानी छोड़ने की वकालत की थी और कहा था कि यदि मौजूदा नियमों को लागू किया जाता है तो इससे 3,500 करोड़ रुपये का नुकसान होगा.

इसके अलावा जुलाई, 2019 में केंद्र के विशेषज्ञों की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आर्थिक फायदे के लिए गंगा पर बनीं जलविद्युत परियोजनाएं पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं छोड़ रही हैं.
pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25