दिल्ली दंगा: तीन आरोपियों को ज़मानत, अदालत ने कहा- उन्होंने हिंदुओं की जान बचाने की कोशिश की

दिल्ली दंगों में एक युवक की हत्या के मामले में हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों को ज़मानत देते हुए कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि सांप्रदायिक दंगे का इस्तेमाल अपने ही समुदाय के व्यक्ति की मौत के लिए किया जा सकता है. यदि वे वास्तव में दंगे में शामिल होते तो दूसरे समुदाय के सदस्यों को बचाने की कोशिश नहीं करते.

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(फोटो: पीटीआई)

दिल्ली दंगों में एक युवक की हत्या के मामले में हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों को ज़मानत देते हुए कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि सांप्रदायिक दंगे का इस्तेमाल अपने ही समुदाय के व्यक्ति की मौत के लिए किया जा सकता है. यदि वे वास्तव में दंगे में शामिल होते तो दूसरे समुदाय के सदस्यों को बचाने की कोशिश नहीं करते.

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नई दिल्ली: शाहिद आलम नाम के 25 वर्षीय व्यक्ति की हत्या के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तीन अभियुक्तों को अपराध करने के उनके मकसद को साबित करने किसी भी प्रत्यक्ष, परिस्थितिजन्य या फोरेंसिक साक्ष्य के अभाव में जमानत दे दिया. आलम को फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों के दौरान गोली मार दी गई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि एक सांप्रदायिक दंगे का इस्तेमाल अपने ही समुदाय के व्यक्ति की मौत के लिए किया जा सकता है.

इसके लिए अदालत ने इस तथ्य पर विश्वास जताया कि आरोपियों ने हिंदू समुदाय के कुछ लोगों को घटनास्थल छोड़कर जाने के लिए कहा और उनकी जान बचाई. ये तीनों शख्स मुकेश, नारायण, अरविंद और उनकी परिवार के सदस्य थे, जो कि इस मामले में गवाह भी थे.

जस्टिस सुरेश कुमार कैत द्वारा जारी आदेश में कहा गया, ‘यदि वे वास्तव में इस सांप्रदायिक दंगे में शामिल थे और दूसरे समुदाय/हिंदू समुदाय के सदस्यों को नुकसान पहुंचाना चाहते, तो उन्होंने दूसरे समुदाय के उपरोक्त सदस्यों के जीवन को बचाने की कोशिश नहीं की होती.’

बता दें कि पिछले साल 24 फरवरी को दिल्ली दंगों के दौरान आलम की हत्या कर दी गई थी. पुलिस के अनुसार, मुस्लिम और हिंदू समुदायों से संबंधित प्रदर्शनकारी क्रमशः चांदबाग क्षेत्र और यमुना विहार क्षेत्र में एकत्र हुए थे.

उन्होंने मोहन नर्सिंग होम, सप्तऋषि, इस्पात और अलॉय प्राइवेट लिमिटेड की इमारतों सहित इन क्षेत्रों में विभिन्न इमारतों की छतों पर कब्जा कर लिया था.

आलम को उसी इमारत में मौजूद एक व्यक्ति ने गोली मार दी थी और उन्हें जीटीबी अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया था.
अदालत ने कहा कि पुलिस ने अपनी जांच में स्पष्ट रूप से यह नहीं पाया कि बंदूक की गोली उसी इमारत से चलाई गई थी. उसने यह भी उल्लेख किया कि जांच एजेंसी ने इमारत के केवल एक तरफ ध्यान केंद्रित किया था, जबकि वीडियो से पता चलता है कि फायरिंग केवल मोहन नर्सिंग होम से की गई थी न कि सप्तऋषि भवन से.

अदालत ने कहा, ‘क्योंकि उन्हें यकीन नहीं है कि यह बंदूक की गोली से लगी चोट कहां से आई है, तो वे यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह एक करीबी रेंज शॉट है जब वे पहले से ही उल्लेख कर रहे हैं कि यह एक ‘संभावना’ है, लेकिन एक निश्चितता नहीं है.’

अदालत ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जांच में घाव लंबी दूरी की गोलीबारी के कारण हुआ था.

अदालत ने कहा, ‘करीबी रेंज से गोली चलाए जाने की बात केवल एक अनुमान है क्योंकि न तो घाव के आकार का उल्लेख किया गया है और न ही हथियार की खोज की गई है.’

बार एंड बेंच के अनुसार, अदालत ने यह भी कहा कि मुख्य हमलावर जिसने बंदूक की गोली से चोट पहुंचाई है, उसे अभी भी गिरफ्तार किया जाना बाकी है.

अदालत ने यह भी कहा कि आरोपों को अभी तक तय नहीं किया गया था और मामले में याचिकाकर्ताओं को जमानत योग्य मानते हुए कहा कि मुकदमे को पूरा होने में काफी समय लगेगा.

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