टूलकिट मामला: दिशा रवि का ज़मानत आदेश दिल्ली पुलिस के दावों की अर्थहीनता का प्रमाण है

किसान आंदोलन संबंधी टूलकिट साझा करने के मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा राजद्रोह क़ानून के तहत गिरफ़्तार युवा कार्यकर्ता दिशा रवि को ज़मानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने कई कड़ी टिप्पणियां की हैं. अदालत ने यहां तक कहा कि सरकारों के ग़ुरूर पर लगी ठेस के लिए किसी पर राजद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता.

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23 फरवरी को सुनवाई के बाद पटियाला हाउस अदालत से निकलतीं दिशा रवि. (फोटो: पीटीआई)

किसान आंदोलन संबंधी टूलकिट साझा करने के मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार युवा कार्यकर्ता दिशा रवि को ज़मानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने कई कड़ी टिप्पणियां की हैं. अदालत ने यहां तक कहा कि सरकारों के ग़ुरूर पर लगी ठेस के लिए किसी पर राजद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता.

23 फ़रवरी को सुनवाई के बाद पटियाला हाउस अदालत से निकलतीं दिशा रवि. (फोटो: पीटीआई)
23 फरवरी को सुनवाई के बाद पटियाला हाउस अदालत से निकलतीं दिशा रवि. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर किसानों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित ‘टूलकिट’ साझा करने के मामले को लेकर राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत दे दी.

अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्य ‘अल्प औरअधूरे’ हैं. अदालत ने यह भी कहा कि पेश किए गए सबूत 22 वर्षीय युवती को हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त नहीं है जिसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) धर्मेंद्र राणा ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं. उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं.

जमानत आदेश में गौर करने योग्य बात है कि एएसजे  धर्मेंद्र राणा ने कुछ ऐसे तथ्य उठाए हैं, जो सीधे तौर पर दिल्ली पुलिस के दावों कि ‘टूलकिट’ और दिशा जिन बैठकों में शामिल हुई थीं, वे राजद्रोह और ‘भारत को बदनाम करने की साज़िश थीं- पर सवाल खड़े करते हैं.

लाइव लॉ से ली गई इस आदेश की प्रति से निकाले गए कुछ ऐसे ही हिस्से नीचे दिए गए हैं.

‘खालिस्तान’

दिल्ली पुलिस का कहना था कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा शेयर की गई टूलकिट, जिसे दिशा रवि ने एडिट किया था पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीएफजे) से जुड़ी हुई हैं, जो एक खालिस्तानी समर्थक संगठन है, जिसे खालिस्तान समर्थक मो धालीवाल और अनीता लाल चलाते हैं.

एएसजे राणा ने इस बात को पूरी तरह ख़ारिज किया कि यह कथित बैठकें गैर क़ानूनी थीं और इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा को टूलकिट या पीएफजे से जुड़ी हुई थी.

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने इस बात को साफ़ तौर पर माना कि पीएफजे कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है न ही ऊपर बताए गए  मो धालीवाल और अनीता लाल के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई लंबित है. इसके अलावा आवेदक/आरोपित और धालीवाल और अनीता लाल  के बीच सीधा संबंध स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ नहीं है.

इसके अलावा यह बताने के लिए भी रिकॉर्ड पर कुछ नहीं है कि आवेदक/आरोपित और बताए गए संगठन और इसके सहयोगियों के द्वारा 26.01.2021 को हुई हिंसा भड़काने के लिए कोई आह्वान, उकसावा या कोई प्रोत्साहन दिया गया था.

मेरी राय में किसी ख़राब साख वाले व्यक्ति के साथ मेलजोल नहीं, बल्कि उस मेलजोल का उद्देश्य किसी के दोष के निर्धारण के लिए जरूरी है. ख़राब छवि वाला कोई भी व्यक्ति अपने सामाजिक मेलजोल के दौरान ढेरों लोगों से बातचीत करता है. जब तक यह बातचीत/मेलजोल कानून के दायरे में रहता है, ऐसे लोगों से नादानी, अज्ञानतावश या उनकी संदिग्ध छवि से वाकिफ होते हुए भी संपर्क रखने वाले लोगों को उसी नजर से नहीं देखा जा सकता.

किसी साक्ष्यों के अभाव में… केवल इसलिए कि उसने कानूनों का विरोध करने के लिए इकठ्ठा हुए लोगों के साथ कोई मंच साझा किया, पूर्वानुमानों के आधार पर ऐसा नहीं समझा जा सकता कि उसने पृथकतावादी भावनाओं या 26 जनवरी 2021 को हुई हिंसा का समर्थन किया है.

26.01.2021 को हुई हिंसा के अपराधियों को उक्त पीजीएफ या आवेदक/आरोपित से जोड़ने के संबंध में मेरे संज्ञान में कोई सबूत तक नहीं लाया गया है.

एडिशनल सेशन जज ने दिशा से जुड़ाव और हिंसा भड़काने को लेकर दो अन्य संगठनों- प्रतिबंधित सिख फॉर जस्टिस और किसान एकता को. के दिल्ली पुलिस द्वारा बताए गए काम करने के तरीके को भी खारिज कर दिया.

टूलकिट 

दिल्ली पुलिस द्वारा इस टूलकिट के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है, जिसने ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के इकलौते जवाब के तौर पर इस शेयर किए जाने वाले गूगल डॉक्यूमेंट का नाम लिया है. इस बारे में आदेश में कहा गया:

उक्त टूलकिट के अवलोकन से पता चलता है कि किसी भी तरह की हिंसा के लिए कोई आह्वान साफ तौर पर नदारद है. मेरे विचार से, किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं. उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं.

सरकारों के ग़ुरूर पर लगी ठेस के लिए किसी पर राजद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता. किसी मामले पर मतभेद, असहमति, विरोध, असंतोष, यहां तक कि अस्वीकृति, राज्य की नीतियों में निष्पक्षता को निर्धारित करने के लिए वैध उपकरण हैं. उदासीन और मौन नागरिकों की तुलना में जागरूक एवं प्रयासशील नागरिक निर्विवाद रूप से एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र का संकेत है.

जज ने ऋग्वेद को उद्धृत करते हुए परस्पर विरोधी विचारों की उपयुक्तता को लेकर कहा:

… यहां तक कि हमारे पूर्वजों ने भी बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देकर विचारों की विविधता को उचित सम्मान दिया था. संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत असहमति का अधिकार दृढ़ता से निहित है. मेरी राय में बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में वैश्विक तौर पर अपनी बात पहुंचाने का अधिकार भी शामिल है.

संचार पर कोई भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं. कानून के दायरे में रहते हुए एक नागरिक को यह मौलिक अधिकार हैं कि वह संचार प्रदान करने और प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम साधनों का उपयोग कर सके.’

इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उक्त टूलकिट में जेनोसाइड डॉट ओआरजी नाम की एक वेबसाइट का हाइपरलिंक भी है, जो भारत सहित दुनियाभर में कथित मानवाधिकार उल्लंघनों का ब्यौरा रखती है, जज ने कहा:

… यहां तक कि अगर [उक्त वेबसाइट द्वारा] लगाए गए आरोप आपत्तिजनक पाए जाते हैं, तब भी मैं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से असहमत हूं कि इसे राजद्रोह कहा जाए. ये इल्ज़ाम झूठे हो सकते हैं, बढ़ा-चढ़ाकर या शरारती उद्देश्य से लगाए गए हो सकते हैं लेकिन उन्हें तब तक राजद्रोही नहीं कहा जा सकता जब तक वे हिंसा भड़काने की प्रवृत्ति के न हों.

दिशा का व्यवहार 

दिल्ली पुलिस का कहना था कि दिशा रवि का किसान आंदोलन के लिया बनाया गया वॉट्सऐप ग्रुप डिलीट करना और सह आरोपी शांतनु मुलुक का किसानों की रैली- जिसे पुलिस की अनुमति मिली हुई थी, में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आना अपराध स्वीकारने का संकेत है. इस बारे में जमानत आदेश में कहा गया:

मेरे विचार में एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाना या एक हानिरहित टूलकिट का संपादक होना कोई अपराध नहीं है. और चूंकि उक्त टूलकिट या पीजेएफ के साथ जुड़ाव को लेकर कुछ आपत्तिजनक नहीं पाया गया है, इसलिए टूलकिट और पीजेएफ के साथ जुड़ाव वाले प्रमाण की वॉट्सऐप चैट डिलीट करना भी अर्थहीन है.

बचाव पक्ष के वकील द्वारा यह बिल्कुल सही कहा गया है कि किसानों के मार्च के लिए पुलिस द्वारा अनुमति दी गई थी, इसलिए सह आरोपी शांतनु के इसमें शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंचने में कुछ गलत नहीं है. फिर भी [दिशा का] अपनी पहचान छुपाने की कोशिश और कुछ नहीं बल्कि अनावश्यक विवादों से बचने का प्रयास जान पड़ता है.

समर्थन जुटाना 

यह भी आरोप लगाया गया है कि आवेदक/आरोपी ने अपनी पिछली जान-पहचान का इस्तेमाल करते हुए अंतरराष्ट्रीय हस्तियों का समर्थन मांगा. यह भी बताया गया कि आवेदक/आरोपित ने ग्रेटा थनबर्ग के साथ टूलकिट साझा की थी. यह भी कहा गया कि आवेदक/आरोपित ने अंतरराष्ट्रीय यूथ आइकॉन ग्रेटा थनबर्ग के समर्थन को तोड़-मरोड़कर राजद्रोही तत्वों को वैश्विक दर्शक दिए.

यह ध्यान देने योग्य है कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ नहीं है जो यह साबित कर सके कि आवेदक/आरोपित किसी पृथकतावादी विचार से इत्तेफाक रखती हैं. इसके अलावा, सिवाय यह कहने के कि आवेदक/आरोपित ने टूलकिट ग्रेटा थनबर्ग को फॉरवर्ड की, अभियोजन यह बात साबित करने में विफल रहा है कि कैसे आवेदक/आरोपित ने ‘पृथकतावादी तत्वों’ को वैश्विक दर्शक दिए.

आगे यह भी रेखांकित किया गया है कि कृषि कानूनों के विरोध के बहाने आवेदक/आरोपित ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर भारतीय दूतावासों में तोड़फोड़ और विशेष रूप से भारत के प्रतीकों- योग और चाय पर हमला करना तय किया.

सिवाय एक बात के, ऐसा कोई प्रमाण मेरे संज्ञान में नहीं लाया गया जहां आवेदक/आरोपित और उसके सहयोगियों के खतरनाक इरादों के अनुसरण के चलते किसी भी भारतीय दूतावास में किसी तरह की हिंसा हुई हो.

Disha Ravi Bail Order by The Wire on Scribd

(अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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