राजस्थान: सियासी खींचतान के महीनों बाद गहलोत सरकार ने स्वीकारी फोन टैपिंग की बात

जुलाई 2020 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राज्य के तत्कालीन पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह और कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा के बीच फोन पर बातचीत की रिकॉर्डिंग लीक हुई थी. तब फोन टैपिंग के आरोपों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि नेताओं के फोन टैप करना उनकी सरकार का तरीका नहीं है.

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट. (फोटो: पीटीआई)

जुलाई 2020 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राज्य के तत्कालीन पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह और कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा के बीच फोन पर बातचीत की रिकॉर्डिंग लीक हुई थी. तब फोन टैपिंग के आरोपों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि नेताओं के फोन टैप करना उनकी सरकार का तरीका नहीं है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट. (फोटो: पीटीआई)
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट. (फोटो: पीटीआई)

जयपुर: एक केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेताओं के बीच लीक हुई फोन बातचीत से राजस्थान में पैदा हुए सियासी उठापटक और अवैध फोन टैक के आरोपों के आठ महीने बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने फोन टैप किए जाने की पुष्टि की है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह पुष्टि राजस्थान विधानसभा की वेबसाइट पर अगस्त 2020 के विधानसभा सत्र के दौरान सरकार से पूछे गए एक सवाल के जवाब में पोस्ट किया गया. हालांकि, यह पुष्टि इससे पहले सरकार और खुद मुख्यमंत्री द्वारा किए गए दावे से इतर है.

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे भाजपा विधायक कालीचरण सर्राफ ने पूछा था, ‘क्या यह सच है कि पिछले दिनों फोन टैपिंग के मामले सामने आए हैं? यदि हां, तो किस कानून के तहत और किसके आदेश पर? पूरी जानकारी सदन के पटल पर रखें.’

सात महीने बाद दिए गए जवाब में सरकार ने कहा, ‘सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा पहुंचा सकने वाले अपराध की घटनाओं को रोकने के लिए टेलीफोन टैपिंग को एक सक्षम अधिकारी द्वारा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) नियम, 2007 की धारा 419 (ए) के प्रावधानों के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत मंजूरी दी गई है.’

इसमें आगे कहा गया, ‘राजस्थान पुलिस द्वारा सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही उपरोक्त प्रावधान के तहत टेलीफोन इंटरसेप्ट किया गया है.’

सरकार ने इंटरसेप्ट किए गए टेलीफोन नंबरों की न तो जानकारी दी और न ही यह बताया कि उन्हें कितने समय के लिए सर्विलांस में रखा गया था.

उसमें केवल यह कहा गया कि इंटरसेप्शन के मामलों की राजस्थान के मुख्य सचिव द्वारा समीक्षा की जाती है जो नियमों के अनुसार उनकी निगरानी (बैठकों में) करते हैं. नवंबर, 2020 तक के सभी मामलों की समीक्षा की जा चुकी है.

सर्राफ ने कहा कि उन्हें अभी तक सरकार से लिखित जवाब नहीं मिला है.

गौरतलब है कि राजस्थान कांग्रेस और उसकी सरकार में जुलाई 2020 में तब संकट शुरू हुआ था जब केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, तत्कालीन राजस्थान पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह और कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा के बीच फोन पर बातचीत की रिकॉर्डिंग लीक हो गई थी.

ऑडियो क्लिप प्रसारित होने के एक दिन बाद राजस्थान पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) ने उन्हें राज्य सरकार को गिराने की कथित साजिश बताते हुए शेखावत और शर्मा के खिलाफ एक प्राथमिकी के लिए इस्तेमाल किया.

उस दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि मंत्रियों और विधायकों के फोन टैप करना उनकी सरकार का तरीका नहीं है.

अगस्त में राजनीतिक खींचतान के बीच सचिन पायलट खेमे ने गहलोत सरकार पर विधायकों के फोन टैप करने का आरोप लगाया था. हालांकि पुलिस ने इस आरोपों से इनकार किया था.

इसके बाद राजस्थान पुलिस ने राज्य के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट के मीडिया मैनेजर और एक पत्रकार के खिलाफ विधायकों के फोन टैप करने संबंधी झूठी खबर चलाने के आरोप में मामला दर्ज किया था.

वहीं, फोन टैपिंग के आरोपों के संबंध में केंद्र सरकार ने राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट भी मांगी थी.

हालांकि, दिसंबर में राजस्थान पुलिस ने एक अंतिम रिपोर्ट दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि जिस वॉट्सऐप टेक्स्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी उसका पता नहीं लगाया जा सका.

मालूम हो कि जुलाई-अगस्त 2020 में राजस्थान में करीब एक महीने तक सियासी खींचतान चली थी. कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने बगावत कर दी थी.

कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने 18 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करते हुए 12 जुलाई को दावा किया था कि उनके साथ 30 से अधिक विधायक हैं और अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है.

इसके बाद अशोक गहलोत ने दो बार विधायक दल की बैठक बुलाई थी, जिसमें पायलट और उनके समर्थक विधायक नहीं आए. इसके बाद पायलट को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया था.

आखिर में 14 अगस्त को अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत जीत लिया था.

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