पिछले कार्यकाल के दौरान के लंबित पड़े मामलों में दिसंबर 2020 से अब तक मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को लगा यह चौथा झटका है. हालिया मामला 2008-2012 की अवधि में अवैध तरीके से भूमि अधिसूचना वापस लेने के कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है. हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत ने 2016 में इस मामले को ख़ारिज करने में ग़लती की थी.
बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों के लिए गठित एक विशेष अदालत को निर्देश दिया है कि वह जुलाई 2016 में एक सत्र न्यायालय द्वारा मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ हटाए गए एक पुराने मामले को बहाल करे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मामला 2008-2012 की अवधि में अवैध तरीके से भूमि अधिसूचना वापस लेने के कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है, जब कर्नाटक में भाजपा पहली बार सत्ता में थी. इस मामले में पूर्व उद्योग मंत्री कट्टा सुब्रमण्या नायडू का नाम भी शामिल है.
हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत ने 2016 में इस मामले को खारिज करने में गलती की थी. दरअसल, सत्र अदालत ने एक पुलिस रिपोर्ट के आधार पर मामले में नामित नौ अन्य लोगों के लिए पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक क्लोजर रिपोर्ट का हवाला दिया था.
येदियुरप्पा के खिलाफ मामला बहाल करने के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा, ‘विशेष अदालत को प्रतिवादी नंबर 10 और 11 (आरोप पत्र में अभियुक्त नंबर 1 और 2 के रूप में नामित) के खिलाफ आरोप-पत्र में किए गए अपराधों का संज्ञान लेने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने का निर्देश दिया जा रहा है.’
साल 2016 में कार्यकर्ता आलम पाशा ने पुराने मामले की बहाली के लिए याचिका दायर की थी और हाईकोर्ट ने इस साल 17 मार्च को बहाली के लिए अपना आदेश पारित किया था.
2012 में येदियुरप्पा और अन्य के खिलाफ दायर भ्रष्टाचार विरोधी मामले में मूल शिकायतकर्ता रहे पाशा ने हाईकोर्ट में कहा कि सत्र अदालत ने 2016 में पुलिस द्वारा दायर एक क्लोजर रिपोर्ट का हवाला देकर मामले को गलत तरीके से खारिज कर दिया था.
येदियुरप्पा और नायडू के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कहा गया था कि उन्होंने अपने पदों का इस्तेमाल उत्तरी बेंगलुरु में 24 एकड़ से अधिक की सरकारी-अधिग्रहित भूमि को निजी व्यक्तियों को देने के लिए किया, जिससे राज्य के सरकारी खजाने को नुकसान हुआ.
2012 में येदियुरप्पा और अन्य के खिलाफ शिकायत में आरोप लगाया गया था कि भूमि की अधिसूचना वापस लेने में में अवैध लेन-देन भी शामिल है.
जांच के बाद लोकायुक्त पुलिस ने मामले में नामजद नौ लोगों के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट दायर की थी, क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं जुटाए जा सके और येदियुरप्पा और नायडू के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया.
हाईकोर्ट ने कहा, पुलिस की चार्जशीट के बावजूद सेशन कोर्ट ने मामले में नौ अन्य लोगों के खिलाफ दायर क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर पूरे मामले को छोड़ दिया.
बता दें कि पिछले कार्यकाल के दौरान के लंबित पड़े मामलों में दिसंबर 2020 से अब तक येदियुरप्पा को लगा यह चौथा झटका है. येदियुरप्पा ने सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतों से कुछ मामलों में राहत प्राप्त की है.
इस साल जनवरी में येदियुरप्पा को तब झटका लगा जब हाईकोर्ट ने एक कार्यकर्ता जयकुमार हिरेमठ की शिकायत के आधार पर 2015 में उनके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जहां मुख्यमंत्री पर 2010 में पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के परिवार के सदस्यों को सरकार द्वारा अधिगृहित की गई भूमि को जारी करने का आरोप है.
एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने येदियुरप्पा और एक अन्य पूर्व राज्य उद्योग मंत्री मुरुगेश निरानी के खिलाफ एक भ्रष्टाचार की शिकायत को बहाल करने के लिए याचिका दायर करने की अनुमति दी थी, जिसमें कथित तौर पर एक निजी निवेशक को 2011 में 26 एकड़ जमीन देने की प्रतिबद्धता जताई गई थी.
इससे पहले 23 दिसंबर को अदालत ने भूमि अधिसूचना वापस लेने के एक अन्य मामले में चल रही आपराधिक कार्रवाई रद्द करने के येदियुरप्पा के अनुरोध को खारिज कर दिया था.
यह मामला गंगनहल्ली में 1.11 एकड़ जमीन की अधिसूचना वापस लेने का है जो बेंगलुरु के आरटी नगर में मातादहल्ली लेआउट का हिस्सा है और इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी एवं अन्य भी आरोपी हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता जयकुमार हिरेमठ की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस ने वर्ष 2015 में आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत मामला दर्ज किया था.
वहीं, दिसंबर में ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसके तहत मंत्रियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ 61 मामलों में मुकदमा वापस लेने का फैसला किया गया था. इसमें मौजूदा सांसदों और विधायकों के भी मामले शामिल हैं.
कर्नाटक सरकार ने राज्य के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली एक उप-समिति के सुझावों पर 31 अगस्त, 2020 को सत्ताधारी भाजपा के सांसदों और विधायकों पर दर्ज 61 मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया था.