आईआईएम कलकत्ता में शिक्षकों के सरकार की आलोचना करने, प्रदर्शनों में हिस्सा लेने पर रोक

नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, कोई भी प्रोफेसर संस्थान या सरकार की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता. साथ ही शिकायत निवारण के लिए संयुक्त याचिकाओं पर हस्ताक्षर और किसी भी समस्या के लिए अदालत या प्रेस जाने पर भी अंकुश लगाया गया है. फैकल्टी सदस्यों ने इनका पुरजोर विरोध किया है.

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(फोटोः पीटीआई)

नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, कोई भी प्रोफेसर संस्थान या सरकार की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता. साथ ही शिकायत निवारण के लिए संयुक्त याचिकाओं पर हस्ताक्षर और किसी भी समस्या के लिए अदालत या प्रेस जाने पर भी अंकुश लगाया गया है. फैकल्टी सदस्यों ने इनका पुरजोर विरोध किया है.

(फोटोः पीटीआई)
(फोटोः पीटीआई)

कोलकाताः इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) कलकत्ता ने प्रोफेसरों के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इन नए दिशानिर्देशों में कहा गया है कि कोई भी प्रोफेसर संस्थान या सरकार की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता.

दिशानिर्देशों के मुताबिक, फैकल्टी सदस्य ऐसे किसी भी विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सकते, जिससे सार्वजनिक व्यवस्था या शालीनता को चोट पहुंचे. इसके साथ ही किसी भी समस्या के लिए अदालत या प्रेस जाने पर भी अंकुश लगाया गया है.

शिकायत निवारण के लिए संयुक्त याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने पर भी रोक लगाने का प्रावधान है.

इस नए मसौदे को बोर्ड की ओर से पूर्व निदेशक अंजू सेठ ने फरवरी के अंत में सर्कुलेट किया था. इस मसौदे का फैकल्टी सदस्यों ने पुरजोर विरोध किया है.

इसके विरोध में प्रतिक्रियास्वरूप 60 से अधिक शिक्षकों ने विरोध पत्र पर हस्ताक्षर किए है और कहा है कि ये दिशानिर्देश केंद्रीय सिविल सेवा (आचार संहिता) नियमों से लिए गए हैं और शैक्षणिक संस्थान की समझ के खिलाफ है, जो दरअसल शैक्षणिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देते हैं.

शिक्षकों का कहना है कि यह उनके संवैधानिक संरक्षित अधिकारों का उल्लंघन है और सरकारी विभागों से अलग अकादमिक शैक्षणिक संस्थानों के विचारों के खिलाफ हैं.

इन दिशानिर्देशों में सरकार और संस्थान एवं इसकी नीतियों की आलोचना पर रोक के अलावा शिक्षकों से संस्थान के बाहर किसी भी तरह की अकादमिक गतिविधि के लिए सक्षम अथॉरिटी से पूर्व में मंजूरी लेना अनिवार्य बताया है.

ये दिशानिर्देश शिक्षकों को किसी समस्या के निवारण के लिए प्रशासन के समक्ष किसी भी तरह के संयुक्त याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने से रोकता है और तब तक मामले को उच्च अधिकारियों के समक्ष लाने की मंजूरी नहीं देता, जब तक निचले स्तर पर उनके दावे को अस्वीकार कर दिया गया हो या राहत देने से इनकार कर दिया गया हो या फिर मामले के निपटान में कई महीने से अधिक की देरी हो रही हो.

शिक्षकों से यह भी उम्मीद जताई गई है कि वे राजनीतिक तौर पर निष्पक्ष रहेंगे और किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे और किसी भी पार्टी या संगठन से नहीं जुड़ेंगे.

विडंबना है कि यह फैकल्टी सदस्यों द्वारा संस्थान के निदेशक और इसके बोर्ड के विरोध में सरकार का रुख करने के बाद ये दिशानिर्देश जारी किए गए हैं.

बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा शक्तियां खत्म किए जाने के एक महीने के बाद संस्थान की पहली महिला निदेशक अंजू सेठ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

सरकार और संस्थान की आलोचना पर प्रतिबंध लगाने के विरोध में फैकल्टी ने कहा कि संस्थान से जुड़े हुए हितधारकों के पास किसी भी तरह की गलत नीतियों के विरोध में आवाज उठाने का अधिकार है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर संस्थान को गलत नीतियों से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा.

शिक्षकों ने इसके विरोध में अदालत के फैसले का तर्क दिया है कि सीसीएस नियम शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होते क्योंकि शिक्षक सरकारी कर्मचारी नहीं है.

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