कोविड-19ः भारत के कोरोना वैक्सीन निर्यातक से आयातक बन जाने के क्या मायने हैं

भारत द्वारा बड़े पैमाने पर कोरोना की वैक्सीन दूसरे देशों को भेजने के बाद संक्रमण की दूसरी लहर से ठीक पहले देश में ही टीकों की कमी देखी जाने लगी और विदेशी टीकों को अनुमति मिली. जानकारों के अनुसार, भारत के निर्यातक से आयातक की भूमिका में आने का असर दुनिया के कुछ अन्य देशों पर भी होगा.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

भारत द्वारा बड़े पैमाने पर कोरोना की वैक्सीन दूसरे देशों को भेजने के बाद संक्रमण की दूसरी लहर से ठीक पहले देश में ही टीकों की कमी देखी जाने लगी और विदेशी टीकों को अनुमति मिली. जानकारों के अनुसार, भारत के निर्यातक से आयातक की भूमिका में आने का असर दुनिया के कुछ अन्य देशों पर भी होगा.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः बड़े पैमाने पर कोविड-19 वैक्सीन विदेशों में बेचने या तोहफे में देने के बाद दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में कोरोना के एक बार फिर से बढ़ने के बाद अचानक से देश में वैक्सीन की कमी हो गई है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बीते गुरुवार को पहली बार कोरोना के 2,00,000 दैनिक मामले सामने आए.

देश में लॉकडाउन में ढील देने के बाद कोरोना के मामले फिर से तेजी से बढ़ने और अस्पतालों में भीड़ बढ़ने पर वैक्सीन को आयात करने के नियमों में अचानक से बदलाव कर दिया गया. वहीं, फाइजर जैसी विदेशी दवा निर्माता कंपनी पहले से ही भारत से खफा है.

देश के 12.5 करोड़ लोगों के लिए इस महीने की शुरुआत से ही रूस की स्पुतनिक वी वैक्सीन का आयात किया जाएगा.

निर्यातक से आयातक की भूमिका में आने से न सिर्फ कोरोना से निपटने के लिए भारत की लड़ाई बाधित होगी लेकिन महीनों तक 60 से अधिक गरीब देशों मुख्य रूप से अफ्रीका में टीकाकरण अभियान प्रभावित होगा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और गवी वैक्सीन अलायंस द्वारा समर्थित कोवैक्स कार्यक्रम का उद्देश्य दुनियाभर में समान रूप से टीके तक पहुंच बनाना है और यह मुख्य रूप से सप्लाई के लिए भारत पर निर्भर है.

विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, लेकिन अभी तक इस महीने भारत ने लगभग 12 लाख वैक्सीन का निर्यात किया है. यह जनवरी और मार्च महीने के बीच बाहर भेजे गए 6.4 लाख डोज की तुलना में कम है.

भारत की वैक्सीन रणनीति के बार में जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि देश में उपलब्ध वैक्सीन का घरेलू स्तर पर उपयोग किया जाएगा जबकि देश आपात स्थिति में है.

उन्होंने कहा कि अन्य देशों के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं है. भारत के विदेश मंत्रालय ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारतीयों की मांग निर्यात के स्तर को निर्धारित करेगी.

कोवैक्स योजना में कुछ देशों में परिणामों की कमी पहले से ही महसूस की जा रही है. अफ्रीका में वैक्सीन रोलआउट में शामिल संयुक्त राष्ट्र के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, ‘एक निर्माता (दवा निर्माता) पर इतना भरोसा करना चिंता का विषय है.’

अफ्रीका सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के निदेशक जॉन केनगासोंग ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि भारत से सप्लाई में देरी विनाशकारी हो सकती है.

गलत कदम

वैक्सीन की सप्लाई और खरीद पर चर्चा में शामिल चार स्रोतों ने बताया कि ऑर्डर में भारत और कोवैक्स की ओर से देरी, वैक्सीन प्रोडक्शन में निवेश की कमी, कच्चे माल की कमी और देश में कोरोना वायरस के फैलाव को कम आंकने सहित कई कारक वैक्सीन की कमी के लिए जिम्मेदार हैं.

दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने निम्न और मध्यवर्गीय देशों में कम से कम दो अरब कोविड-19 डोज डिलीवर करने की प्रतिबद्धता जताई है, जिनमें से लगभग आधी 2021 तक सप्लाई हो जाएंगी.

लेकिन एस्ट्राजेनेका की वैश्विक उत्पादन समस्याओं के बीच ब्रिटेन, कनाडा और सऊदी अरब सहित अन्य देशों की सरकारों की जरूरतों को पूरा करने का भी दबाव है.

सूत्रों ने बताया कि इस बीच अमेरिका ने अपने खुद के वैक्सीन निर्माताओं के लिए मुख्य उपकरण और कच्चे माल की सप्लाई सुनिश्चित की, जिससे एसआईआई का ऑपेशन सीमित हो गया और उनके मासिक उत्पादन को सात करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ करने के उद्देश्य में महीनों की देरी हुई.

दो सूत्रों का कहना है कि एसआईआई के सप्लाई की महत्वकांक्षाओं में शुरुआती कठिनाई कंपनी के ऑर्डर लेने में भारत की हिचक थी. इससे एस्ट्राजेनेका के वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिल सकती थी फिर भले ही नियामकों को इसके लिए मंजूरी देनी थी.

सूत्रों का कहना है कि भारत ने प्रति डोज कीमत निर्धारण करने पर चर्चा में महीनों लगा दिए और भारत के दवा नियामक द्वारा एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को मंजूरी देने के दो हफ्ते बाद ही पहला ऑर्डर दिया.

एक स्तर पर उत्पादित वैक्सीन को रखने के लिए एसआईआई के पास जगह नहीं थी.

एसआईआई के मुख्य कार्यकारी अदार पूनावाला ने जनवरी में रॉयटर्स को बताया था, ‘इसलिए मैंने पांच करोड़ से अधिक डोज को पैक नहीं करने का चुनाव किया क्योंकि मैं जानता था कि अगर मैं इससे अधिक पैक करूंगा तो इन्हें मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’

उन्होंने कहा कि उन्होंने पांच करोड़ डोज पर बीस अरब रुपये (27.2 करोड़ डॉलर) खर्च किए थे.

सूत्रों का कहना है कि अब भी सरकार लंबी अवधि की सप्लाई सूची पर सहमति के बजाए एसआईआई से सिर्फ एडहॉक खरीद ही करती है.

एसआईआई ने क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार से 40 करोड़ डॉलर से अधिक की मांग की है लेकिन अभी तक कोई प्रतिबद्धता नहीं हुई है.

स्वास्थ्य विभाग और विदेश मंत्रालय ने फंडिंग, खरीद में देरी और भारत के टीकाकरण अभियान के अन्य पहलुओं के मुद्दों पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है.

कोवैक्स की पहेली

एक सूत्र ने बताया कि कोवैक्स ने तब तक एसआईआई की ओर से भाग ले रहे देशों को खेप की मंजूरी नहीं दी जब तक वैक्सीन को फरवरी के मध्य में डब्ल्यूएचओ से मंजूरी नहींं मिल गई.

सूत्रों का कहना है कि देरी से मतलब लाखों अतिरिक्त डोज से है, जिसे एसआईआई ने अक्टूबर और फरवरी के बीच तैयार किया था लेकिन कभी बेचा नहीं.

बता दें कि रविवार को भारत में कोरोना के 273,810 मामले दर्ज किए गए. देश में अब तक कोरोना से 178,769 लोगों की मौत हो चुकी है. विश्व में अमेरिका के बाद भारत कोरोना से सर्वाधिक संक्रमित देश है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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