क्या रामजस विवाद के बाद डीयू के विभिन्न कॉलेजों में अघोषित सेंसरशिप लागू है?

दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में सभा, वाद-विवाद और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए प्रबंधन की अनुमति मिलने में विद्यार्थियों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

/
(रामजस कॉलेज में इस साल फरवरी में एक सेमिनार को लेकर हिंसक झड़प हो गई थी. इसके बाद छात्रों ने कई दिनों तक प्रदर्शन किया था. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में सार्वजनिक सभा, नुक्कड़ नाटक, वाद-विवाद और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कॉलेज प्रबंधन की अनुमति मिलने में विद्यार्थियों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

DU Campus Twitter
(फोटो साभार: ट्विटर)

पिछले दिनों दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होना था, पर सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इस कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया. इस कार्यक्रम के अलावा भी दिल्ली विश्वविद्यालय के दूसरे कैंपसों में कुछ कार्यक्रमों पर रोक लगने के बाद छात्र-छात्राओं को लगता है जैसे कॉलेजों में सेंसरशिप या प्रतिबंध दौर चल रहा है.

छात्र-छात्राओं का कहना है कि ‘कैंपस’ और ‘ऑफ कैंपस’ (कैंपस मतलब नॉर्थ कैंपस के कॉलेज और आॅफ कैंपस मतलब साउथ कैंपस और दूसरे इलाकों में स्थित कॉलेज) में जगह-जगह कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक और सामूहिक चर्चा करने की भी अनुमति नहीं दी जा रही है.

रामजस कॉलेज में हुए विवाद के बाद विभिन्न कॉलेजों का प्रबंधन ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन को लेकर सख़्त नज़र आ रहा है. वहीं छात्रों में गुस्सा है कि उनको आपस में मिलने और शिक्षकों के साथ बातचीत करने के लिए कॉलेज प्रशासन की अनुमति क्यों चाहिए?

इस साल 22 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में एक कार्यक्रम को लेकर हुए विवाद में छात्रों के दो गुट आपस में भिड़ गए थे. कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग ने ‘कल्चर ऑफ प्रोटेस्ट’ या ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ नाम का एक कार्यक्रम आयोजित किया था.

इस कार्यक्रम में माया राव, सतीश देशपांडे, संजय काक, सुधनवा देशपांडे, जेएनयू के शोद्यार्थी और छात्र नेता उमर ख़ालिद और शहला राशिद समेत अन्य विद्यार्थी, शिक्षक, विशेषज्ञ और रंगकर्मियों को बुलाया गया था.

इस कार्यक्रम को देशद्रोही बताकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों ने रोक दिया. उमर ख़ालिद को बुलाए जाने से इस छात्र संगठन को आपत्ति थी. विवाद के बाद कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा इसके विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने प्रोफेसरों के साथ एक मार्च निकाला था.

छात्रों के अनुसार, कई सालों बाद ऐसे किसी कार्यक्रम को आर्ट फैकल्टी के अंदर आयोजित करने की अनुमति मिली थी. इसके बाद अब कोई भी कार्यक्रम फैकल्टी के बाहर सड़क पर होता है.

फरवरी का महीना डीयू में ‘फेस्ट का महीना’ होता है. इसमें हर कॉलेज दो से तीन दिन का कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिनमें कलाकारों, संगीतकारों और बड़े लेखकों को बुलाकर प्रतियोगिताएं और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कराई जाती हैं.

विद्यार्थियों का कहना है कि रामजस कॉलेज में हुए विवाद के बाद डर के कारण भी छात्रों ने ख़ुद बहुत सारे कार्यक्रम निरस्त कर दिए. इस कार्यक्रम को लेकर एक वीडियो फुटेज भी सामने आया था जिसमें दावा किया गया था रामजस कॉलेज में विवादित कार्यक्रम के दौरान देश विरोधी नारे लगाए गए थे.

Ramjas_College_Clash-PTI
रामजस कॉलेज में विवाद के बाद छात्रों ने प्रदर्शन किया था. (फोटो: पीटीआई)

इस घटना के तकरीबन छह महीने बाद पिछले दिनों वीडियो फुटेज को लेकर पुलिस ने नौ पन्नों की अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी. पुलिस की इस रिपोर्ट के हवाले से द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, ‘जिस वीडियो के आधार पर देशद्रोही नारों का दावा किया जा रहा था, वो वीडियो साफ नहीं था और ऐसा लगता होता है कि वीडियो के साथ शुरुआती दौर में छेड़छाड़ की गई है.’

पुलिस के अनुसार, इस मामले में कार्रवाई अब अंतिम पड़ाव पर है. पुलिस रामजस कॉलेज से सीसीटीवी फुटेज और छात्रों से मिले सबूतों के आधार पर जांच कर रही है. इस वीडियो को फॉरेंसिक जांच के लिए अभी भेजा जाना है.

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की छात्रा आरुषि कालरा कहती हैं, ‘मीडिया इस मामले को दक्षिणपंथी छात्र संगठन एबीवीपी और वामपंथी छात्र संगठन आइसा का दिखा रहा था, पर असल में ये पूरा मामला डीयू के आम छात्रों और डीयू छात्र संघ में काबिज़ एबीवीपी के बीच का था.’

आरुषि कहती हैं, ‘आम छात्र एक शांतिपूर्ण वातावरण में यह कार्यक्रम आयोजित करने की लड़ाई लड़ रहा था जबकि मीडिया इसे लेफ्ट और राइट धड़े के छात्र संगठनों का मामला बता रहा था. इससे नाराज़ छात्रों ने आईटीओ पर प्रदर्शन के दौरान मीडिया की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया था.’

24 अगस्त को ‘डीयू कनवरसेशन’ या ‘डीयू संवाद’ नाम से दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (डीएसई) में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होना था, जिसमें लोकतंत्र के 70 साल पर चर्चा की जानी थी.

हालांकि सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए डीएसई की निदेशक पामी दुआ ने कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी. निदेशक के अनुसार मौरिस नगर थाने की एसएचओ से बातचीत नहीं हो पाई और प्रबंधन कैंपस की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं करेगा.

इसके बाद विद्यार्थियों ने पूरे नॉर्थ कैंपस में यह कार्यक्रम आयोजित करने के लिए जगह ढूंढ़ने की कोशिश की पर उन्हें प्रॉक्टर से मिलने की इजाज़त भी नहीं दी गई.

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब के कहा, ‘ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कैंपसों में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की भी अनुमति नहीं दी जा रही है. जिस तरह से पूरी शिक्षा व्यवस्था और विश्वविद्यालयों पर सेंसरशिप का दौर चल रहा है, इससे समाज की असलियत पर बातचीत भी नहीं हो पाएगी.’

प्रो. आभा के अनुसार, ‘डीएसई में जो कुछ हुआ वो दुर्भाग्यपूर्ण है. हमें संगठित रूप से लड़कर अपने शिक्षा संस्थानों और अनुसंधान केंद्रों को बचाना होगा. प्रशासन विद्यार्थियों और शिक्षकों को बर्ख़ास्त करने का डर भी बना रहा है. जयपुर में जेएनयू की प्रो. निवेदिता मेनन को बुलाने पर शिक्षकों पर हमला किया गया, ऐसा माहौल विश्वविद्यालयों के लिए ख़तरनाक है.’

University of Delhi
(प्रतीकात्मक फोटो साभार: दिल्ली विश्वविद्यालय)

डीयू के लॉ फैकल्टी की छात्रा और आइसा की डीयू अध्यक्ष कवलप्रीत कौर के अनुसार, ‘जिस तरह से दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स में होने वाले कार्यक्रम को रद्द किया गया ये दिखाता है कि कॉलेज प्रशासन का स्वरूप कैसा है. जिस विश्वविद्यालय में हर विचारधारा के लोगों को साथ रहने और बातचीत करने अधिकार होना चाहिए उसे बीएचयू की तरह बनाने की कोशिश की जा रही है. ये हैरानी की बात है कि इतने बड़े विश्वविद्यालय में कार्यक्रम करने की कोई जगह छात्र-छात्राओं को नहीं मिल सकी.’

डीयू के इंद्रप्रस्थ कॉलेज की मारिया मुश्ताक़ ने कहा, ‘रामजस मामले के पहले कभी भी हमारे कॉलेज प्रबंधन ने छात्राओं को उनके हिसाब से कार्यक्रम आयोजित करने की आज़ादी नहीं दी. प्रबंधन को डर रहता है कि इससे बाकी के विद्यार्थी विद्रोही बन जाएंगे.’

मारिया कहती हैं, ‘एक बार हमें एक चर्चा का आयोजन करना था तो प्रबंधन ने हमने चर्चा के विषय पर विस्तार से जानकारी मांगी थी. हमसे पूछा गया कि हम किन-किन विषयों पर बातचीत करने वाले हैं. हमें सिर्फ छात्रों के मुद्दे पर बात करनी थी पर हमें अनुमति नहीं दी गई और बाद में ये चर्चा हमें कॉलेज के बाहर करनी पड़ी.’

मारिया आगे बताती हैं, ‘कोर्स के दूसरे साल में प्रबंधन ने कॉलेज के अंदर ये कहकर वाई-फाई सुविधा बंद कर दी थी कि छात्राएं इंटरनेट का ग़लत इस्तेमाल करती हैं. हमारे कॉलेज में लड़कियों की सुरक्षा का हवाला देते उन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाना आम बात है.’

दिल्ली विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर मीडिया कोआॅडिनेटर का नाम मलय नीरव दिया गया था. वेबसाइट पर दिए उनके नंबर पर जब हमने संपर्क किया तो हमें जानकारी मिली कि अब वह नंबर मीडिया कोआॅडिनेटर का नहीं है और मलय नीरव को यह पद छोड़कर गए दो साल हो चुके हैं. हमने विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर को ईमेल कर उनका बयान मांगा है, लेकिन यह लेख के प्रकाशित होने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया था.

दयाल सिंह कॉलेज की एक छात्रा ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि कॉलेज प्रबंधन से अनुमति लेने के लिए उन्हें अक्सर कार्यक्रम का नाम बदलना पड़ जाता है जैसे छत्तीसगढ़ में मीना खलको हत्याकांड पर बातचीत करने के लिए उन्हें कार्यक्रम का नाम जेंडर और हिंसा करना पड़ा. प्रबंधन ने एक कार्यक्रम में अरुंधति रॉय को बुलाने को लेकर अनुमति देने से साफ इंकार कर दिया था.

इसी तरह 24 अगस्त की शाम को ही जामिया मिलिया इस्लामिया की मुख्य कैंटीन के बाहर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. कार्यक्रम को प्रॉक्टर द्वारा बीच में रोक दिया गया.

जब विधार्थियों ने इसका विरोध किया तो उनके ख़िलाफ़ बल का प्रयोग किया. जामिया की एक छात्रा के अनुसार, ‘पुरुष गार्डो ने हमारे साथ बदसलूकी की. मुख्य कैंटीन हमारे लिए ऐसी जगह है जहां बैठकर हम बहुत सारे कार्यक्रम, लोकगीत और चर्चा करते हैं. उस दिन भी हम ऐसा ही होने वाला था पर जिस तरह से इसे रोका गया हम इसकी निंदा करते हैं. हम दायर-ए-शौक़ और मैड आर्टिस्ट समूह के साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम कर रहे थे. गार्ड ने उनका सामान तोड़ दिया.’

जामिया मिलिया इस्लामिया की मीडिया कोआॅडिनेटर सायमा सईद के अनुसार, ‘हमारी तरफ से किसी ऐसे कार्यक्रम को करने की अनुमति नहीं दी गई. विश्वविद्यालय में देर शाम तक कक्षाएं चलती हैं ऐसे में हम किसी भी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम करने और माइक या लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति नहीं दे सकते.’

आंबेडकर विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘कश्मीर और कुनान-पोशपोरा पर होने वाले एक कार्यक्रम का नाम जब टूट गिरेंगी ज़ंजीरे रखा गया था और पोस्टर में भी कश्मीर को दिखाया गया था. प्रबंधन की अनुमति मिलने में सख़्ती को देखते हुए छात्राओं ने इसका नाम बदलकर वुमेन, फैमिली और स्टेट रखा. साथ ही कार्यक्रम का पोस्टर भी बदलना पड़ा. तब जाकर प्रशासन से अनुमति मिली और कार्यक्रम निर्धारित समय के काफी दिन बाद आयोजित किया जा सका.’

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq