‘सरकार द्वारा वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और डॉक्टरों की अनदेखी देश को पड़ रही है भारी’

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने कहा कि पिछले अनुभव से कोई सीख न लेने और चुनाव के दौरान लापरवाही बरतने तथा धार्मिक आयोजनों पर समय रहते रोक न लगाए जाने जैसे कारक भी दूसरी लहर के घातक प्रसार के लिए ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञों की लगातार अनदेखी एक बहुत बड़ा जुर्म है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने कहा कि पिछले अनुभव से कोई सीख न लेने और चुनाव के दौरान लापरवाही बरतने तथा धार्मिक आयोजनों पर समय रहते रोक न लगाए जाने जैसे कारक भी दूसरी लहर के घातक प्रसार के लिए ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञों की लगातार अनदेखी एक बहुत बड़ा जुर्म है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारतीय चिकित्सा संघ यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा का कहना है कि सरकार द्वारा वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और स्वास्थ्य ढांचे की अनदेखी किए जाने के कारण कोविड-19 की दूसरी लहर देश के लिए भारी पड़ रही है.

उनका मानना है कि पिछले अनुभव से कोई सीख न लेने और चुनाव के दौरान लापरवाही बरतने तथा धार्मिक आयोजनों पर समय रहते रोक न लगाए जाने जैसे कारक भी दूसरी लहर के घातक प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं.

महामारी की दूसरी लहर से देश की जारी लड़ाई और तीसरी लहर को लेकर जताई जा रहीं आशंकाओं के संबंध में 1999 से 2020 तक आईएमए में विभिन्न पदों पर रहे डॉ. शर्मा से समाचार एजेंसी भाषा की बातचीत.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में रोजाना बड़ी संख्या में मामले दर्ज किए जा रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है. जानकारों का कहना है कि असल आंकड़े कहीं अधिक हैं. इस स्थिति को आप कैसे देखते हैं?

स्वास्थ्य सेवाओं की लगातार अनदेखी किसी से छिपी नहीं है. वर्षों तक लगातार इसे नजरअंदाज किया गया. कुछ साल पहले स्वाइन फ्लू आया था, जिसमें मृत्यु दर 6.5 प्रतिशत थी. हम इससे पार पा गए, क्योंकि उस वक्त सरकारी और निजी क्षेत्र में कोई भेदभाव नहीं किया गया.

पहली गलती पिछले साल ये हुई कि आपने निजी क्षेत्र को घर बिठा दिया. निजी क्षेत्र के अस्पताल कहने का मतलब सिर्फ बड़े और नामी-गिरामी अस्पताल नहीं है. मेरा मतलब शहरों के छोटे और 20 से 50 बिस्तरों वाले अस्पतालों से है. इनकी अनदेखी की गई.

आपने घोषणाएं तो बड़ी कीं, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हुआ. पिछली बार समय रहते आवश्यक संसाधन जुटाकर और कुछ कदम उठाकर हम संभल गए, लेकिन दूसरी लहर में हमने पूरी ढिलाई कर दी.

पश्चिम बंगाल में इतना लंबा चुनाव कराने की क्या आवश्यकता थी? वहां भी नियमों का पालन नहीं किया गया. धार्मिक आयोजनों की छूट दी गई. आज जो स्थिति है, वह इन्हीं सबका नतीजा है.

इस लहर में स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह चरमराया हुआ दिखा. अस्पताल और बिस्तरों से लेकर ऑक्सीजन और दवाओं तक की कमी हो गई. जो स्थिति है, उसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?

स्वास्थ्य व्यवस्था क्यों नहीं चरमराएगी. चिकित्सक पिछले एक साल से लगे हुए हैं. चिकित्सक ऐसा शख्स है, जो बीमारी घर लेकर जाता है. वे किस मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं, इसका अंदाजा लगाइए कि वे एक-एक रात में 20 से 24 लोगों को मृत घोषित कर रहे हैं. प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी अपनी जगह है, लेकिन उनके लिए संसाधनों की कमी बड़ा मुद्दा है.

आईएमए ने पिछले दिनों एक बयान में कहा था कि कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने के लिए सरकार ने उपयुक्त कदम नहीं उठाए और उसे नींद से जाग जाना चाहिए?

किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञों की लगातार अनदेखी एक बहुत बड़ा जुर्म है. हमारे देश में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) है पुणे में. इसका काम ही है महामारी को नियंत्रित करना और संबंधित शोध करना. छोटे चेचक सहित कई अन्य संक्रामक रोगों का टीका यहां बना.

टीकों में हमारा देश अग्रणी रहा है. केंद्रीय अनुसंधान संस्थान हिमाचल प्रदेश के कसौली में है. इसने कई महत्वपूर्ण शोध किए. ये सब एक दिन में नहीं हो गया. एक साल हो गया देश में कोरोना महामारी को, लेकिन इनकी कोई मदद नहीं ली गई, बल्कि इन सभी की अनदेखी की गई.

हम सरकार को जगाने की ही तो कोशिश कर रहे हैं. और क्या करें? यह सवाल तो स्वास्थ्य मंत्री से पूछा जाना चाहिए.

कोविड-19 के खिलाफ देश के चिकित्सकों पर भी भारी दबाव है और ऐसा लग रहा है कि अब वे भी थकने लगे हैं. आगे क्या चुनौतियां देखते हैं आप?

अभी तक 1,000 से ज्यादा चिकित्सक कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान गंवा चुके हैं. एक दिन में 50 चिकित्सकों तक की मौत हुई है. आईएमए के पूर्व अध्यक्ष केके अग्रवाल तक को अपनी जान गंवानी पड़ी.

दरअसल, कोई योजना हमारे पास नहीं है. न तो कोई नेशनल टास्क फोर्स है और न ही हम जिनोमिक्स अध्ययन करते हैं. वायरस के स्वरूप का भी अध्ययन नहीं करते. जो अच्छे मॉडल हैं, उनका अनुसरण नहीं करते हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो विज्ञान, वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की अनदेखी देश को भारी पड़ रही है.

सरकार ने हाल के दिनों में कई कदम उठाए हैं. विदेशों से ऑक्सीजन और दवाएं मंगाई गईं और नए टीकों को भी अनुमति दी गई है. तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए इन कदमों को कितना पर्याप्त मानते हैं आप?

पहली लहर के बाद भी हम नहीं सुधरे. अभी हम दूसरी लहर में हैं तब तैयारियां कर रहे हैं. पीएम केयर्स फंड से ऑक्सीजन संयंत्र देश के अस्पतालों में लगाए जा रहे हैं.

मैं पूछना चाहूंगा कि पिछले साल भर से हम कर क्या रहे थे? केरल हमारे सामने उदाहरण है. पहली लहर से ही उसने दूसरी लहर से निपटने की तैयारी आरंभ कर दी थी. उसने ऑक्सीजन का उत्पादन तीन गुना कर दिया और दूसरी लहर में कई राज्यों तक को उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति की.

तीसरी लहर आएगी, लेकिन टीकाकरण अभियान की रफ्तार देखिए? हम पर्याप्त टीकों का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं. कोविन पोर्टल खुलता ही नहीं है और लोग टीका केंद्रों से वापस लौट रहे हैं. हमें इन सब व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना होगा और सतर्क रहना होगा. सरकार को अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए.

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