म्यांमार: आंदोलन करने के चलते सेना ने 1.25 लाख से अधिक शिक्षकों को निलंबित किया

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद जून महीने से स्कूल के नए सत्र की शुरुआत हो रही है, लेकिन कई परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा है कि वे तानाशाही सरकार से शिक्षा नहीं लेना चाहते हैं. शिक्षक समूह के अनुसार, लगभग 19,500 विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को भी निलंबित कर दिया गया है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद जून महीने से स्कूल के नए सत्र की शुरुआत हो रही है, लेकिन कई परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा है कि वे तानाशाही सरकार से शिक्षा नहीं लेना चाहते हैं. शिक्षक समूह के अनुसार, लगभग 19,500 विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को भी निलंबित कर दिया गया है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: म्यांमार शिक्षक संघ के एक अधिकारी ने कहा कि फरवरी में हुए सैन्य तख्तापलट का विरोध करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए म्यांमार के 125,000 से अधिक स्कूल शिक्षकों को सैन्य अधिकारियों ने निलंबित कर दिया है.

म्यांमार की तानाशाही सैन्य सरकार ने ये कदम ऐसे समय पर उठाया है, जब स्कूलों के नए सत्र शुरू हो रहे हैं. कुछ शिक्षक और माता-पिता प्रतिरोध के रूप में इसका बहिष्कार किया है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, शिक्षक संघ के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले हफ्ते शनिवार तक कुल 125,900 शिक्षकों को निलंबित किया गया है, हालांकि उन्होंने अपना नाम नहीं बताया, क्योंकि उन्हें डर है कि उन पर कार्रवाई हो सकती है.

दो साल पुराने एक आंकड़े के मुताबिक, म्यांमार में 430,000 स्कूल टीचर हैं.

अधिकारी, जो कि एक टीचर भी हैं, ने कहा कि ये सिर्फ लोगों को काम पर लौटने के लिए डराने-धमकाने की कोशिश है. यदि वे इतने सारे लोगों को निलंबित करेंगे तो पूरा सिस्टम बंद हो जाएगा. उन्होंने कहा कि उनसे कहा गया है कि यदि वे स्कूल जॉइन करते हैं तो सारे आरोप वापस ले लिए जाएंगे.

सेना द्वारा तख्तापलट और निर्वाचित नेता आंग सान सू ची की गिरफ्तारी के बाद से शिक्षा, स्वास्थ्य समेत विभिन्न स्तरों पर अराजकता का माहौल बन गया है. शिक्षक समूह के अनुसार, लगभग 19,500 विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को भी निलंबित कर दिया गया है.

जून महीने से स्कूल के नए सत्र की शुरुआत हो रही है, लेकिन कई परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का फैसला लिया है.

एक बेटी की मां 42 वर्षीय माईइंट ने कहा, ‘मैं अपनी बेटी की नामांकन नहीं कराऊंगी. मैं नहीं चाहती कि सैन्य तानाशाही से उसे शिक्षा मिले. मुझे उसकी सुरक्षा की भी चिंता है.’

इसके अलावा सैन्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों में अग्रणी भूमिका निभाने वाले छात्रों ने कहा है कि वे स्कूल का बहिष्कार करेंगे.

18 वर्षीय ल्विन ने कहा, ‘मैं तभी स्कूल जाऊंगा जब हमें लोकतंत्र वापस मिलेगा.’

म्यांमार की शिक्षा प्रणाली पहले से ही दयनीय स्थिति से गुजर रही थी. पिछले साल के एक वैश्विक सर्वेक्षण में 93 देशों में से इसका 92वां स्थान था.

यहां तक कि सू ची , जिन्हें शिक्षा की पैरवी करने के लिए जाना जाता है, के नेतृत्व में भी जीडीपी की दो फीसदी से भी कम राशि शिक्षा पर खर्च की जा रही थी. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार यह दुनिया में सबसे कम है.

गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने बीते एक फरवरी को तख्तापलट कर नोबेल विजेता आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार को बेदखल करते हुए और उन्हें तथा उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को नजरबंद करते हुए देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.

इसके खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में 800 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

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