भारत में 1970-2019 के दौरान 117 चक्रवात आए और 40,000 से अधिक लोगों की जान गई: शोध

अति प्रतिकूल मौसम संबंधी घटनाओं पर एक अध्ययन में कहा गया है कि उष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की वजह से मौतों में इस सदी के पहले दशक (2000-09) की तुलना में बाद वाले दशक (2010-19) में करीब 88 फीसद गिरावट आई है. यह शोध-पत्र इस साल के प्रारंभ में प्रकाशित हुआ, जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और अन्य वैज्ञानिकों ने तैयार किया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

अति प्रतिकूल मौसम संबंधी घटनाओं पर एक अध्ययन में कहा गया है कि उष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की वजह से मौतों में इस सदी के पहले दशक (2000-09) की तुलना में बाद वाले दशक (2010-19) में करीब 88 फीसद गिरावट आई है. यह शोध-पत्र इस साल के प्रारंभ में प्रकाशित हुआ, जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और अन्य वैज्ञानिकों ने तैयार किया है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारत में 1970-2019 के 50 सालों के दौरान 117 चक्रवात आए और 40,000 से अधिक लोगों की जान गई. अति प्रतिकूल मौसम संबंधी घटनाओं पर एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है. इस अध्ययन के अनुसार, उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की वजह से होने वाली मृत्यु दर में पिछले दस सालों में काफी कमी आई है.

अध्ययन के मुताबिक, इन 50 वर्षों में देश में अति प्रतिकूल मौसम संबंधी कुल 7,063 घटनाओं में 141,308 लोगों की जान चली गई, जिनमें से 40,358 लोगों (यानी 28 फीसद) ने चक्रवात की वजह से और 65,130 लोगों (46 फीसद से थोड़ा अधिक) ने बाढ़ के कारण अपनी जान गंवाई.

यह शोध-पत्र इस साल के प्रारंभ में प्रकाशित हुआ, जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. राजीवन और वैज्ञानिकों कमलजीत राय, एसएस राय, आरके गिरि, एपी दिमरी ने मिलकर तैयार किया है. कमलजीत राय इस शोध-पत्र के मुख्य लेखक हैं.

इसी माह के मध्य में पश्चिमी तट ने चक्रवात ताउते का प्रकोप झेला. ताउते अति भयंकर चक्रवाती तूफान के रूप में गुजरात तट से टकराया और उसने कई राज्यों में तबाही मचाई और करीब 50 लोगों की जान चली गई.

फिलहाल देश का पूर्वी तट पर अति भयंकर चक्रवात तूफान ‘यास’ आया है. वह ओडिशा और पश्चिमी बंगाल के समुद्र तटीय क्षेत्रों में तबाही मचाकर देश में आगे चला गया.

अध्ययन में कहा गया है कि चक्रवात की वजह से होने वाली मौतों में पिछले दो दशक में बहुत कमी आई है. हाल के वर्षों में भारतीय मौसम विज्ञान विज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता में काफी सुधार देखा गया है.

अध्ययन कहता है कि 1971 में सितंबर के आखिर सप्ताह से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक बंगाल में बंगाल की खाड़ी में महज करीब छह सप्ताह के अंदर चार उष्ण कटिबंधीय तूफान आए. उनमें सबसे विध्वंसकारी तूफान 30 अक्टूबर, 1971 को तड़के ओडिशा तट पर आया था और जान-माल का बड़ा नुकसान हुआ था. करीब 10,000 लोगों की जान चली गई थी और दस लाख से अधिक लोग बेघर हो गए थे.

अध्ययन के मुताबिक, 1977 में 9-20 नवंबर के दौरान बंगाल की खाड़ी में दो उष्ण कटिबंधीय तूफान उठे थे. दूसरा तूफान ‘चिराला’ बड़ा ही भयंकर गंभीर उष्ण कटिबंधीय तूफान था, वह तटीय आंध्र प्रदेश से टकराया था.

शोध-पत्र में कहा गया है कि उस दौरान 200 किलोमीटर प्रति घंटे से हवा चली थी और पांच मीटर की ऊंचाई तक समुद्र में लहरें उठ थीं. उसी दौरान भी करीब 10,000 लोगों ने जान गंवाई थी और करीब 2.5 करोड़ डॉलर मूल्य के बुनियादी ढांचों एवं फसलों का नुकसान हुआ था.

अकेले 1970-80 के दौरान चक्रवातों की वजह से 20,000 लोगों की मौत हो गई.

इस शोध-पत्र में कहा गया है, ‘विश्लेषण से पता चला कि उष्ण कटिबंधीय तूफानों की वजह से मौतों में इस सदी के पहले दशक (2000-09) की तुलना में बाद वाले दशक (2010-19) में करीब 88 फीसद गिरावट आई है.’

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि चक्रवात के दौरान मौतों की वजहों में इन सालों में मौसम पूर्वानुमान क्षमता में सुधार के साथ बदलाव आया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक महापात्रा ने कहा कि पहले तूफान की वजह से मौतें होती थीं, लेकिन अब ज्यादातर मौतें पेड़ या घर के गिरने से होती हैं.

उन्होंने कहा, ‘तूफान तेज हवाएं पैदा करते हैं, जो पानी को तटों की ओर धकेलते हैं, जिससे बाढ़ आ जाती है. यह तटीय क्षेत्रों के लिए तूफानी लहरों को बहुत खतरनाक बनाता है, लेकिन अब पूर्वानुमान और साथ ही इन घटनाओं की प्रतिक्रिया में काफी बदलाव आया है. लोगों को अब पूर्व चेतावनी के साथ निचले इलाकों से खाली कर दिया जाता है.’

उन्होंने कहा कि चक्रवात गरज, बिजली और भारी बारिश भी लाते हैं, जो घातक भी साबित होते हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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