क्या रिटायर्ड सुरक्षा अधिकारियों का सरकारी अनुमति से लिखने का नियम आलोचना रोकने का दांव है

मोदी सरकार द्वारा सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स, 1972 में किए गए संशोधन के बाद अब रिटायर्ड सुरक्षा अधिकारियों को अपने पूर्व संगठन से संबंधित विषय पर कुछ भी लिखने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी. इसका उल्लंघन सेवानिवृत्त अधिकारी की पेंशन को ख़तरे में डाल सकता है.

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नॉर्थ ब्लॉक. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

मोदी सरकार द्वारा सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स, 1972 में किए गए संशोधन के बाद अब रिटायर्ड सुरक्षा अधिकारियों को अपने पूर्व संगठन से संबंधित विषय पर कुछ भी लिखने से पहले सरकार की अनुमति  लेनी होगी. इसका उल्लंघन सेवानिवृत्त अधिकारी की पेंशन को ख़तरे में डाल सकता है.

नॉर्थ ब्लॉक. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)
नॉर्थ ब्लॉक. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: सेवानिवृत्त सुरक्षा और इंटेलिजेंस अफसरों को वर्तमान नीतियों से संबंधित मसलों पर आलोचनात्मक टिप्पणी करने से रोकने की कोशिश के तहत नरेंद्र मोदी सरकार ने सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स, 1972 में एक संशोधन की अधिसूचना जारी करके सेवानिवृत्त अधिकारियों के बगैर पूर्व इजाजत लिए किसी ऐसे विषय पर मीडिया में कोई टिप्पणी करने, कोई चिट्ठी या किताब या कोई दस्तावेज प्रकाशित कराने पर पाबंदी लगा दी है, जो किसी ऐसे संगठन के ‘दायरे’ (डोमेन) में आता है, जिसमें उन्होंने कार्य किया हो.

यह संशोधन नियम 8 में जोड़ा गया है जो कि ‘भविष्य के अच्छे आचरण के आधार पर पेंशन’ से संबंधित है. इसका अर्थ यह है कि इस नए दिशा-निर्देश का कोई भी उल्लंघन सेवानिवृत्त अधिकारी के पेंशन को खतरे में डाल सकता है.

पेंशन नियमों में 2008 के संशोधन ने सिर्फ ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट (सरकारी गोपनीयता कानून) और सामान्य अपराध कानून के तहत प्रतिबंधों को स्पष्ट करते हुए सेवानिवृत्त अधिकारियों के संवेदनशील सूचनाओं पर लिखने पर, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हितों को नुकसानदेह तरीके से प्रभावित करेगा…या किसी अपराध को उकसावा देगा,’ पाबंदी लगा दी थी. अब यह नया नोटिफिकेशन पाबंदियों के दायरे को काफी बढ़ा देने वाला है.

कार्मिक, जन-शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय- जिसके मुखिया नरेंद्र मोदी हैं-’ द्वारा 31 मई, 2021 को जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है कि कोई भी सरकारी अधिकारी, जिसने इंटेलिजेंस या सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (2005 का 22) में शामिल सुरक्षा संबंधित किसी संगठन में काम किया है, सेवानिवृत्ति के बाद संगठन के प्रमुख की पूर्व इजाजत के बगैर कोई ऐसी सामग्री प्रकाशित नहीं करेगा, जो :

‘उस संस्थान के कार्यक्षेत्र (डोमेन) में आता हो. इसमें किसी कर्मचारी या उसका पद या उसकी विशेषज्ञता या ज्ञान शामिल है, जो उसे उस संगठन में काम करने के कारण मिला हो.’

‘संगठन के कार्यक्षेत्र (डोमेन) और उस संस्थान में काम करने के कारण अर्जित विशेषज्ञता या ज्ञान’ से जुड़े किसी भी प्रकार के लेखन पर लगाई गई नई पाबंदियां इतनी व्यापक और साथ ही साथ इतनी अस्पष्ट हैं कि सार्वजनिक मसलों पर टिप्पणी करने वाले सुरक्षा और इंटेलिजेंस प्रतिष्ठान से रिटायर होने वाले कुछ अधिकारी इसे सरकार की आलोचकों को डरा-धमकाकर कर शांत करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.

पहचान न उजागर करने की शर्त पर एक पूर्व अधिकारी ने द वायर  को बताया, ‘वर्तमान सरकार पूरे नैरेटिव पर नियंत्रण करने की आक्रामक मुद्रा में है. मेरा अनुमान है कि वे सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने वाले रिटायर्ड नौकरशाहों के खिलाफ भी कार्रवाई करेंगे.’

उन्होंने यह भी कहा कि कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप, जिसमें पूर्व सुरक्षा और इंटेलिजेंस अधिकारी शामिल हैं, के द्वारा विभिन्न विषयों पर लिखी जा रही चिट्ठियां भी सरकार के मंत्रियों के दिमाग में रही होंगी. जहां पक्षपातपूर्ण राजनीतिक एजेंडा से कानून के शासन के कमजोर होने से इन संगठनों में कई सेवारत अधिकारी परेशान हैं, वहीं सरकार यह बिल्कुल भी नहीं चाहती है कि इसके आलोचकों की फेहरिस्त अपनी बात रखने के इच्छुक नए अवकाश ग्रहण करनेवाले अधिकारियों का नाम जुड़ने से और लंबी हो जाए.

यह नियम पहले ही ‘प्रकाशन’ शब्द में प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी बात रखने…कोई किताब, चिट्ठी, पर्चा, पोस्टर या किसी भी रूप में कोई अन्य दस्तावेज के प्रकाशन को शामिल करता है.’

नए नियमों के दायरे में आनेवाले संगठनों में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी), कैबिनेट सेक्रेटरिएट का रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस, सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो, इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (आईडी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), एविएशन रिसर्च सेंटर, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसफ), सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ), इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी), नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी), असम राइफल्स, अंडमान निकोबार द्वीप का स्पेशल सर्विस ब्यूरो, स्पेशल ब्रांच सीआईडी , दादरा एवं नागर हवेली का क्राइम ब्रांच-सीआईडी-सीबी और स्पेशल ब्रांच, लक्षद्वीप पुलिस शामिल हैं.

यानी, नये नियम का मतलब है कि रॉ के पूर्व अधिकारी किसी विदेशी मसले या पाकिस्तान, अफगानिस्तान या चीन जैसे सुरक्षा संबंधी विषयों पर इजाजत लिए बगैर मीडिया में कोई लेख नहीं लिख सकते हैं, क्योंकि ये संगठन के कार्यक्षेत्र में आते हैं.

इंटेलिजेंस ब्यूरो के किसी भूतपूर्व अधिकारी को सांप्रदायिक हिंसा या आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे से निपटने में असफलता या घरेलू राजनीति पर भी कुछ लिखने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा, क्योंकि ये सब आईबी के कार्यक्षेत्र (डोमेन) में आते हैं.

सीआरपीएफ, बीएसएफ आदि के रिटायर्ड अधिकारियों के लिए भी सरकार की पूर्व इजाजत लिए बगैर विभिन्न प्रकार के विषयों पर जिनमें उनकी विशेषज्ञता है, कुछ भी टिप्पणी करना मुश्किल हो जाएगा.

संशोधित पेंशन नियमों में एक नया फॉर्म जोड़ा गया है जिस पर संगठनों के कर्मचारियों को अब से दस्तखत करना पड़ेगा और यह वचन देना पड़ेगा कि वे -‘सेवा के दौरान या सेवानिवृत्ति के बाद संगठन के कार्यक्षेत्र (डोमेन) से संबंधित या उस संगठन में काम करने के कारण अर्जित कोई सूचना या सामग्री या जानकारी को किसी भी तरह से प्रकाशित नहीं करेंगे.’

इस फॉर्म के 2008 के प्रारूप ने इस वचन (अंडरटेकिंग) को राज्य की सुरक्षा और संप्रभुता पर खतरा पैदा करने वाली किसी सामग्री के प्रकाशन तक सीमित रखा था.

2008 के फॉर्म की ही तरह नए वचन में भी वर्तमान और भविष्य के अधिकारियों को इस पर बात पर दस्तखत करने के लिए कहा गया है कि फॉर्म में विस्तार से वर्णित वचनों के उल्लंघनों के लिए सरकार द्वारा उनके खिलाफ कोई नकारात्मक कार्रवाई करने पर वे अपने पेंशन अधिकारों से वंचित कर दिए जाएंगे:

‘मुझे इस बात की जानकारी है कि सेवानिवृत्ति के बाद प्रासंगिक पेंशन नियमों के तहत मुझे दी जाने वाली पेंशन यहां दिए गए वचनों का उल्लंघन करने पर रोकी, या आंशिक तौर पर या पूरी तरह से समाप्त की जा सकती है.’

चूंकि नियम 8 कहता है कि, ‘इन नियमों के तहत पेंशन दिए जाने और इसके जारी रहने के लिए भविष्य का अच्छा आचरण एक अंतर्निहित शर्त होगा,’ इसलिए बोलने की आजादी पर प्रतिबंध लगाने वाले ये नए आदेश अनुमानित तौर पर उन अधिकारियों पर भी लागू होंगे जो इन संगठनों से अरसे पहले रिटायर हो चुके हैं, भले ही उन्होंने नए अंडरटेकिंग पर दस्तखत किया न किया हो.

इससे उनकी पेंशन की जब्ती या उसमें कमी लाना ज्यादा मुश्किल हो सकता है, लेकिन इससे जानकार तबके की तरफ से होनेवाली आलोचनाओं को दबाने के लिए उत्सुक सरकार के लिए भूतपूर्व अधिकारियों को कानूनी कार्रवाइयों में फंसाना आसान हो जाएगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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