समान नागरिकता की मांग पर देवांगना कलीता और नताशा नरवाल को गिरफ़्तार किया गया: पिंजरा तोड़

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में बीते साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में महिला संगठन पिंजड़ा तोड़ की नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की गिरफ़्तारी के एक साल पूरे हो चुके हैं. इसे लेकर हुए कार्यक्रम में कहा गया कि यह उन आवाज़ों को दबाने का तरीका है, जो सरकार को पसंद नहीं है.

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देवांगना कलीता और नताशा नरवाल.(फोटो साभार: ट्विटर)

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में बीते साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में महिला संगठन पिंजड़ा तोड़ की नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की गिरफ़्तारी के एक साल पूरे हो चुके हैं. इसे लेकर हुए कार्यक्रम में कहा गया कि यह उन आवाज़ों को दबाने का तरीका है, जो सरकार को पसंद नहीं है.

देवांगना कलीता और नताशा नरवाल.(फोटो साभार: ट्विटर)
देवांगना कलीता और नताशा नरवाल.(फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में सख्त गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत महिला संगठन ‘पिंजरा तोड़’ की सदस्य देवांगना कलीता और नताशा नरवाल की गिरफ्तारी के एक साल पूरे होने के अवसर पर बीते मंगलवार को कार्यकर्ता और विभिन्न नागरिक समाज समूह एक साथ आए.

पिंजरा तोड़ ने एक बयान में कहा कि नरवाल और कलीता को इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि उन्होंने सभी के लिए समान और मौलिक नागरिकता की मांग को लेकर आवाज उठाई थीं.

बयान में कहा गया, ‘उन दोनों को उनके खिलाफ दर्ज हर मामले में जमानत दी गई थी, फिर भी वे एफआईआर 59 के तहत यूएपीए के कारण जेल में बंद हैं.’

गौरतलब है कि नरवाल और कलीता को मई 2020 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के विरोध में उस साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

पिंजरा तोड़ द्वारा आयोजित एक वर्चुअल बैठक में नरवाल, कलीता और जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद जैसे अन्य लोगों के बारे में कार्यकर्ता जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि जिस तरह से उन्हें निशाना बनाया गया वह दुर्भाग्यपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि यूएपीए यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को जमानत न मिले. उन्होंने कहा, ‘यह उन आवाजों को दबाने का असंवैधानिक तरीका है जो सरकार को पसंद नहीं है.’

मेवाणी ने कहा कि लोगों को ‘झूठी कैदों को चुनौती’ देने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका को झूठे अपराध करने के लिए पुलिस, राजनेताओं और सरकारों को जवाबदेह ठहराने की जरूरत है.’

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) की पूर्व अध्यक्ष ओईशी घोष ने कहा, ‘उन्हें (कलीता और नरवाल) न केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वे शिक्षित थीं, बल्कि इसलिए कि वे भाजपा, आरएसएस की सोच को चुनौती दे रही थीं और इसलिए कि वे जनता से जुड़ रही थीं.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, घोष ने कहा, ‘हमें जिस चीज से डरना चाहिए, वह है हमारे समाज का टूटना. भाजपा देर-सबेर हारेगी, लेकिन समाज टूट जाएगा.’

घोष ने कहा कि सरकार ने ऐसे लोगों को निशाना बनाया, जो अपने समुदायों के लिए रोल मॉडल बन रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘उमर खालिद को कैद करके सरकार युवा मुसलमानों को सबक सिखाना चाहती है. नताशा और देवांगना को कैद करके युवा महिलाओं को सबक सिखाना चाहती है.’

उन्होंने दावा किया कि सरकार उन्हें जनता से अलग करना चाहती है.

बैठक में अन्य वक्ताओं में लेखक और कार्यकर्ता फराह नकवी, वरिष्ठ पत्रकार हरतोष सिंह बल, सुप्रीम कोर्ट के वकील शाहरुख आलम और मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद आमिर खान शामिल थे.

मालूम हो कि देवांगना कलीता और ‘पिंजरा तोड़’ की एक अन्य सदस्य नताशा नरवाल को मई 2020 में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा गिरफ्तार किया गया था और उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के विभिन्न धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए हैं.

दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाके में और इस साल की शुरुआत में पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों और हिंसा के संबंध में कलीता खिलाफ चार मामले दर्ज किए गए हैं.

वहीं, उमर खालिद को उत्तर-पूर्व दिल्ली के खजूरी खास इलाके में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में बीते साल एक अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था. खालिद के खिलाफ भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था. 

यूएपीए के तहत दूसरी एफआईआर दर्ज होने के बाद उमर खालिद को गिरफ्तार किया गया था. इसके तहत वह पहले से ही हिरासत में हैं. यूएपीए के साथ ही इस मामले में उनके खिलाफ दंगा करने और आपराधिक साजिश रचने के भी आरोप लगाए गए हैं.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी 2020 को सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. इन दंगों में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 200 लोग घायल हुए थे.

पिंजरा तोड़ संगठन का गठन 2015 में किया गया था, जो हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं पर लागू तरह-तरह की पाबंदियों का विरोध करता है. संगठन कैंपस के भेदकारी नियम-कानून और कर्फ्यू टाइम के खिलाफ लगातार अभियान चलाता रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)